भारत की आजादी का अमृत महोत्सव
-एक पुनरावलोकन
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सुरेंद्र किशोर
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आजादी के तत्काल बाद के हमारे शासक ‘सुशिक्षित’ थे।
आज के शासक तो कुछ कांग्रेसी नेताओं के शब्दों में अनपढ़-गंवार व चाय बेचने लायक योग्यता रखने वाले हैं।
नीच हैं।
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आजादी के बाद के हमारे शासक जिन्होंने
कैम्ब्रिज में शिक्षा पाई थी--
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जवाहरलाल नेहरू(प्रधान मंत्री),
सरदार वल्लभ भाई पटेल,
उप प्रधान मंत्री(लंदन में वकालत की पढ़ाई की)
सी.डी.देशमुख(वित्त मंत्री)
मोहन कुमार मंगलम(केंद्रीय मंत्री)
एल.के. झा (रिजर्व बैंक के गवर्नर)
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जिन्होंने आॅक्सफोर्ड में शिक्षा पाई--
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इंदिरा गांधी(प्रधान मंत्री),
जाॅन मथाई(वित्त मंत्री)
एच.एम.पटेल(वित्त सचिव व वित्त मंत्री)
वी.के.कृष्ण मेनन(लंदन स्कूल आॅफ इकोनाॅमिक्स में शिक्षित )
आदि आदि आदि..............।
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मैंने सिर्फ 1985 के पहले के प्रमुख शासकों की चर्चा की है।
इनके सत्ता में रहते सौ पैसे घिसकर 15 पैसे रह गए।
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यदि किसी अन्य व्यक्ति ने कहा होता तो उसकी मंशा पर सवाल उठ जाता।
किंतु सन 1985 में प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने कहा कि दिल्ली से हमारी सरकार 100 पैसे भेजती है,किंतु लोगों तक सिर्फ 15 पैसे ही पहुंच पाते हैं।
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यानी, जब नींव में ही घुन लग गया,तो अंजामे गुलिश्ता.......!!!!
अब बताइए,हमारे पढ़े-लिखे शासकों ने हमारे 85 पैसे लूट में चले जाने का अघोषित प्रबंध कर दिया था।
यह शासन का कुप्रबंधन था या शासकों की बेईमानी ?
(चीन में कभी यह कहा गया था कि भारत सरकार अपने बजट का पैसा ऐसे लोटे में रखती है,जिसमें अनेक छेद हैं।)
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आजादी के बाद के भारतीय शासकों की ‘नीयत’ का एक नमूना--
आजादी के तत्काल बाद बिहार विधान सभा में
साठी लैंड रिस्टोरेशन विधेयक पर चर्चा चल रही थी।
(आजादी के तत्काल बाद (साठी)चम्पारण जिले की सैकड़ों एकड़ जमीन की प्रमुख कांग्रेसियों ने आपस में बंदरबांट कर ली थी।
बहुत बदनामी हुई तो गृह मंत्री सरदार पटेल ने उस जमीन की वापसी का बिहार सरकार को सख्त निदेश दिया।बिल उसी उद्देश्य से लाया गया था।किंतु नेता की मंशा बहस में ही प्रकट हो गई थी।यह भी कि आगे क्या होने वाला है !)
बिल पर बहस के दौरान एक कांग्रेसी नेता ने,जो बाद में मुख्य मंत्री तक बने थे,बिल का विरोध करते हुए कहा कि
‘‘हमने आजादी की लड़ाई में बहुत कष्ट सहे थे।
जिन लोगों ने सन 1857 के विद्रोह के समय अंग्रेजों का साथ दिया था,अंग्रेजों ने उन्हें तरह -तरह के ‘इनाम’-धन संपत्ति दिए थे।
हम भी चाहते हैं कि हम अपने बाल -बच्चों के लिए कोई सिलसिला बनाएं।’’
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जो लोग कहते हैं कि आरक्षण से गिरावट आती है,वे आॅक्सब्रिज शिक्षित शासकों के बारे में क्या कहेंगे जिनके राज में 85 प्रतिशत सार्वजनिक संसाधन लूट लिए गए ?
सरकारें सारे विकास व कल्याण पैसों से ही तो करती हैं।
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दरअसल सवाल नीति और शासकों के सुशिक्षित होने या न होने का नहीं हैं,बल्कि सवाल हमारे हुक्मरानों की नीयत का है।
इस कहानी का ‘मोरल’ यह है कि ईमानदार नेता किसी भी जाति -समुदाय-अधिक शिक्षित-कम शिक्षित समूह में हो सकते हैं।
भरसक उन्हें ही सत्ता में बैठाने का प्रबंध मतदाताओं को करना चाहिए जो सरकारी पैसों का रक्षक बने न कि लुटेरा।
अब सवाल यह भी है कि जिन्हें आप अनपढ़-गंवार व चाय बेचने लायक योग्यता रखने वाला, नीच कहते हैं,उसके राज में सौ पैसे घिसकर कितना रह जाता है ?
वैसे तो घिस तो अब भी रहा है।
किंतु क्या 100 से घटकर 15 हो जा रहा है ?
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15 अगस्त 2022
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