कानोंकान
सुरेंद्र किशोर
..........................
अदालती सजा-दर बढ़ाने के लिए गवाहों-अभियोजकों की सुरक्षा जरूरी
..............................................
इस देश में अदालती सजा की दर बढ़ाए बिना आपराधिक न्याय व्यवस्था को बेहतर बनाने का लक्ष्य अधूरा ही रहेगा।
देश में गवाहों को पोख्ता सुरक्षा प्रदान किए बिना सजा की दर बढ़ाना मुश्किल होगा।
सन 2018 में सरकार ने गवाह सुरक्षा स्कीम बनाई।
पर वह नाकाफी है।
याद रहे कि अमेरिका और जापान में अदालती सजा की दर लगभग 99 प्रतिशत है।जबकि, भारत में करीब 60 प्रतिशत।
अमेरिका में गवाहों की सुरक्षा की पक्की व्यवस्था है।
भारत में जितने लोगों के खिलाफ अदालतों में आरोप पत्र दाखिल किए जाते हैं,उनमें से सिर्फ 60 प्रतिशत आरोपितों को ही अदालतें सजा दे पाती हैं।इसके कई कारण हैं।
पर, अनेक मामलों में भयवश गवाह अदालत में उपस्थित ही नहीं होते।या फिर अपने पिछले बयान से वे पलट जाते हैं।
इसमें प्रलोभन भी भूमिका निभाता है।
..................................
अभियोजकों की सुरक्षा
................................
अभियोजकों की समस्या भी इस देश में गंभीर है।
वैसे यदा कदा खुद अभियोजक भी ‘‘प्रभाव’’ में आ जाते हैं।
कई बार राजनीतिक कारणों से भी अभिभोजक अपनी जिम्मेदारी निभा नहीं पाते।
लेकिन कुछ अभियोजक दुर्दांत अपराधियों और माफियाआंे के खिलाफ भी निष्पक्षतापूर्वक अभियोजन चलाते हैं।यदि उन मामलों में उन्हें सजा हो जाती है, तो अभियोजकों की जान पर उनके रिटायर होने के बाद भी खतरा बना रहता है।
याद रहे कि खतरा झेलने वाले ऐसे लोगों को उनके सेवाकाल में तो सुरक्षा प्रदान की जाती है।
किंतु रिटायर हो जाने के बाद उनकी सुरक्षा वापस ले ली जाती है।
यदि ऐसे संवेदनशील मामलों में सरकार ने रिटायर लोगों को भी सुरक्षा देने को लेकर नियम नहीं बनाया तो
संभव है कि एक दिन अनेक अभियोजक अपनी ड्यूटी में खतरा नहीं उठाएगा।
इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट का एक ताजा निर्णय उनके लिए चिंताजनक है।अदालत ने कहा है कि ‘‘हर सेवानिवृत पुलिस अफसर को चैबीसों घंटे सुरक्षा मुहैया कराना संभव नहीं।’’
.............................................
वादों की जगह काम देखिए
....................
चुनाव से पहले किस दल ने मतदाताओं से क्या -क्या वायदे किए थे,उसकी चर्चा सरकार बनने के बाद होती रहती है।
होनी भी चाहिए।
किंतु उस चर्चा से अधिक जरूरी बातें कुछ और भी हैं।
उनमें से महत्वपूर्ण बात यह है कि नई सरकार के कामकाज कैसे हो रहे हैं।
निर्माण,विकास और कल्याण से संबंधित योजनाओं पर सरकार कैसा काम कर रही है ?
कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार हो रहा है या नहीं ?
दरअसल इन कसौटियों पर किसी सरकार को कसा जाना चाहिए।
............................
भूली-बिसरी याद
.........................
सत्तर के दशक में इस देश के एक
मशहूर व्यापारिक घराने के बारे में एक खास बात कही जाती थी।
वह बात अयोग्य स्टाफ के बारे में होती थी।
जिन कर्मचारियों से प्रबंधन नाराज हो जाता था।
ऐसे कर्मियों को भी है वह घराना एकबारगी नौकरी से निकाल नहीं देता था।
वैसे कर्मियों को वह पहले की अपेक्षा बहुत अधिक वेतन के साथ अधिक ऊंचे पदों पर बैठा देता था।
उन्हें आरामदायक चेम्बर और आदेशपाल दे दिया जाता था।
किंतु वह कुछ ही महीनों के लिए।
उसके बाद उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाता था।
वैसे पदच्युत बेचारे उतनी ही बड़ी कुर्सी के लिए अन्य घरानों में आवेदन पत्र पहुंचाने लगते थे।
उससे छोटी कुर्सी अब उन्हें नहीं चाहिए।बड़ी कुर्सी तो मिलने से रही।
अंत में निराश होकर वे घर बैठ जाते थे।
इसी तरह का हाल इन दिनों राजनीति में भी यदाकदा देखा जा रहा है।
किसी नेता को एक बार संसद या विधान मंडल का सदस्य बना दिया गया तो उसमें ताउम्र उस सदस्यता को बनाए रखने की उत्कंठा तीव्र हो जाती है।यह बात उच्च सदनों की सदस्यता पर अधिक लागू होती है।
मूल पार्टी से उसका नवीकरण नहीं हुआ तो वह विभिन्न दलों
की चैखटों पर बारी -बारी से सिर नवाने लगता है।
उन में से कुछ नेता तो अंततः विफल ही होते हैं।
इस तरह उनके राजनीतिक कैरियर का अंत हो जता है।
................................
और अंत में
...................
स्वास्थ्य,शिक्षा और व्यक्तिगत सुरक्षा की समस्याएं व्यापक हैं। इनके हल के लिए सिर्फ सरकारों पर ही निर्भर नहीं रहा जा सकता।सरकारों से तो जो कुछ बन पाता है,वे करती ही रहती हैं।
पर,साथ-साथ, इन समस्याओं को हल करने के लिए नागरिकों को भी अपनी तरफ से कुछ पहल करनी होगी।खासकर वैसे नागरिक को, जो आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत समर्थ हैं।यानी,वे अन्य मदों की अपनी फिजूलखर्ची कम करके भी इन तीन मदों में पहले की अपेक्षा अब अधिक खर्च करें।व्यक्तिगत सुरक्षा भी कम महत्वपूर्ण नहीं है।
...........................
प्रभात खबर,पटना 15 अगस्त 22
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें