मोतीलाल नेहरू ने गांधीजी की मदद से वंशवाद-परिवारवाद
का जो पौधा 1929 में रोपा था,वह अब वट वृक्ष बन रहा है
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लोकतांंित्रक भारत के ‘रजवाड़ो’ं की संख्या भी ब्रिटिश भारत के
565 रजवाड़ों की संख्या तक पहुंचने में अधिक दिन नहीं लगंेगे
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सुरेंद्र किशोर
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यहां पहुंच रही ताजा खबर के अनुसार कर्नाटका के पूर्व मुख्य मंत्री व कांग्रेस नेता सिद्धरमैया ने अपने बेटे को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है।
इतना ही नहीं,उन्होंने यह भी कहा कि 17 साल का मेरा पोता भी 8 साल के बाद चुनावी राजनीति में प्रवेश करेगा।
(याद रहे कि जब सिद्धरमैया मुख्य मंत्री थे तो उन्होंने किसी से 70 लाख रुपए की घड़ी उपहार के रूप में स्वीकार की थी।)
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उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार कांग्रेस में वंशवाद मोतीलाल नेहरू ने शुरू किया था।
तत्कालीन कांग्र्रेस अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू ने सन 1928 में महात्मा गांधी को बारी -बारीे से तीन चिट्ठयां लिखीं।
उनमें उन्होंने गांधी से आग्रह किया कि वे 1929 में जवाहरलाल को कांग्रेस अध्यक्ष बनवा दें।
पहली दो चिट्ठयों पर तो गांधी नहीं माने थे।
वे तब जवाहर को उस योग्य नहीं मानते थे।
पर, तीसरे पत्र पर गांधी जी मान गए।
(ये सारी चिट्ठयां मोतीलाल पेपर्स के रूप में नेहरू मेमोरियल,नई दिल्ली में उपलब्ध हैं।)
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अब आइए सन 1958-59 में।
सन 1958 में इंदिरा गांधी कांग्रेस कार्यसमिति की सदस्य बनीं।
कल्पना कीजिए,कितने बड़े -बड़े स्वतंत्रता सेनानी तब सदस्य बनने के काबिल थे।(कार्य समिति के करीब दो दर्जन ही सदस्य होते हैं।)
पर, उन्हें नजरअंदाज किया गया।
यही नहीं,इंदिरा गांधी सन 1959 में कांग्रेस अध्यक्ष बना दी गईं।
कांग्रेस सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री महावीर त्यागी ने इंदिरा गांधी को अध्यक्ष बनाए जाने के विरोध में जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखा।
नेहरू ने जवाब दिया,
‘‘ .......मेरा यह भी ख्याल है कि बहुत तरह से इस वक्त उसका (इंदु का) कांग्रेस का अध्यक्ष बनना मुफीद हो सकता है।’’
----पुस्तक -आजादी का आंदोलन -हंसते हुए आंसू--लेखक -महावीर त्यागी-पेज नंबर-230
प्रकाशक-किताब घर,नई दिल्ली।
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संजय गांधी,राजीव गांधी,सोनिया गांधी और राहुल गांधी तक कैसे उत्तराधिकार सौंपने का बारी -बारीे से काम हुआ,वह सब तो ताजा इतिहास है।आप सब जानते ही हैं।
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वंशवाद-परिवारवाद की संक्रामक बीमारी नेहरू-गांधी परिवार तक ही कैसे सीमित रह सकती थी !
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1947 के बाद देश के नए राजनीतिक रजवाड़े !!
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नोट-किसी का वंशज या परिजन राजनीति में आगे आए,इसमें किसी को कोई एतराज नहीं होना चाहिए।
पर अयोग्य वंश को किसी दल के शीर्ष पर थोपा न जाए।
अयोग्य वंशजों की लगातार चुनावी विफलताओं के बावजूद उसे शीर्ष पर ही बनाए नहीं रखा जाए।
क्योंकि राजनीतिक दल किसी व्यापारी का कारखाना नहीं होता।
उससे लाखों-करोड़ों लोगों व हजारों कार्यकत्र्ताओं की उम्मीदें जुड़ी होती हैं।
लोकतंत्र का स्वरूप भी उससे तय होता है--यानी स्वस्थ लोकतंत्र या बीमार लोकतंत्र ?
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पर,अब तो लगता है कि इस देश के विभिन्न राजनीतिक परिवारों की संख्या एक दिन पहले जैसी 565 तक पहुंच सकती है।
आज भी सैकड़ों छोटे -बड़े राजनीतिक परिवार मौजूद हैं जिनके दादा-पिता-पोता बारी -बारी या एक साथ किसी न किसी सदन के सदस्य होते रहे हैं।
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जिन दलों में यह बीमारी पहले नहीं थी,उसमें भी अब लग गई।
केरल के सी.एम.एम.मुख्य मंत्री के दामाद उनके मंत्रिमंडल में हंै।
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तेलांगना के मुख्य मंत्री के.चंद्रशेखर राव के पुत्र भी उनके मंत्रिमंडल में हैं।
कर्नाटका में देवगौड़ा के परिवार के करीब आधा दर्जन सदस्य या तो विधायिका के सदस्य हैं या चुनाव लड़ रहे हैं।
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आंध्र और तमिलनाडु के राजनीतिक परिवारों को तो आप जानते ही हैं।
देश के अन्य प्रदेशों खास कर हिन्दी प्रदेशों का हाल तो और भी जग जाहिर है।
दिक्कत यह है कि इन अधिकतर वंशवादी-परिवारवादी दलों के सदस्यों के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। यह आरोप भी है कि अधिकतर दल खूंखार अपराधियों और टुकड़े -टुकड़े गिरोहों के साथ साठगांठ भी रखते हैं।
यह सब देश की सुरक्षा -सार्वभौमिकता-स्वतंत्रता के लिए अत्यंत चिंता की बात है।
इसी तरह ही विभक्त व परस्पर विरोधी राजनीतिक पृष्ठभूमि के रजवाड़ों कारण समय -समय पर विदेशी आक्रांताओं ने हम पर हमला करके हमें गुलाम बनाया था।
विदेशी ताकतें अब भी अपने अलग तरह के बल्कि अधिक खतरनाक लक्ष्य को साधने के लिए हथियारों के साथ मुख्य भूमि व सीमाओं पर सक्रिय हैं।
देश का दुर्भाग्य है कि अधिकतर वंशवादी-परिवारवादी दलों के लिए न तो भीषण भ्रष्टाचार कोई मुद्दा है और न ही इस देश के लगभग रग- रग में सक्रिय जेहादी संगठन।
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21 अप्रैल 23
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