गांधी जी की बहुत सी बातें सीखने लायक हैं।
कुछ बातेें नहीं भी सीखने लायक हैं।
इस पोस्ट में उनसे सीखने लायक एक बहुत ही
जरूरी बात बताता हूं।
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गांधी का अस्वाद व्रत
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सुरेंद्र किशोर
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महात्मा गांधी ने कहा था कि
‘‘मेरा अनुभव है कि अगर मनुष्य
अस्वाद व्रत में पार उतर सके तो ,
तो संयम बिलकुल सहल हो जाएगा।’’
गांधी ने कहा था कि ‘‘अस्वाद यानी स्वाद न लेना।
जैसे दवा खाते वक्त वह जायकेदार है या नहीं,इसका खयाल न रखते हुए शरीर को उसकी जरूरत है,ऐसा समझ कर उसकी निश्चित मात्रा में ही हम खाते हैं।
उसी तरह अन्न को समझना चाहिए।
अन्न यानी खाने लायक तमाम चीजें़ं।
कोई चीज स्वाद के लिए खाना व्रत भंग हैं।’’
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यह तो र्हुइं महात्मा गांधी की बातें।
अब आप आज के दौर को देखिए।
मैंने अपने आसपास के अनेक लोगांे को देखा है कि वे आए दिन ‘‘स्वाद व्रत’’ का पालन करते रहते हैं।
बाजार गए तो सामोसा लाना नहीं भूलते।
(सामोसा तो मैंने प्रतीक स्वरूप बताया)
शरीर की जरूरत नहीं,बल्कि जीभ के लोभ की पूर्ति में लगातार संलग्न रहते हैं।
नतीजतन वैसे लोग अपनी आयु खुद ही कम करते जाते हैं।
अस्पतालों व चिकित्सकों की लगातार आय बढ़ाते जाते हैं।
अंततः परिवार व निर्भर लोगों को बिलखते छोड़कर समय से पहले गुजर जाते हैं।
अनके नेता लोग भी यही करते रहे हैं जबकि उनकी ओर करोड़ों लोग श्रद्धा,विश्वास और उम्मीद भरी नजरों से देखते रहते हैं।
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जो जिद्दी नहीं हैं,यानी जो दूसरों की अच्छी सलाह मान लेने में अपनी हेठी नहीं समझते ,वे अगली गांधी जयंती के अवसर पर यह व्रत ले सकते हैं कि वे भरसक ‘अस्वाद व्रत’ का पालन करेंगें।
गंाधी की अन्य बहुत सारी बातों को आप अनुकरणीय मानें या न मानें,किंतु अपने शरीर को ठीक रखने वाली उनकी बातों पर तो गौर कीजिए।
यदि एक सिर फिरे ने गांधी की हत्या न कर दी होती तो वे सौ साल जरूर जीवित रहते।
कहते हैं कि विधाता ने सौ से सवा सौ साल जीने लायक हमारा शरीर बनाया है।
यह आप और हम पर है कि उस अवधि को हम कितना कम कर देते हैं।
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23 अप्रैल 23
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