राजनीतिक क्षेत्र का ‘चंद्रमा’ कभी -कभी खुद को ‘सूर्य’ समझने लगता है।
नतीजा क्या होता है ?
चंद्रमा सूर्य तो बन नहीं सकता,चंद्रमा भी नहीं रह जाता।
पिछले कुछ दशकों में बिहार में भी ऐसा कई बार हो चुका है।
तारे बने कई चंद्रमा, अब भी जहां-तहां,यदा-कदा टिमटिमाते रहते हैं।
फिर भी कुछ आतुर नेतागण अपने कैरियर की कीमत पर यह सब दोहराते रहते हैं।
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सुरेंद्र किशोर
2 अगस्त 22
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