बुधवार, 19 अक्टूबर 2022

 कानोंकान

सुरेंद्र किशोर

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बिहार से उठ रही राष्ट्रीय स्तर पर पिछड़ी जातियों  के वर्गीकरण की मांग 

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बिहार जनता दल (यू) के प्रदेश प्रवक्ता अरविंद निषाद ने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह केंद्रीय स्तर पर अति पिछड़ा वर्ग का वर्गीकरण करे।

उससे देश की कमजोर जातियों का विकास संभव हो पाएगा।

इस विषय के जानकार लोग बताते हैं कि यह मांग जायज है।

यह एक पुरानी मांग है।

लगभग ऐसी ही मांग को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार ने सन 2017 में रोहिणी न्यायिक आयेाग का गठन किया था।     

उस आयोग ने मंडल आरक्षण के तहत निर्धारित 

27 प्रतिशत आरक्षण को चार भागों में बांट देने की 

सिफारिश केंद्र सरकार से कर दी है।

पर,सवाल है कि उस सिफारिश को लागू करने में केंद्र सरकार के सामने कौन सी दिक्कत आ रही है ?

रोहिणी आयोग ने विस्तृत सर्वे के बाद यह सिफारिश की है।

   यदि रोहिणी आयोग की सिफारिश मान ली गई तो केंद्र की सूची में शामिल 97 मजबूत पिछड़ी जातियों को 27 में 10 प्रतिशत आरक्षण का हिस्सा मिलेगा।

  1674 जातियों को दो प्रतिशत, 534 जातियों को 6 प्रतिशत और 328 जातियों को 9 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा।

इससे जदयू की ताजा मांग को भी काफी हद तक पूरा किया जा सकेगा।

  वर्षों से यह एक संवेदनशील मामला रहा है।

आरोप लगता रहा है कि आरक्षण का अधिक लाभ मजबूत पिछड़ी जातियों को ही मिलता रहा है।

रोहिणी आयोग ने भी पाया कि कुल 2633 पिछड़ी जातियों में से करीब 1000 जातियों को तो आज तक आरक्षण को कोई लाभ मिला ही नहीं।

  उम्मीद की जानी चाहिए कि रोहिणी आयोग की रपट लागू करने में  ‘‘चुनावी राजनीति’’ केंद्र सरकार के समक्ष बाधक नहीं बनेगी।

सन 1990 में केंद्रीय सेवाओं में पिछड़ों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की वी.पी.सिंह सरकार ने घोषणा की।

यह विषय कोर्ट में चला गया।इसलिए सरकार  इस संबंध 1993 में ही अधिसूचना जारी कर सकी।

 करीब तीन दशक के बाद भी आज स्थिति यह है कि 27 में से सिर्फ औसतन 19 प्रतिशत सीटें ही भर पाती हैं।

जानकार लोगों को कहना है कि यदि पिछड़ों का वर्गीकरण हो जाए तो पूरी सीटें भर जाने की उम्मीद की जा सकती है।

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  दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई

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दंगा पीड़ितों को न्याय मिलने की तीन खबरें हाल में आई हंै।

एक खबर मध्य प्रदेश और दो खबरें उत्तर प्रदेश से आई हैं।

सन 2013 में मुजफ्फर नगर में दंगा हुआ था।उस सिलसिले में हाल में निचली अदालत ने भाजपा विधायक विक्रम सैनी तथा अन्य कुछ लोगों को दो-दो साल की सजा दी है।

 सन 2006 में डेनमार्क में बनाए गए एक विवादास्पद कार्टून को लेकर मुजफ्फर नगर में दंगे हुए थे।उस संबंध में हाल में कोर्ट ने फैसला दिया है।दस दंगाइयों को सजा दी गई है।

एक खबर मध्य प्रदेश के खरगौन की है।

गत रामनवमी के अवसर पर वहां दंगे हुए थे।

‘‘क्लेम ट्रिब्यूनल’’ ने हाल में यह आदेश दिया है कि 50 दंगाइयों से साढ़े सात लाख रुपए वसूले जाएंगे।

वहां के चार मामलों में बहुसंख्यकों को मुआवजा मिलेगा।अन्य दो प्रकरणों में अल्पसंख्यकों को हर्जाना मिलेगा।

  यदि इस देश में दंगाइयों के खिलाफ सजा में तेजी आने लगे तो आगे कुछ करने से पहले दंगाई सौ बार सोचेंगे।

यदि कानूनी तौर पर संभव हो तो दंगाइयों की आर्थिक रीढ़ तोड़ने की भी जरूरत है।

उसका असर पड़ता है।

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सेंसर बोर्ड पर ध्यान दे अदालत

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यह बहुत अच्छी बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक वेब सीरीज

को आपत्तिजनक बताते हुए निर्माता को फटकार लगाई है।

सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही कहा है कि यह अदालत उनके लिए काम करती है जिनके पास आवाज नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट की यह पहल सराहनीय है।

पर, इतना ही से काम नहीं चलेगा।

सुप्रीम कोर्ट को एक और काम करना होगा।

वह उस संगठन के कामकाज पर गहराई से गौर करे जो ऐसे वेब सीरीज को प्रमाण पत्र देता है।

वैसे फिल्म सेंसर बोर्ड की हालत सुधारने की नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने प्रारंभिक वर्षों में बड़ी कोशिश की थी। सरकार उस काम में सफल नहीं हो पाई।

इस काम का जिम्मा व्यापक देशहित में सुप्रीम कोर्ट को उठाना चाहिए।

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रक्षा उत्पाद का निर्यात

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 गत साल भारत सरकार ने 13 हजार करोड़ रुपए के रक्षा उत्पादों का निर्यात किया।

यह निर्यात बढ़ता ही जा रहा है।

सबसे बड़ा खरीदार अमेरिका है।

अब अपने देश में रक्षा सामग्री के उत्पादन में तेजी आई है।

अनेक रक्षा उत्पादों के आयात पर मोदी सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया है।वे उत्पाद स्वदेश में ही बन रहे हैं या गैर जरूरी हैं। रक्षा उत्पाद पहले भी इसी देश में बनाए जा सकते थे।

पर,जानकार लोग  कहते  हैं कि आयात में कमीशनखोरी की गुंजाइश बनाए रखने के लिए जानबूझ कर इस देश में रक्षा उत्पादन को बढ़ाया नहीं गया।

ध्यान रहे कि कुछ साल पहले बोफोर्स घोटाले जैसे अनेक रक्षा घोटाले आए दिन इस देश में हुआ करते थे।

  रक्षा उत्पादों के मामलों में स्वावलंबी देशों को विश्व मंच पर  भी अधिक महत्व मिलता है।  

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और अंत में

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एक बार डा.राम मनोहर लोहिया ने जयप्रकाश नारायण से कहा था,‘‘आप अपनी राय तो कभी बताते नहीं,सिर्फ दूसरों की सुनते हैं।’’

उस पर जेपी हंस कर बाले,‘‘सबको साथ लेकर चलना है तो सबकी राय सुननी चाहिए।

अगर शुरू में ही मैं अपनी राय दे दूं तो लोग अपनी राय देने में संकोच करेंगे।’’

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प्रभात खबर

पटना 17 अक्तूबर 22



 


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