शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2022

  नेतृत्व की अदूरदर्शिता के कारण ही सन 1962 में हमें 

चीन के हाथों शर्मनाक पराजय का मुंह देखना पड़ा

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   सुरेंद्र किशोर

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20 अक्तूबर, 1962 को चीन ने युद्ध में भारत को हराया था।

उन्हीं दिनों प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि मुझे असमवासियों के प्रति र्हािर्दक सहानुभूति है जिन्हें हम बचा नहींे पा रहे हैं।

   चीन के हाथों हमारी पराजय हमारे शासकों की अदूरदर्शिता के कारण हुई।

इस पर बहुत सारी बातें लिखी जा चुकी हैं।मैं सिर्फ दो-तीन बातों की याद दिलाऊंगा।

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 हंडरसन -भगत रिपोर्ट

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  चीन-भारत युद्ध में पराजय के कारणों की जांच का भार  भारतीय सेना के दो अफसरों को  

सौंपा गया था।

उनके नाम हैं 

 लेफ्टिनेंट जनरल हंडरसन ब्रूक्स और 

ब्रिगेडियर पी.एस..भगत ।

 सन् 1963 में ब्रूक्स-भगत रपट आई ।

 उसे तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल जे.एन.चैधरी ने अपने  कवर लेटर के साथ रक्षा मंत्रालय को भेज दिया था।

केंद्र सरकार ने इसे वर्गीकृत यानी गुप्त सामग्री का दर्जा 

देकर दबा दिया।

 आखिर उसे क्यों दबा दिया गया ?

क्या उस रपट के प्रकाशन से तत्कालीन भारत सरकार और उसके नेतृत्व की छवि को नुकसान होने वाला था ?

 क्या यह बात सही है कि उस रपट के अब भी सार्वजनिक हो जाने पर आज के कुछ नेताओं की बोलती बंद हो जाएगी ?

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जनरल बी.एम. कौल के शब्दों में 

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  इस हार की कहानी लिखी है ले.ज.बी.एम.कौल ने अपनी चर्चित पुस्तक ‘द अनटोल्ड स्टोरी’ में।

कौल ने हार के लिए प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू,रक्षा मंत्री वी.के.कृष्ण मेनन और वित्त मंत्री मोरारजी देसाई को मुख्यतः उत्तरदायी ठहराया। 

हालांकि खुद को उन्होंने जिम्मेवार नहीं ठहराया है।

खुद को कितने लोग जिम्मेवार मानते हैं ! 

मेनन और देसाई ने तो बाद में कौल के आरोपों का खंडन किया था।

पर खंडन के लिए तब नेहरू जीवित नहीं थे जब 1967 में पुस्तक छपी।

पर, उस किताब पर तब देश-विदेश में उन दिनों काफी चर्चाएं हुई थंीं।

  कौल के अनुसार,‘नेहरू और  मेनन को बार -बार चीनी हमले की चेतावनी दी गई थी।

उनसे आग्रह किया गया था कि वे हिन्दुस्तानी फौजांे को नये और आधुनिक हथियारों से लैस करें।

मगर दोनों ही नेताओं ने इस पर ध्यान नहीं दिया।

क्योंकि उन्हें चीन की सैन्य शक्ति और तैयारी का कोई अंदाज नहीं था।’

‘........मेनन यह मांग स्वीकार करने को तैयार ही नहीं थे कि हिन्दुस्तानी फौजों की जरूरत के हथियार बनाने का काम गैर सरकारी उद्योग को भी दिया जाए।

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एक युद्ध संवाददाता के शब्दों में 

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देश के प्रमुख पत्रकार मन मोहन शर्मा के अनुसार,

‘‘एक युद्ध संवाददाता के रूप में मैंने चीन के हमले को कवर किया था।

  मुझे याद है कि हम युद्ध के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे।

 हमारी सेना के पास अस्त्र,शस्त्र की बात छोड़िये,कपड़े तक नहीं थे।

 नेहरू जी ने कभी सोचा ही नहीं था कि 

चीन हम पर हमला करेगा।(जबकि विस्तारवादी चीन तिब्बत को हड़प चुका था।)

एक दुखद घटना का उल्लेख करूंगा।

अंबाला से 200 सैनिकों को एयर लिफ्ट किया गया था।

उन्होंने सूती कमीजें और निकरें पहन रखी थीं।

उन्हें बोमडीला में एयर ड्राप कर दिया गया

जहां का तापमान माइनस 40 डिग्री था।

वहां पर उन्हें गिराए जाते ही ठंड से सभी बेमौत मर गए।

  युद्ध चल रहा था।

मगर हमारा जनरल कौल मैदान छोड़कर दिल्ली आ गया था।

ये नेहरू जी के रिश्तेदार थे।

इसलिए उन्हें बख्श दिया गया।

हेन्डरसन जांच रपट आज तक संसद में पेश करने की किसी सरकार में हिम्मत नहीं हुई।’’

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और अंत मंे

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एक अन्य खबर के अनुसार,चीनी हमले से पहले रक्षा मंत्रालय ने जरूरी खर्चे के लिए वित्त मंत्रालय से एक करोड़ रुपए मांगे थे। किंतु वित्त मंत्री और प्रधान मंत्री ने एक करोड़ रुपए भी नहीं दिए।

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20 अक्तूबर 22 




   


 

 


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