वैसे मायावती आज वरुण के साथ जो कुछ कर रही हैं, वैसा ही सलूक कभी कोई तानाशाह उनके साथ भी कर सकता है। उन्हें भी यह याद रखना चाहिए। लोकतंत्र के लिए चिंता की बात यह है कि ऐसे अतिवादी कदम गद्दी और वोट के लिए उठाए जाते रहे हैं, जैसे आपातकाल लगाना, वरुण का उत्तेजक भाषण और मायावती सरकार का वरुण के खिलाफ एनएसए लगाना।
ज्यादती है वरुण पर एनएसए
वरुण गांधी पर एनएसए लगाना सचमुच उनके प्रति ज्यादती है। इसको लेकर आम सहानुभति वरुण के साथ दिखाई पड़ रही है। पर, इससे पहले राजनीति में नौसिखिए वरुण ने पीलीभीत में जो उत्तेजक भाषण दिया, उसको लेकर दो तरह की राय हैं। वैसे तो उस भाषण की सीडी की जांच की मांग हो रही है, पर यदि उन्होंने किसी खास समुदाय के खिलाफ सचमुच आपत्तिजनक बातें कही हैं, तो कानून के तहत उन पर कार्रवाई जरूर होनी चाहिए। यह बात और है कि इससे भी अधिक उत्तेजक और राष्ट्रविरोधी बातें कहने के लिए एक खास समुदाय के दूसरे कई नेताओं के खिलाफ वोट के लालच में आम तौर पर कोई कार्रवाई नहीं होती। इससे प्रकारांतर से भाजपा को ही मदद मिलती है।अब एक सवाल मेनका गांधी से। इंदिरा गांधी से अलग होने के बाद मेनका गांधी ने संजय विचार मंच बनाया था। यानी वे अपने पति के विचारों से प्रभावित रही हैं। पर संजय गांधी तो आपातकाल में संविधानेत्तर सत्ता के कें्रद बन गए थे। अनेक ज्यादतियों के आरोप उन पर लगे। वे देश के अनेक प्रतिष्ठित राजनीतिक नेताओं को भी अनिश्चितकाल तक बिना अदालती सुनवाई के जेलों में ठंूस देने के पक्षधर थे। तब जो लोग जेलों में गये थे, उनमें से कितने लोगों को अपने परिजनों से मिलने की छूट थी ? जरा मेनका जी उन दिनों को भी याद करे लें। सब लोग यह बात समझ लें कि ‘सब दिन रहत ना एक समाना !’
आपातकाल की जेल
देश के अनेक पुत्रों की बात कौन कहे, आपातकाल में तो कई मांएं भी देश की विभिन्न जेलों में बंद कर दी गई थीं। जयपुर की राजमाता गायत्री देवी को तो पहले से बंदी वेश्याओं के साथ जेल में रखा गया था। गायत्री देवी मच्छरों और कीड़े-मकोड़ों से जेल में बुरी तरह परेशान हुई थीं। कन्नड़ की प्रसिद्ध अभिनेत्री स्नेहलता रेड्डी तो आपातकाल में अपार जेल यातना के कारण ही दिवंगत हो गई। उनकी संतानें बिलखती रह गईं।बिहार के छात्र आंदोलन के जितने नेता बिना सुनवाई के जेलों में ठंूस दिए गए थे, उनमें से अधिकतर वरुण गांधी से कम ही उम्र के थे। जो फरार थे, उनका कष्ट तो और भी अधिक था। क्योंकि कोई रिश्तेदार भी उन्हें शरण देने को तैयार नहीं था। पता नहीं बाद के वर्षों मंे भी ंमेनका जी को इसके लिए अफसोस हुआ था या नहीं। यदि तब नहीं हुआ, तो अपने पुत्र का हाल देख कर अब भी आपातकाल के लिए उनमें अफसोस पैदा हो सके, तो लोकतंत्र के लिए अच्छी बात होगी। पर भाजपा ने तो वर्षों पहले जरूर अवसरवादिता दिखाई और मेनका को अपने सिर पर बैठा लिया।
यह वही मेनका गांधी हंै, जो केंद्र में 1977 में मोरारजी देसाई की सरकार बन जाने के बाद सूर्या पत्रिका की संपादक के रूप में जयप्रकाश नारायण से यह सवाल पूछने पटना आई थीं कि संजय गांधी का क्या कसूर है ? याद रहे कि तब शाह आयोग में अन्य लोगों के साथ -साथ संजय गांधी के खिलाफ आरोपों को लेकर सुनवाई चल रही थी। हम करें तो ठीक और दूसरे करें तो गलत ?
कल्पना कीजिए कि मायावती जैसी एकाधिकारवादी प्रवृत्ति की शासक यदि कभी प्रधानमंत्री बन जाएं और वे किसी-न-किसी बहाने आपातकाल लगा दें, तो क्या होगा ?
और अंत में
चांदनी चैक लोकसभा चुनाव क्षेत्र के कांग्रेसी उम्मीदवार कपिल सिब्बल ने उस क्षेत्र के भाजपा उम्मीदवार विजेंद्र गुप्त को चुनौती दी है कि वे टीवी चैनल पर मेरे साथ बहस कर लें। पर, इसी तरह की बहस के लिए एलके आडवाणी ने जब मनमोहन सिंह को न्योता दिया, तो कपिल सिब्बल और कांग्रेस ने ऐसी बहस का विरोध करते हुए कहा कि यह अमेरिका नहीं है कि टीवी चैनलों पर बहस हो।
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