मंगलवार, 9 अगस्त 2022

 पार्थ व अर्पिता के बैंक खातों से तीन साल में 700 करोड़ रुपये का लेन देन

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आज के दैनिक जागरण में जो अभूतपूर्व खबर छपी है,उसका शीर्षक यही है।

मैंने अभूतपूर्व इसलिए लिखा क्योंकि ऐसी खबर मैंने इससे पहले नहीं पढ़ी थी।

आपने पढ़ी हो तो मेरा ज्ञानवर्धन कीजिए।

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एक प्रदेश में कैबिनेट मंत्री रहे नेता का यह हाल है।

यह तो एक नमूना है।

  इस देश में ऐसे-ऐसे  अनेक लुटेरे सक्रिय हैं जो मध्य युग और ब्रिटिश शासन काल के लुटेरों से भी आगे निकल गए हैं।

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आजादी के बाद के कुछ वर्षों तक राजनीति सेवा थी।

हालांकि कुछ सत्ताधारी नेतागण तो आजादी के तत्काल बाद से ही लूटने लगे थे।

उनका तर्क यह था कि हमने आजादी की लड़ाई के दिनों में बहुत कष्ट झेले थे। अब हम अपने बाल-बच्चों के लिए कुछ

सिलसिला बनाना चाहते हैं।(बिहार विधान सभा के वाद-विवाद से )

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आजादी के तत्काल बाद राजनीति सेवा थी।

 बाद में वह नौकरी हो गई जब पूर्व सांसदों के लिए पेंशन का प्रावधान किया गया।

समय बीतने साथ राजनीति काॅमर्स हो गई।

अंततः राजनीति अब उद्योग है।

हालांकि अब भी राजनीति में दो-चार प्रतिशत लोग ईमानदार हैं।

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जब किसी नेता के बैंक खातों से तीन साल में 700 करोड़ रुपयों का लेन देन होने लगे तो उस नेता को आप नेता कहेंगे  या उद्योगपति ?

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यह देश जिन दो समस्याओं से सर्वाधिक पीड़ित है,वे हैं सरकारी भ्रष्टाचार और आतंकवाद।

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सुरेंद्र किशोर

9 अगस्त 22     


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