आज के ‘राज’ दरबारों में
बिदुरों का नितांत अभाव
-------------------
सुरेंद्र किशोर
----------------
मैं 1967 से ही इस देश-प्रदेश की राजनीति और राजनेताओं को देखता-पढ़ता और समझने की कोशिश करता रहा हूं।
---------------
कुछ शीर्ष नेताओं और दलों को अपनी दुर्दशा इसलिए झेलनी पड़ी और पड़ रही है क्योंकि वे अपने दरबार में ‘‘शकुनी’’ को तो सम्मान की जगह दे देते हैं, पर, किसी ‘‘बिदुर’’ को स्थान नहीं देते।
----------
ठीक ही कहा गया है कि दुनिया की सबसे अधिक मीठी चीज मुंह से नहीं खाई जाती है,बल्कि कान से पी जाती है-वह है प्रशंसा !
--------------------
3 अक्तूबर 24
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें