अभियान के पीछे छिपा एजेंडा ?
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कहीं पे निगाहंे, कहीं पर निशाना !
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भ्रम -1
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सन 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन विधेयक संसद से पास कराया।
उसके बाद असददुद्दीन आवैसी अन्य मुस्लिम नेताओं और मुस्लिम वोट लोलुप राजनीतिक दलों ने उसका भारी विरोध किया।
भ्रम फैलाया गया कि इससे इस देश के मुसलमानों की नागरिकता छीन ली जाएगी।
गृह मंत्री अमित शाह ने तब बार- बार यह कहा कि इस कानून में नागरिकता देने का प्रावधान है,किसी की नागरिकता लेने का नहीं।
फिर भी जेहादी संगठन पी.एफ.आई.ने शाहीनबाग में दीर्घकालीन धरना दिलवाया।
कांग्रेस सहित तथाकथित सेक्युलर दलों ने धरना स्थल पर जाकर उनका हौसला बढ़ाया।
तब दिल्ली में दंगाइयों ने भारी हिंसा भी की।याद रहे कि पी.एफ.आई.का लक्ष्य हथियारों के बल पर सन 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बना देना है।
उनके हथियारबंद कातिल दस्ते तैयार हो रहे हैं।
इन दिनों इस देश के अधिकतर मुस्लिम वोट पी.एफ.आई.के -एस.डी.पी.आई.के ही कब्जे में है।बेचारे औवैसी साहब दरकिनार किए जा रहे हैं।
हमारे देश के वोट लोलुप नेताओं को इस बात की कोई चिंता नहीं रही है कि यह देश धर्म निरपेक्ष बना रहता है या इस्लामिक बन जाता है।
उन्हें तो अपने जीवनकाल में वोट और सत्ता चाहिए।बाद में जो होना होगा ,हो।
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नागरिकता संशोधन कानून के तहत अफगानिस्तान,बांग्ला देश और पाकिस्तान से आए हिन्दू,सिख,जैन,बौद्ध,पारसी और ईसाई शरणार्थियों को बड़ी संख्या में नागरिकता देने का काम भारत में चल रहा है।
क्या इस क्रम में किसी भारतीय मुस्लिम की नागरिकता इस बीच छीनी गयी ?
बिलकुल नहीं।
यदि छीनी गयी होती तो अब तक न जाने कितनी याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दी गयी होतीं।
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भ्रम --2
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वक्फ संशोधन विधेयक पर भारतीय संसद में फैसला होना है।
ओवैसी तथा अन्य लोग इस विधेयक का निराधार तर्कों के आधार पर विरोध कर रहे हैं।
हालांकि ओवैसी सार्वजनिक रूप से यह कह स्वीकार (यू ट्यूब देख लीजिए)कर रहे हैं कि यू.पी.में एक लाख 21 हजार वक्फ संपत्ति है।किंतु उनमें से एक लाख 12 हजार संपत्ति पर अधिकार का कोई कागजी सबूत वक्फ बोर्ड के पास नहीं है।मुस्लिम नेता गण और उनके समर्थक दल यह चाहते हैं कि जहां जिस संपत्ति पर वक्फ बोर्ड का कब्जा है,उससे बोर्ड को बेदखल नहीं किया जाये।
याद रहे कि वे संपत्ति वक्फ संशोधन बिल के पास हो जाने और लागू होने के बाद हमसे छिन जाएगी।
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अब तक वक्फ बोर्ड करता यह रहा है कि किसी भी संपत्ति को वह वक्फ संपत्ति घोषित कर देता रहा।
उस संपत्ति का जो जायज मालिक हैं, उन्हें उसका कानूनी विरोध करने का भी अधिकार नहीं है।ऐसा प्रावधान 1995 में तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने किया।
तमिलनाडु के एक गांव में स्थित 15 सौ साल पुराने एम.चंद्र शेखर स्वामी मंदिर को वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति घोषित कर दी ।जबकि इस्लाम का उदय उस मंदिर के निर्माण के बाद हुआ।इसी तरह महाराणा प्रताप परिवार की संपत्ति को भी वक्फ ने अपनी संपत्ति घोषित कर रखी है।
1995 के कानून में प्रावधान कर दिया गया कि वक्फ बोर्ड जिस किसी संपत्ति को भी अपनी संपत्ति घोषित कर देगा,उसके फैसले के खिलाफ असली मालिक को इस देश के किसी सामान्य कोर्ट में जाने का अधिकार नहीं होगा।उसी वक्फ के कोर्ट में विचार होगा जिसमें फैसला करने वाले सिर्फ मुस्लिम होंगे।
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यदि मोदी सरकार मौजूदा वक्फ संशोधन बिल संसद से पास कराने में सफल हुई तो जिस वक्फ संपत्ति का कागजी सबूत वक्फ बोर्ड के पास होगा,उस संपत्ति से कोई शक्ति वक्फ बोर्ड को बेदखल नहीं कर सकती।
लेकिन नाजायज कब्जा अब नहीं चलेगा।
चाहे कोई हस्ती धार्मिक भावना उभारे या जो करे।
अब मुस्लिम नेता कह रहे हैं कि मौजूदा वक्फ संशोधन बिल के संसद से पास हो जाने के बाद मस्जिद,मजार और कब्रिस्तान छीन लिये जाएंगे।
जबकि वास्तविकता यह है कि यदि जिस किसी मस्जिद,मजार या कब्रिस्तान की जमीन पर वक्फ बोर्ड का कानूनी हक होगा,कागज होगा,वह कभी कोई उनसे नहीं छीन सकता।
हां,अब यह नहीं होगा कि किसी कागज के बिना दखल कब्जा जारी रहेगा।(याद करिए, कुछ ही साल पहले घुसपैठिए और उनके लाभुक यह कहते थे कि ‘‘हम कागज नहीं दिखाएंगे।’’)
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दरअसल सी.ए.ए.के विरोध के पीछे भी एक छिपा हुआ एजेंडा था।
वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ भी एक छिपा हुआ एजेंडा है।
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13 अक्तूबर 24
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