मंगलवार, 30 जुलाई 2024

 मोदी के तीसरी बार सत्ता में आ जाने के बाद 

भ्रष्ट और राष्ट्रद्रोही तत्व जरूर अब ‘‘भय के 

चक्रव्यूह’’ में फंस गये हैं।

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वैसे यह ढीली-ढाली मोदी सरकार उनके खिलाफ कितना कठोर और कारगर शिकंजा कसने के उपाय कर पाएगी,यह तो अगले कुछ महीनों में ही पता चल पाएगा।

कहते हैं कि --‘‘उम्मीद पर दुनिया जिन्दा है।’’

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सुरेंद्र किशोर

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लोक सभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी (कांग्रेस)ने कल सदन में कहा कि 

‘‘देश भय के चक्रव्यूह में फंस गया है।’’

क्या यह आरोप सही है ?

इसके जवाब में अलग -अलग तरह के लोग अलग -अलग तरह से चर्चा करेंगे।करने दीजिए।उनसे मुझे कोई एतराज नहीं।

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पर,इस देश के लोगों का  एक हिस्सा ऐसा भी है जिसका मानना है कि मुख्यतः दो ही तरह के लोग अब कुछ अधिक ही भयभीत हो उठे हंै।

 क्योंकि उन्हें अब ‘‘माफी’’ की उम्मीद नहीं।

गत लोक सभा चुनाव के बाद वे कुछ अधिक ही भयभीत हो उठे हैं।

क्योंकि उन तत्वों को यह उम्मीद ही नहीं थी कि नरेंद्र मोदी तीसरी बार भी सत्ता में आ जाएंगे।

क्योंकि मोदी विरोधी देसी-विदेशी शक्तियों ने खास कर अरबपति जार्ज सोरेस ने पिछले लोक सभा चुनाव में अपनी ओर से यह पक्का ‘‘इंतजाम’’ कर दिया था कि मोदी सत्ता में न आ पायें।

ताकि, इस देश की बड़ी -बड़ी हस्तियों के खिलाफ गंभीर आरोप में जो मुकदमे चल रहे हैं,उन्हें रफा दफा किया जा सके।

साथ ही, एक अन्य तरह के तत्व यह उम्मीद कर रहे थे कि मोदी के सत्ता में न आने के बाद उनका धार्मिक लक्ष्य 2047 तक पूरा हो ही जाएगा।

ऐसे दो तत्वों का भयभीत होना स्वाभाविक ही है। 

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अन्य कौन से अन्य तत्व कितना भयभीत हैं,यह तो आने वाले दिन ही बताएंगे।

लेकिन वे सांसद जरूर भयभीत लग रहे हैं जो संसद की कार्य संचालन नियमावली से काफी अलग हट कर सदन में अंट -शंट बके जा रहे हैं।

 इस क्रम में न तो वे स्पीकर की गरिमा का ध्यान रख रहे हैं और न ही खुद उन्हें इस बात का अंदाज  है कि वे क्या बोलना चाहते हैं और क्या बोल रहे हैं।

सदन का इतना अवमूल्यन इससे पहले कभी नहीं हुआ था।

आश्चर्य है कि प्रधान मंत्री और स्पीकर यह सब होने दे रहे हैं।

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यदि अवमूल्यन इसी रफ्तार से जारी रहा तो जनता राष्ट्र कवि रामधारी सिंह ‘‘दिनकर’’ की कविता को याद करके एक दिन सभी पक्षों को कोसेगी जो आज सदन के सदस्य हैं।ं

वह कविता है--

‘समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,

जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध ।’

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30 जुलाई 24




 


शनिवार, 27 जुलाई 2024

 अमेरिका इजरायल से कह रहा है कि युद्ध बंद करो।

फिर भी इजरायल बंद नहीं कर रहा है।

क्योंकि इजरायल के प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू यह जान गये हैं कि यदि 

इजरायल, हमास को खत्म नहीं करेगा तो

एक दिन हमास, इजरायल को खत्म कर देगा।

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यूरोप के कुछ देशों जैसे ब्रिटेन,जर्मनी और फ्रांस में भी ऐसी ही स्थिति तैयार हो रही है।वहां जारी बम विस्फोटों व आगजनी-तोड़ फोड़ की ताजा घटनाओं से आप अनभिज्ञ नहीं होंगे,ऐसी उम्मीद है।वहां के अनेक मुस्लिम बहुल मुहल्लों से गैर मुस्लिम यानी मुख्यतः इसाइयों को भगाया जा रहा है।

पर,वे देश तो मानवाधिकार व शरणार्थियों के प्रति दया भाव वाले देश हंै।

इसलिए उनका भविष्य अनिश्चित है।

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कमोबेश वही हाल भारत का है।

यहां जेहादी गण कुछ सेक्युलर दलों व ताकतों की मदद से इस देश में अपनी ताकत तेजी से बढ़ाते जा रहे हैं।

किसी दिन विस्फोटों की शुरूआत के लिए तैयार रहिए।

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सुरेंद्र किशोर

27 जुलाई 24



बुधवार, 24 जुलाई 2024

 संसद में लगातार बवाल,हंगामे और अशिष्टता से 

राजनीति के प्रति नयी पीढ़ी की वितृष्णा बढ़ी

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संकेत हैं कि प्रतिपक्षी नेताओं के खिलाफ जारी 

भ्रष्टाचार के मुकदमों के निपटारे तक न तो सदन 

में शांति आएगी न ही सड़कों पर बवाल कम होगा

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सुरेंद्र किशोर

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प्रतिपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों में जारी मुकदमे जब तक अपनी तार्किक परिणति तक नहीं पहुंच जाते,तब तक संसद और संसद के बाहर अभूतपूर्व हंगामे और बवाल होते रहेंगे।

 भारत की मौजूदा संसदीय प्रणाली और उसके बेतरतीब संचालन को लेकर पूरी दुनिया में लोग क्या सोचते होंगे,

उसकी जरा कल्पना कर देख लीजिए।

इस पर हमारी नयी पीढ़ी क्या सोच रही है,इस पर तो 

मीडिया को सर्वे कराना चाहिए।

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इस विषम स्थिति में पीठासीन पदाधिकारियों और सत्ताधारी दलों की क्या जिम्मेदारी है ?

क्या वे संसद को हंगामा -सदन बनते देखते रहने के  

लिए अभिशप्त हैं ?

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कत्तई नहीं।

पीठासीन पदाधिकारियों के पास सदन की कार्य संचालन नियमावली की ताकत है।

उनके पास अखिल भारतीय पीठासीन पदाधिकारी सम्मेलनों की अनेक तत्संबंधी सिफारिशों का बल है।

भीतर मार्शल तैनात हैं और बाहर सी.आई.एस.एफ. के दस्ते संसद भवन की रखवाली कर रहे हैं।

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मार्शलों को वेतन इसीलिए दिया जाता है ताकि 

जरूरत पड़ने पर उनसे काम भी लिया जाये।

यदि मोदी सरकार कहती है कि भ्रष्टाचारियों और देशद्रोहियों के प्रति शून्य सहनशीलता की हमारी नीति है तो रोज-रोज सदन की गरिमा नष्ट करने वालों के प्रति 

इतनी उदारता क्यों ?

नियम के खिलाफ आचरण करते पाए जाने पर सदस्यों को सदन से मार्शल के जरिए बाहर कीजिए।

दूसरे दिन यदि फिर वही सदस्य वैसा ही व्यवहार करता है तो उन्हें बाकी बैठकों से वंचित करिए।

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पचास और साठ के दशकों में जिस गरिमापूर्ण ढंग से 

सदन की बैठकें हुआ करती थीं,उस गरिमा की पुनर्वापसी हो।

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24 जुलाई 24 


  


शनिवार, 20 जुलाई 2024

 इन दिनों ब्रिटेन जल रहा हैं ।

उसे कौन जला रहा है ?

घुसपैठिए और शरणार्थीगण--

जिन्हें वहां के मिरजाफरों ने पाल-पोस कर मजबूत किया है।

उसी तरह की बारूद पर भारत भी बैठा है।

यहां भी वैसे ही संकेत समय-समय पर मिलते रहते हैं।लेकिन हमारी चमड़ी तो थोड़ी मोटी है।

ब्रिटेन तथा इसी तरह की यूरोप में हो रही और होने वाली घटनाओं पर नजर रखिए।

भारत पर भी आने वाले वैसे ही भीषण बल्कि उससे भी अधिक खतरनाक खतरों से बच सकते हो, बचने की कोशिश अभी से शुरू कर दो।अन्यथा.......????

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सुरेंद्र किशोर

20 जुलाई 24


शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

 आवश्यकता आविष्कार की जननी 

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अब हेलमेट सिर्फ पारदर्शी बनें।

हत्यारे,लुटेरे तथा अन्य तरह के अपराधी आम तौर अपारदर्शी हेलमेट पहनते हैं।

 सरकार को चाहिए कि वह हेलमेट निर्माताओं पर दबाव डालकर अब पारदर्शी हेलमेट का ही उत्पादन कराए।

इससे पुलिस का बोझ हल्का होगा।अपराध भी कम होंगे।

क्योंकि अनुसंधान कार्य आसान होगा।

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आप कह सकते हैं कि पारदर्शी हेलमेट के पीछे चेहरे पर अपराधी फिर भी रुमाल बांध सकते हैं।

बांध सकते हैं।

किंतु उन्हें देखते ही पुलिस कौन कहे, राहगीर भी समझ जाएगा कि इनका इरादा बुरा है।

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सुरेंद्र किशोर

14 जुलाई 24  


गुरुवार, 18 जुलाई 2024

 एक घटना के चलते मेरा सामान्य ज्ञान बढ़ा।

निजी क्षेत्र में सूद का रेट चल रहा है 4 प्रतिशत मासिक यानी 48 प्रतिशत सालाना।

  सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के सूद का रेट अधिकत्तम 10 या 11 प्रतिशत सालाना है।

एक तरफ 11 प्रतिशत सालाना तो दूसरी ओर 

 48 प्रतिशत सालाना।

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संदर्भ --बिहार के एक पूर्व मंत्री के सूदखोर

 पिता की निर्मम हत्या 

18 जुलाई 24

 


बुधवार, 17 जुलाई 2024

 जरूरी हाजिरी विरोधी शिक्षकों के समक्ष योगी सरकार झुकी

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 चीन सरकार कहती है कि इस्लामिक जेहाद की समस्या का समाधान लोकतंत्र में संभव नहीं है।वह हमारी तरह की व्यवस्था में ही संभव है।

 दूसरी ओर, भारत की स्थिति तो यह बन गई है कि यहां जेहाद कौन कहे,शिक्षा-परीक्षा में कदाचार और सरकार में व्याप्त भीषण भ्रष्टाचार कम करना भी लोकतंत्र में संभव नहीं हो पा रहा है।

भ्रष्ट व्यवस्था में जेहाद खूब फलता-फूलता है।यहां फल-फूल रहा भी है।

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सुरेंद्र किशोर

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चीन सरकार का मानना है कि इस्लामिक जेहाद की समस्या का समाधान लोकतंत्र में संभव नहीं है।

चीन का शिंगजियांग प्रांत जेहादी आतंकवाद और अतिवाद से बुरी तरह पीड़ित है।

  नतीजतन वहां के जेहादी उइगर मुसलमानों का चीन सरकार अभूतपूर्व दमन कर रही है।

  यूं कहें कि उसे करना पड़ रहा है।

 चीन सरकार का कहना है कि हमारी सरकार का यह कर्तव्य है कि हम जनता को अतिवाद और आतंकवाद से बचाएं।

(दूसरी ओर भारत में बड़े पैमाने पर सक्रिय जेहादी आतंकवादियों से लड़ने के लिए आज उसी तरह इस देश के नेतागण बंटे हुए हैं जिस तरह मध्य युग में बंटे थे।)

भारत जैसे बहुदलीय लोकतंत्र में जेहाद कौन कहे,शिक्षा-परीक्षा की समस्या का समाधान भी संभव नहीं।

उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने शिक्षकों की अनिवार्य हाजिरी व्यवस्था को वापस लेकर अपनी सरकार बचा ली है।

 सन 1992 में कल्याण सिंह सरकार ने नकल विरोधी कानून बनाया।सपा ने 1993 के यू.पी.विधान सभा चुनाव में उसे सबसे बड़ा मुद्दा बनाया।नकल पक्षी जनता ने सपा को सत्ता सौंप दी। 

मुलायम सिंह सरकार ने सन 1994 में उस नकल विरोधी कानून को रद कर दिया।

दरअसल यू.पी.बोर्ड की परीक्षा में पहले से जारी भीषण कदाचार को पूरी तरह रोक देने के कारण कल्याण सिंह की सरकार सन 1993 के चुनाव में सत्ता से बाहर हो गई।

1992 में बाबरी ढांचा गिराने के कारण उत्पन्न भावना को भंजाने का चुनावी लाभ तक भाजपा को नहीं मिल सका था।

उत्तर प्रदेश की जनता के एक बड़े हिस्से की प्राथमिकता तो देखिए। सन 2024 के लोस चुनाव में वैसी ही प्राथमिकता फैजाबाद(अयोध्या)तथा अन्य चुनाव क्षेत्रों मेें नजर आई। 

सन 1993 में मुलायम सिंह यादव कदाचारी विद्यार्थियों व उनके अभिभावकों के ‘हीरो’ बन गए थे।शायद अनिवार्य हाजिरी को लेकर मौजूदा मुख्य मंत्री योगी को किसी ने 1993 की याद दिला दी होगी।

   यानी,मुझे तो यह लगने लगा है कि  चुनाव लड़ने वाली कोई भी पार्टी और उसकी सरकार आम परीक्षाओं में नकल नहीं रोक सकती।

 न ही नौकरियों के लिए आयोजित परीक्षाओं के प्रश्न पत्र लीक होने से रोक सकती है।

उसके लिए शायद देर-सबेर चीन की तरह किसी एकाधिकारवादी शासक की जरूरत पड़ेगी।मेरा अनुमान है कि वैसा हो सकता है ,पर तब तक देश को बहुत बड़ा नुकसान हो चुका रहेगा।

भारत के अनेक हिस्सों में तो जेहादी जिस बड़े पैमाने पर अपनी जड़ें मजबूत करते जा रहे हैं, और यदि उनकी यह रफ्तार जारी रही तो उससे यह साफ है कि अगले पांच-दस साल में 1947 वाली नौबत एक बार फिर आ सकती है।

आज भारत में जहादियों के जितने गैर मुस्लिम समर्थक मौजूद हैं,उतने तो मध्य युग में भी नहीं थे।

  क्योंकि मध्य युग में चुनाव जीतने के लिए जातीय-सांप्रदायिक वोट बैंक बनाने की जरूरत नहीं पड़ती थी।

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17 जुलाई 24


    कर्पूरी ठाकुर के बारे में 

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मुझे भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर के जीवन पर पुस्तक लिखने का काम मिला है।

यह जिम्मेदारी मुझे एक प्रतिष्ठित संस्थान ने दी है।

सन 1972-73 में मैं समाजवादी कार्यकर्ता की हैसियत से कर्पूरी जी का निजी सचिव था।बाद में मुख्य धारा की पत्रकारिता से जुड़ा।

इसलिए मैं जानता हूं कि बिहार में और बिहार के बाहर भी कर्पूरी ठाकुर का असंख्य लोगों से निकट का संबंध रहा था।

उनमें से अनेक लोग अब इस दुनिया में नहीं हैं।

पर,बहुत सारे हमारे बीच मौजूद हैं।

मेरा निवेदन है कि जिनके पास कर्पूरी जी से संबंधित कोई प्रेरक संस्मरण,तथ्य या अन्य सामग्री उपलब्ध हों,वे मुझे उपलब्ध कराएं,यदि चाहें तो।

इस अपील के साथ मैं अपना मो.नंबर दे रहा हूं।इस नंबर पर व्हाट्सेप्प भी है।

मुझे व्हाट्सेप पर सूचित करें।जरूरत पड़ने पर पोस्टल एड्रेस और ईमेल एड्रेस भी भेज सकता हूं।

कर्पूरी जी पर पहले भी कई अच्छी पुस्तकें आ चुकी हैं।उनमें जो कुछ जानकारियां छप चुकी हैं,उसके दोहराव से कोई लाभ नहीं।

    -----सुरेंद्र किशोर

  मो.नंबर--933 411 65 89 

  


मंगलवार, 16 जुलाई 2024

   खेती में निवेश नहीं तो 70 प्रतिशत आबादी का विकास नहीं 

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 आर्थिक विकास नहीं होगा तो कारखानों का विकास कैसे होगा ?

70 प्रतिशत लोगों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ेगी तो करखनिया माल कौन खरीदेगा ?

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सुरेंद्र किशोर

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सी.एस.डी.एस.के सन 2014 के एक सर्वे के अनुसार 

इस देश के ‘‘किसानों को विकल्प मिल जाए तो भारत के 76 प्रतिशत किसान खेती छोड़ देंगे।

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2014 के बाद कृषि संकट और भी बढ़ा है।

हाल में उसी के मद्देनजर मोदी सरकार ने तीन कृषि कानून लाए थे।

पर, सरकार को उन कानूनों को वापस लेने को बाध्य कर दिया गया।

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दरअसल खेती में पंूजी निवेश की सख्त जरूरत है।

पर,किसानों के पास पूंजी नहीं है।

मजदूरों से खेती करवाना अब घाटे का सौदा है।

मैं भी गांव का ही मूल निवासी हूं।गांवों से मेरा जीवंत संबंध अब भी है।

  किसान-सह -मजदूर तो खुद खेती करते हैं।

 पर,जो मझोले ओर बड़े किसान, मजदूरों से खेती कराते थे,वे अब खेत को ठेके पर दे दे रहे हैं।

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जितने दाम की जमीन है,उस अनुपात में रिटर्न नहीं आ रहा है।

इसलिए उनकी आर्थिक तरक्की नहीं हो रही है।उनकी क्रय शक्ति भी नहीं बढ़ रही है।

 क्रय शक्ति नहीं बढ़ने से करखनिया माल की बिक्री नहीं बढ़ रही है।नतीजतन उद्योगों का विकास नहीं हो रहा है।

इसीलिए रोजगार के अवसर बढ़ती आबादी के अनुपात में नहीं बढ़ रहे हैं।

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अब सामान्य लोगों और नीति निर्धारकांे सोचना है कि कृषि क्षेत्र का विकास कैसे हो ? 

याद रहे कि इस देश के 70 प्रतिशत लोग खेती और खेती से जुड़े धंधांें पर निर्भर हैं।

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पर,अपने लोकतांत्रिक देश में यदि सरकार को अढ़तियों-मंडी

के दलालों के हितों और 70 प्रतिशत आबादी वाले किसानों के हित के बीच चुनना होता है तो वोट के चक्कर में सरकार अढ़तियों और मंडी के दलालों के सामने झुक जाती है।

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ऐसा कब तक चलेगा ?

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16--7--2024

 


सोमवार, 8 जुलाई 2024

 अयोध्या में भाजपा को हराकर हमने राम मंदिर 

आंदोलन को हराया--राहुल गांधी

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शव यात्राओें में ‘राम नाम सत्य’ कहना 

कितने हिन्दुओं ने छोड़ा ? !!

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 किसी भी हिन्दू की, चाहे वह जिस किसी जाति का हो,जब शव यात्रा निकलती है तो साथ चलने वाले लोग लगातार यह नारा लगाते चलते हैं--

‘‘राम नाम सत्य है,राम नाम सत्य है।’’

  राहुल गांधी ने कहा है कि अयोध्या में भाजपा को हरा कर हमने राम मंदिर आंदोलन को हरा दिया।

(फैजाबाद लोक सभा क्षेत्र में अयोध्या विधान सभा क्षेत्र शामिल है। इस चुनाव में भाजपा अयोध्या सेगमेंट में विजयी हुई हालांकि फैजाबाद लोक सभा क्षेत्र में वह हार गई।यानी, रामलला विराजमान के आसपास के इलाके में भाजपा नहंीं हारी।)

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  राहुल गांधी को नमूने के तौर पर इस देश में एक सर्वेक्षण करवाना चाहिए।

कितने हिन्दुओं ने शव यात्रा में ‘‘राम नाम सत्य’’ कहना अब बंद कर दिया है ?

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इस सर्वेक्षण के सिलसिले में उन नेताओं के परिवारों,रिश्तेदारों और गांवों पर खास फोकस करिए जिन नेताओं 

ं ने हाल के वर्षों में राम,तुलसीदास,सनातन और रामचरित मानस आदि के खिलाफ विवादास्पद बयान दिये हैं।सर्वेक्षण का समारंभ फैजाबाद लोक सभा क्षेत्र से हो।

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ं7 जुलाई 24 


 बिहार में रोज पांच हजार लोगों तक पहुंच रहे 

डायल 112 के वाहन,रिस्पांस टाइम 20 मिनट।

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हे सरकार देवता ! रिश्वत के सरकारी राक्षसों से 

भी पीड़ितों की रक्षा का कुछ उपाय करिए

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सुरेंद्र किशोर

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बिहार में इन दिनों पीड़ित व्यक्ति 112 नंबर पर डायल करता है और पुलिस वाहन 

20 मिनट में उसके यहां पहुंच जाता है।

आज के दैनिक भास्कर में यह खबर छपी है।

मैं व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर कह सकता हूं ंकि यह 

खबर बिलकुल सही है।

खासकर महिलाओं को इससे बहुत राहत मिल रही है।

एक और बात हो रही है।

 इस मामले में कोई रिश्वत लिए बिना ही पुलिस तत्काल राहत तो पहुंचा ही रही है,कुछ दिनों के बाद महिला से फोन पर पुलिस यह भी पूछती है कि आपको अब कोई दिक्कत तो नहीं है ?

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तरह -तरह के अपराधों से पीड़ित बिहार में इससे बड़ी बात कुछ नहीं हो सकती है।

डायल 112 की व्यवस्था बिहार पुलिस की बिगड़ी छवि को बेहतर बना रही है।

उम्मीद है कि इसका और भी अधिक प्रचार होगा और इस सेवा का विस्तार होगा।

  इस सेवा से अब यह भी लगता है कि संकट में सरकारी तंत्र हमारे काम आ सकता है।

 वैसे तो इस सरकार की छवि यह बन चुकी है कि बिना नजराना-शुकराना के सरकारी अमला एक कदम भी नहीं उठाता और एक लाइन भी कागज पर नहीं लिखता।

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 डायल 112 की  इस सफल सेवा के बाद बिहार सरकार से यह उम्मीद की जाती है कि वह सरकारी दफ्तरों के घूसखोर अफसरों-कर्मचारियों के खिलाफ स्टिंग आपरेशन चलाये।

लगे हाथ केरल की सत्ताधारी पार्टी सी.पी.एम.की एक ताजा जांच रपट की चर्चा कर दूं।

  हाल के लोक सभा चुनाव में शर्मनाक पराजय के बाद माकपा ने कारणों की जांच की।

पता चला कि कुछ अन्य कारणों के साथ-साथ यह भी उनके  खिलाफ गया कि हर स्तर पर सी.पी.एम.सरकार में भ्रष्टाचार व्याप्त है।

पूरी रपट के लिए आज का इंडियन एक्सप्रेस पढ़िए।

साथ ही, बिहार की सत्ताधारी जमात भी इससे सबक ले जिसकी सरकार में भ्रष्टाचार यत्र तत्र सर्वत्र व्याप्त है।इस मामले में मेरा निजी अनुभव भी यही बताता है।आप कितने बड़े पत्रकार हांे या कोई अन्य तोप हों,,शुकराना-नजराना से यहां छूट आपको भी नहीं।

कुछ दशक पहले तक बिहार में ‘‘डायन भी एक घर छोड़ देती थी।’’

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6 जुलाई 24

  


 मच्छरों पर अब हथोड़ा भी कारगर नहीं।

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सुरेंद्र किशोर

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पटना की मुख्य सड़कों से अतिक्रमण हटाने की कोशिश कमिश्नर स्तर के अफसर वर्षों से बार- बार कर रहे हैं।

वे कितना सफल हुए हैं ?

(जाम में घंटों तक फंसे रह जाने के डर से मैं शहर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता।) 

आजादी के तत्काल बाद के वर्षों में यह काम एक थानेदार सफलतापूर्वक कर देता था।जिस काम के लिए एक थानेदार काफी था,वह काम आज कमिश्नर से भी क्यों नहीं 

हो पा रहा है ?

क्योंकि अतिक्रमण के कारण सड़क जाम के मूल कारणों को दूर नहीं किया जाता।

उसके मूल कारणों पर जाइए।उसका इलाज कीजिए।कमिश्नर-कलक्टर के पदों को हास्यास्पद मत बनाइए।उनकी नैतिक-प्रशासनिक धाक का मजाक मत उड़ने दीजिए।पटना में जब बड़े अफसर फेल होते हैं तो उसका 

नकारात्मक असर नीचे तक के प्रशासन तंत्र पर पड़ता है।

भ्रष्ट और काहिल लोग बेफिक्र हो जाते हैं।

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बिहार की ध्वस्त सरकारी स्कूली शिक्षा को ठीक करने का काम मुख्य सचिव स्तर के अफसर के.के.पाठकजी महीनों तक करते रहे।

कितना सफल हो पाये ?

अब वही काम मुख्य सचिव स्तर के दूसरे अफसर सिद्धार्थ साहब कर रहे हैं।कितना सफल होंगे ?

मुझे तो उनकी सफलता पर शक है।

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इसे ही कहते है मच्छर मारने के लिए हथोड़े का इस्तेमाल करना।

फिर भी मच्छर नहीं मर रहे हैं।

यह तो हथौड़े की भी बेइज्जती है।

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पटना के कमिश्नर खुद सड़कों पर खड़े होकर बार -बार मुख्य सड़कों से अतिक्रमण हटवाते हैं और फिर 

वैतलवा डाल पर चला जाता है !!

दरअसल कमिश्नर साहब को छोड़कर बाकी अधिकतर जनता यह जानती है कि अतिक्रमण के मूल कारण क्या हैं।मूल कारण का इलाज नहीं कीजिएगा तो आपकी भूमिका एक सफाई कर्मचारी से भी कमजोर साबित होती रहेगी।

सफाई मजदूर हर सुबह सफाई करता है।उसे फिर अगली सुबह सफाई करनी पड़ती है।

पर,कमिश्नर साहब सुबह अतिक्रमण हटवाते हंै और शाम तक फिर उसी जगह पर अतिक्रमण हो जाता है।

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के.के.पाठक साहब और सिद्धार्थ जी को छोड़कर सारे संबंधित लोग जानते हैं कि ध्वस्त शिक्षा -व्यवस्था के असली कारण क्या-क्या हैं।

पर,उस पर चोट नहीं की जाती।क्योंकि उन भ्रष्ट और कालि लोगों की ताकत किसी सरकार से अधिक है।

टी.बी.की बीमारी है और डाक्टर सर्दी-खांसी का इलाज कर रहे हंै।

साठ के दशक में मैं स्कूली छात्र था।तब एक स्कूल सब इंस्पेक्टर से पूरा शिक्षा तंत्र कांपता था।

आज मुख्य सचिव की भी परवाह नहीं करता।दरअसल अत्यंत थोड़े से अपवादों को छोड़कर पूरा शिक्षा तंत्र सड़ चुका है।उसके लिए अपवादों को छोड़कर नीचे से ऊपर तक के सबंधित लोग जिम्मेदार हैं।

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यानी, अतिक्रमण हटाने और शिक्षातंत्र को ठीक करने का काम करने के लिए मुझे लगता है कि ऐसे किसी ‘‘नर सिंहावतार’’ की जरूरत पड़ेगी जो नरों में सिंह हो।क्या ऐसा कभी हो पाएगा ?

पता नहीं।

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8 जुलाई 24


शनिवार, 6 जुलाई 2024

 बिहार में रोज पांच हजार लोगों तक पहुंच रहे 

डायल 112 के वाहन,रिस्पांस टाइम 20 मिनट।

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हे सरकार देवता ! रिश्वत के सरकारी राक्षसों से 

भी पीड़ितों की रक्षा का कुछ उपाय करिए

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सुरेंद्र किशोर

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बिहार में इन दिनों पीड़ित व्यक्ति 112 नंबर पर डायल करता है और पुलिस वाहन 

20 मिनट में उसके यहां पहुंच जाता है।

आज के दैनिक भास्कर में यह खबर छपी है।

मैं व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर कह सकता हूं ंकि यह 

खबर बिलकुल सही है।

खासकर महिलाओं को इससे बहुत राहत मिल रही है।

एक और बात हो रही है।

 इस मामले में कोई रिश्वत लिए बिना ही पुलिस तत्काल राहत तो पहुंचा ही रही है,कुछ दिनों के बाद महिला से फोन पर पुलिस यह भी पूछती है कि आपको अब कोई दिक्कत तो नहीं है ?

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तरह -तरह के अपराधों से पीड़ित बिहार में इससे बड़ी बात कुछ नहीं हो सकती है।

डायल 112 की व्यवस्था बिहार पुलिस की बिगड़ी छवि को बेहतर बना रही है।

उम्मीद है कि इसका और भी अधिक प्रचार होगा और इस सेवा का विस्तार होगा।

  इस सेवा से अब यह भी लगता है कि संकट में सरकारी तंत्र हमारे काम आ सकता है।

 वैसे तो इस सरकार की छवि यह बन चुकी है कि बिना नजराना-शुकराना के सरकारी अमला एक कदम भी नहीं उठाता और एक लाइन भी कागज पर नहीं लिखता।

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 डायल 112 की  इस सफल सेवा के बाद बिहार सरकार से यह उम्मीद की जाती है कि वह सरकारी दफ्तरों के घूसखोर अफसरों-कर्मचारियों के खिलाफ स्टिंग आपरेशन चलाये।

लगे हाथ केरल की सत्ताधारी पार्टी सी.पी.एम.की एक ताजा जांच रपट की चर्चा कर दूं।

  हाल के लोक सभा चुनाव में शर्मनाक पराजय के बाद माकपा ने कारणों की जांच की।

पता चला कि कुछ अन्य कारणों के साथ-साथ यह भी उनके  खिलाफ गया कि हर स्तर पर सी.पी.एम.सरकार में भ्रष्टाचार व्याप्त है।

पूरी रपट के लिए आज का इंडियन एक्सप्रेस पढ़िए।

साथ ही, बिहार की सत्ताधारी जमात भी इससे सबक ले जिसकी सरकार में भ्रष्टाचार यत्र तत्र सर्वत्र व्याप्त है।इस मामले में मेरा निजी अनुभव भी यही बताता है।आप कितने बड़े पत्रकार हांे या कोई अन्य तोप हों,,शुकराना-नजराना से यहां छूट आपको भी नहीं।

कुछ दशक पहले तक बिहार में ‘‘डायन भी एक घर छोड़ देती थी।’’

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6 जुलाई 24