सोमवार, 8 जुलाई 2024

 मच्छरों पर अब हथोड़ा भी कारगर नहीं।

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सुरेंद्र किशोर

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पटना की मुख्य सड़कों से अतिक्रमण हटाने की कोशिश कमिश्नर स्तर के अफसर वर्षों से बार- बार कर रहे हैं।

वे कितना सफल हुए हैं ?

(जाम में घंटों तक फंसे रह जाने के डर से मैं शहर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता।) 

आजादी के तत्काल बाद के वर्षों में यह काम एक थानेदार सफलतापूर्वक कर देता था।जिस काम के लिए एक थानेदार काफी था,वह काम आज कमिश्नर से भी क्यों नहीं 

हो पा रहा है ?

क्योंकि अतिक्रमण के कारण सड़क जाम के मूल कारणों को दूर नहीं किया जाता।

उसके मूल कारणों पर जाइए।उसका इलाज कीजिए।कमिश्नर-कलक्टर के पदों को हास्यास्पद मत बनाइए।उनकी नैतिक-प्रशासनिक धाक का मजाक मत उड़ने दीजिए।पटना में जब बड़े अफसर फेल होते हैं तो उसका 

नकारात्मक असर नीचे तक के प्रशासन तंत्र पर पड़ता है।

भ्रष्ट और काहिल लोग बेफिक्र हो जाते हैं।

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बिहार की ध्वस्त सरकारी स्कूली शिक्षा को ठीक करने का काम मुख्य सचिव स्तर के अफसर के.के.पाठकजी महीनों तक करते रहे।

कितना सफल हो पाये ?

अब वही काम मुख्य सचिव स्तर के दूसरे अफसर सिद्धार्थ साहब कर रहे हैं।कितना सफल होंगे ?

मुझे तो उनकी सफलता पर शक है।

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इसे ही कहते है मच्छर मारने के लिए हथोड़े का इस्तेमाल करना।

फिर भी मच्छर नहीं मर रहे हैं।

यह तो हथौड़े की भी बेइज्जती है।

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पटना के कमिश्नर खुद सड़कों पर खड़े होकर बार -बार मुख्य सड़कों से अतिक्रमण हटवाते हैं और फिर 

वैतलवा डाल पर चला जाता है !!

दरअसल कमिश्नर साहब को छोड़कर बाकी अधिकतर जनता यह जानती है कि अतिक्रमण के मूल कारण क्या हैं।मूल कारण का इलाज नहीं कीजिएगा तो आपकी भूमिका एक सफाई कर्मचारी से भी कमजोर साबित होती रहेगी।

सफाई मजदूर हर सुबह सफाई करता है।उसे फिर अगली सुबह सफाई करनी पड़ती है।

पर,कमिश्नर साहब सुबह अतिक्रमण हटवाते हंै और शाम तक फिर उसी जगह पर अतिक्रमण हो जाता है।

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के.के.पाठक साहब और सिद्धार्थ जी को छोड़कर सारे संबंधित लोग जानते हैं कि ध्वस्त शिक्षा -व्यवस्था के असली कारण क्या-क्या हैं।

पर,उस पर चोट नहीं की जाती।क्योंकि उन भ्रष्ट और कालि लोगों की ताकत किसी सरकार से अधिक है।

टी.बी.की बीमारी है और डाक्टर सर्दी-खांसी का इलाज कर रहे हंै।

साठ के दशक में मैं स्कूली छात्र था।तब एक स्कूल सब इंस्पेक्टर से पूरा शिक्षा तंत्र कांपता था।

आज मुख्य सचिव की भी परवाह नहीं करता।दरअसल अत्यंत थोड़े से अपवादों को छोड़कर पूरा शिक्षा तंत्र सड़ चुका है।उसके लिए अपवादों को छोड़कर नीचे से ऊपर तक के सबंधित लोग जिम्मेदार हैं।

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यानी, अतिक्रमण हटाने और शिक्षातंत्र को ठीक करने का काम करने के लिए मुझे लगता है कि ऐसे किसी ‘‘नर सिंहावतार’’ की जरूरत पड़ेगी जो नरों में सिंह हो।क्या ऐसा कभी हो पाएगा ?

पता नहीं।

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8 जुलाई 24


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