महामारी बन रही एक बीमारी
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राजनीति में परिवारवाद इसी रफ्तार से बढ़ता गया तो नई पीढ़ी इस सिस्टम के खिलाफ एक दिन विद्रोह कर सकती है
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सुरेंद्र किशोर
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घातक है जो देवता सदृश दिखता है,
लेकिन,कमरे में गलत हुक्म लिखता है,
जिस पापी को गुण नहीं,गोत्र प्यारा है,
समझो,उसने ही हमें यहां मारा है।
---- रामधारी सिंह दिनकर
(परशुराम की प्रतीक्षा)
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राष्ट्रकवि दिनकर ने जब यह लिखा था,उस समय तक राजनीति में ‘‘गोत्र वाद’’(यानी वंशवाद-परिवारवाद का) का आज जैसा घिनौना रूप सामने नहीं आया था।आज जो कुछ हो रहा है,उसे आप नंगी आंखों से देख सकते हैं।दिनकर आज होते तो क्या लिखते !
बिहार विधान सभा के मौजूदा चुनाव में जिस तरह बड़े पैमाने पर राजनीतिक परिवारों के लोगों को टिकट दिए गए हैं,उसके कैसे संकेत हैं ?
लोकतंत्र के लिए खतरनाक संदेश हंै।
यह लोकतंत्र है या वैसा ही राजतंत्र जब इस देश में आजादी से पहले 565 रजवाड़े राज करते थे ?
संकेत यही है कि यदि इसी गति से यह कुप्रथा जारी रही तो वह दिन दूर नहीं जब लोक सभा की 543 और बिहार विधान सभा की 243 सीटों में से लगभग सभी सीटों पर किसी न किसी राजनीतिक परिवार के ही सदस्य ही चुनाव लड़ेंगे।राजनीतिक कार्यकत्र्ता नामक प्राणी का मूलोच्छेद हो जाएगा।
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फिर वे सेवाभावी सामाजिक -राजनीतिक कार्यकर्ता (हांलाकि उनकी संख्या अब कम है)क्या करेंगे जो किसी राजनीतिक परिवार से नहीं आते हैं ?
ध्यान रहे कि परिवारवाद-वंशवाद नई -नई बुराइयां अपने साथ लाता है।यह संयोग नहीं है कि
लगभग हर परिवादवादी -वंशवादी नेता के खिलाफ किसी न किसी घोटाले के आरोप में मुकदमे चल रहे हैं।यह भी संयोग नहीं कि अयोग्य उत्तराधिकारी के कारण कुछ वंशवादी राजनीतिक दल तेजी से पतन की ओर अग्रसर हैं।
हर देश,काल,समाज के 10 प्रतिशत लोग अत्यंत ईमानदार होते हैं।
अन्य 10 प्रतिशत अत्यंत बेईमान होते हैं।
बाकी 80 प्रतिशत उन्हीें के साथ हो जाते हैं ,इन दोनों में से जिसका राज होता है।साथ में या निरपेक्ष।
परिवारवाद-वंशवाद की महामारी इस देश की राजनीति को जब पूरी तरह अपनी गिरफ्त में ले लेगी तो ईमानदार समाज सेवकों के लिए खास कर उनमें से युवा वर्ग के लिए क्या रास्ता बच जाएगा ?
क्या वे मौजूदा ‘‘विकृतिकरण’’ को बर्दाश्त कर लेंगे ?
कत्तई नहीं।
वे सड़कों ंपर उतर सकते हैं।विद्रोह कर सकते हैं।
संभव है कि उस विदोह से कोई कल्याणकारी तानाशाह निकले।
फिर वंशवाद-परिवारवाद को पराकाष्ठा पर पहुंचाने वाले नेतागण अपने हश्र की कल्पना कर लें।
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यहां की राजनीति की मौजूदा स्थिति को देखकर परलोक में मोतीलाल नेहरू खुश हो रहे होंगे।उन्होंने सन 1928-29 में महात्मा गांधी पर भारी दबाव डालकर कांग्रेस की राजनीति में वंशवाद का जो पौध रोपा,वह फल-फूल रहा है।वट वृक्ष बन रहा है।
मोतीलाल नेहरू 1928 में कांग्रेस अध्यक्ष थे-जवाहरलाल नेहरू 1929 में अध्यक्ष बने।(संदर्भ--मोतीलाल नेहरू पेपर्स--नेहरू मेमोरियल)
लालू प्रसाद ने कभी कहा था कि ‘‘मेरा परिवार, बिहार का नेहरू परिवार है।’’
अब तो लगभग हर राज्य में नेहरू या लालू परिवार है।
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परिवारवादी नेता चाहते हैं कि जितने भी नेता एक बार सांसद या विधायक बनें,वे अगली बार अपने परिजन को विधायक -सांसद बनवा दें ताकि बदनामी का वितरण हो जाये।सिर्फ मुझ पर ही परिवारवाद का आरोप न लगे।
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नब्बे के दशक में प्रधान मंत्री पी.वी.नरसिंह राव पर
शेयर दलाल हर्षद मेहता से एक करोड़ रुपए घूस लेने का आरोप लगा था।
जब राव साहब बदनाम हुए तो उन्होंने सोचा कि कैसे ऐसा ही आरोप सभी सांसदों पर भी लगने लगे।यानी मेरी नाक कटी तो दूसरे की भी कट जाये।
उन्होंने एक तरकीब निकाली ।नब्बे के दशक में अपने वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के कड़े विरोध के बावजूद सांसदों के लिए राव ने एक करोड़ रुपए सालाना का सांसद फंड शुरू कर दिया।(यह काम तब किया गया जब मनमोहन सिंह लंबी विदेश यात्रा पर थे।)
उन दिनों सरकारी रिश्वत का रेट 20 प्रतिशत था।(आज तो 40 प्रतिशत हो गया है।)पांच साल में सांसदों को पांच करोड़ रुपए मिलने लगे।अपवादों को छोड़कर
अधिकतर सांसदों के यहां बिन मांगे 20 प्रतिशत पहुंचने लगे।उससे राव साहब-हर्षद मेहता प्रकरण को नेतागण भूल गये।
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उसी तरह का हाल परिवारवाद -वंशवाद का हो जाए,ऐसा वंशवादी नेता चाहते हैं।वंशवाद के लिए अब कौन किसे बदनाम करेगा ?
अटल जी,मनमोहन जी,मोदी जी की चाह के बावजूद सांसद फंड बंद इसलिए भी नहीं हो पा रहा है क्योंकि उसके ठेकेदार अनेक जन प्रतिनिधियों के राजनीतिक कार्यकर्ता का काम करते हैं।(अब तो प्रशांत किशोर जैसे नेता वेतन पर राजनीतिक कार्यकर्ता बहाल करने लगे हैं।)
जन प्रतिनिधि यदि अपने क्षेत्र में नये कार्यकर्ता उभरने देंगे तो वे कार्यकर्ता टिकट के उम्मीदवार बन जाएंगे। किंतु टिकट तो उन्हें अपने परिजन को देने हैं।
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आज राजनीति में इतनी गिरावट है--कल क्या -क्या होने वाला है ?कल्पना कर लीजिए।
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और अंत में
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1.-डा.राम मनाहर लोहिया कहा करते थे--राजनीति में रहने वालों को संतति और संपत्ति से दूर रहना चाहिए।
2.-1977 में राज नारायण जी केंद्र में स्वास्थ्य मंत्री बने तो किसी ने उनकी पत्नी को उनके दिल्ली आवास पर पहुंचा दिया।पत्नी को देख कर राजनारायण जी ने पूछा--‘‘ई के हवी ?’’(मेरी भाषा या जानकारी सटीक न हो तो कोई बनारसी व्यक्ति मुझे सही बता दें।)
यानी,राजनारायण जी ने पूछा--ये कौन
हैं ?
नेता जी (असली नेता जी वही थे,मुलायम जी के समर्थकों ने उनकी ही नकल करके मुलायम जी को नेता जी कहना शुरू कर दिया।) को बताया गया कि यह आपकी धर्म पत्नी हैं।
यानी, सार्वजनिक कामों में व्यस्त रहने के कारण ‘‘नेता जी’’ अपने परिवार से दूर-दूर रहते थे, इतने अधिक दिनों के बाद मिले थे कि तब तक पत्नी के चेहरे में थोड़ा परिवर्तन हो चुका था।
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23 अक्तूबर 25