संसद में लगातार बवाल,हंगामे और अशिष्टता से
राजनीति के प्रति नयी पीढ़ी की वितृष्णा बढ़ी
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संकेत हैं कि प्रतिपक्षी नेताओं के खिलाफ जारी
भ्रष्टाचार के मुकदमों के निपटारे तक न तो सदन
में शांति आएगी न ही सड़कों पर बवाल कम होगा
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सुरेंद्र किशोर
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प्रतिपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों में जारी मुकदमे जब तक अपनी तार्किक परिणति तक नहीं पहुंच जाते,तब तक संसद और संसद के बाहर अभूतपूर्व हंगामे और बवाल होते रहेंगे।
भारत की मौजूदा संसदीय प्रणाली और उसके बेतरतीब संचालन को लेकर पूरी दुनिया में लोग क्या सोचते होंगे,
उसकी जरा कल्पना कर देख लीजिए।
इस पर हमारी नयी पीढ़ी क्या सोच रही है,इस पर तो
मीडिया को सर्वे कराना चाहिए।
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इस विषम स्थिति में पीठासीन पदाधिकारियों और सत्ताधारी दलों की क्या जिम्मेदारी है ?
क्या वे संसद को हंगामा -सदन बनते देखते रहने के
लिए अभिशप्त हैं ?
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कत्तई नहीं।
पीठासीन पदाधिकारियों के पास सदन की कार्य संचालन नियमावली की ताकत है।
उनके पास अखिल भारतीय पीठासीन पदाधिकारी सम्मेलनों की अनेक तत्संबंधी सिफारिशों का बल है।
भीतर मार्शल तैनात हैं और बाहर सी.आई.एस.एफ. के दस्ते संसद भवन की रखवाली कर रहे हैं।
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मार्शलों को वेतन इसीलिए दिया जाता है ताकि
जरूरत पड़ने पर उनसे काम भी लिया जाये।
यदि मोदी सरकार कहती है कि भ्रष्टाचारियों और देशद्रोहियों के प्रति शून्य सहनशीलता की हमारी नीति है तो रोज-रोज सदन की गरिमा नष्ट करने वालों के प्रति
इतनी उदारता क्यों ?
नियम के खिलाफ आचरण करते पाए जाने पर सदस्यों को सदन से मार्शल के जरिए बाहर कीजिए।
दूसरे दिन यदि फिर वही सदस्य वैसा ही व्यवहार करता है तो उन्हें बाकी बैठकों से वंचित करिए।
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पचास और साठ के दशकों में जिस गरिमापूर्ण ढंग से
सदन की बैठकें हुआ करती थीं,उस गरिमा की पुनर्वापसी हो।
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24 जुलाई 24
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