शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2022

 बिहार केसरी डा.श्रीकृष्ण सिंह की 

जयंती के अवसर पर

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श्रीबाबू का जीवन ही उनका संदेश था

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   सुरेंद्र किशोर

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महात्मा गांधी ने कहा था कि 

‘‘मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।’’

बिहार में लंबे समय तक मुख्य मंत्री रहे श्रीबाबू के जन्म दिन के अवसर पर फिलहाल यहां उनके सिर्फ दो गुणों की चर्चा करूंगा।

  सिर्फ दो ही इसलिए क्योंकि आज की राजनीति में उन गुणों का नितांत अभाव होता जा रहा है।

इस कारण देश-प्रदेश ही नहीं ,बल्कि कुछ राजनीतिक दलों का भी भारी नुकसान हो रहा है।

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रुपए-पैसों के मामलों में 

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सन 1961 में श्रीबाबू के निधन के 12 वें दिन तत्कालीन राज्यपाल की उपस्थिति में उनकी निजी तिजोरी खोली गयी थी।

   तिजोरी को तीन सदस्यीय समिति की देखरेख में खोला गया था।

  समिति के सदस्य थे तत्कालीन कार्यवाहक मुख्य मंत्री दीप नारायण सिंह,सर्वोदय नेता जयप्रकाश नारायण और राज्य के मुख्य सचिव एस.जे.मजुमदार। 

 तिजोरी में कुल 24 हजार 500 रुपए मिले।

वे रुपए चार लिफाफों में रखे गए थे।

एक लिफाफे में रखे 20 हजार रुपए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के लिए थे।

दूसरे लिफाफे में तीन हजार रुपए थे कांग्रेस नेता मुनीमी साहब की बेटी की शादी के लिए थे।

तीसरे लिफाफे में एक हजार रुपए थे जो कांग्रेस नेता महेश बाबू की छोटी कन्या के लिए थे।

चैथे लिफाफे में 500 रुपए उनके  विश्वस्त नौकर के लिए थे।

श्रीबाबू ने अपने पूरे शासन काल में कोई अपनी निजी संपत्ति नहीं खड़ी की।

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परिवारवाद के बारे में 

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चम्पारण के कुछ कांग्रेसी सन 1957 में श्रीबाबू से मिले।

कहा कि (उनके पुत्र)शिवशंकर सिंह को विधान सभा चुनाव लड़ने की अनुमति दीजिए।

श्रीबाबू ने कहा कि मेरी अनुमति है।

किंतु तब मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा।

क्योंकि एक परिवार से एक ही व्यक्ति को चुनाव लड़ना चाहिए।

(याद रहे कि यही बात कर्पूरी ठाकुर ने सन 1980 में अपनी पार्टी को कही थी जब कतिपय शीर्ष समाजवादी नेता रामनाथ ठाकुर को विधान सभा चुनाव में उम्मीदवार बनाना चाहते थे।) 

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श्रीबाबू के दो पुत्र थे - शिवशंकर सिंह और बंदी शंकर सिंह।

श्रीबाबू के निधन के बाद ही वे दोनों राजनीति में आए।

शिवशंकर सिंह विधायक बने और बंदी शंकर सिंह बिहार सरकार के मंत्री।

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21 अक्तूबर 22





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