सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

बुरे प्रत्याशियों के साथ कैसा सलूक करे मतदाता !

मतदाता क्या करे जब किसी भले दल से भी किसी बुरे प्रत्याशी को टिकट मिल जाए ? आज के राजनीतिक दौर में यह बड़ा सवाल है जिसका जवाब आसान नहीं है। दरअसल कई मतदाताओं के दिल तो कहते हैं कि उसे वोट न दिया जाए। पर, राजनीतिक परिस्थिति और उनके दिमाग कुछ और कहते हैं। यह राय भी है कि किसी अधिक बुरे दल या उम्मीदवार को हराने के लिए किसी कम बुरे उम्मीदवार को आधे मन से ही सही, पर स्वीकार कर लिया जाए।

अपनी-अपनी सोच और सुविधा के अनुसार मतदातागण बिहार विधानसभा के अगले चुनाव में भी अच्छे के साथ-साथ बुरे प्रत्याशियों से भी निपट लेंगे। अब तो नतीजे ही बताएंगे कि बुरे प्रत्याशियों के साथ लोगों ने कैसा व्यवहार किया। पर, इस संबंध में कम से कम तीन दिवंगत राजनीतिक हस्तियों के विचार उपलब्ध हैं। जवाहरलाल नेहरू, दीनदयाल उपाध्याय और चौधरी चरण सिंह ने समय-समय पर बुरे उम्मीदवारों के बारे में अपनी जाहिर कर दी थी।

अस्सी के दशक की बात है। इन पंक्तियों का लेखक बिहार में चौधरी चरण सिंह की एक चुनावी सभा में था। उन्होंने अन्य बातों के साथ -साथ मंच से मतदाताओं से यह अपील भी कर दी कि ‘यदि हमारे दल ने भी यहां किसी गलत उम्मीदवार को टिकट दे दिया हो तो तुम उसे वोट मत देना।’ बाद में पता चला कि कई अन्य चुनाव सभाओं में भी तब उन्होंने इसी तरह की बात कही थी।

पचास के दशक की बात है। मध्य प्रदेश के शिवबहादुर सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। वे नेहरू मंत्रिमंडल में भी रह चुके थे। पर जवाहर लाल नेहरू ने मतदाताओं से अपील कर दी कि वे शिवबहादुर सिंह को वोट न दें क्योंकि उन पर भ्रष्टाचार का आरोप था।

ऐसे मामले में पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अपनी राय अपनी डायरी में दर्ज कर दी है।
11 दिसंबर, 1961 को जनसंघ के वरिष्ठ नेता और विचारक दीनदयाल उपाध्याय ने अपनी डायरी में लिखा कि ‘कोई बुरा प्रत्याशी केवल इसलिए आपका मत पाने का दावा नहीं कर सकता कि वह किसी अच्छे दल की ओर से खड़ा है। दल के ‘हाईकमान’ ने ऐसे व्यक्ति को टिकट देते समय पक्षपात किया होगा। अतः ऐसी गलती को सुधारना मतदाता का कर्तव्य है।’ 

बिहार में जो दल चुनाव लड़ रहे हैं उनमें से प्रमुख दलों के नेताओं का संबंध उपर्युक्त तीन नेताओं या उनके दलों से रहा है। इसलिए भी उन दिवंगत नेताओं का उल्लेख मौजूं है। क्योंकि विवादास्पद लोगों को टिकट देने का आरोप आज किसी एक ही दल पर नहीं है।

 (27 सितंबर 2015)

कोई टिप्पणी नहीं: