चैधरी चरण सिंह के जन्म दिन पर
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(23 दिसंबर 1902--29 मई 1987)
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सुरेंद्र किशोर
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संजय गांधी पर से केस उठा लेने से
इनकार कर देने के कारण ही इंदिरा
गांधी ने प्रधान मंत्री चरण सिंह की सरकार गिरा दी थी।
ऐसे दूसरे नेता चंद्र शेखर थे जिन्होंने बोफोर्स मुकदमा
वापस लेने से इनकार कर दिया तो उनकी प्रधान मंत्री की कुर्सी चली गई थी।
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आरक्षण का आधार जाति बनाने के बदले चरण सिंह चाहते थे कि किसानों की संतान के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण हो।
चैधरी साहब पूंजीपतियों से पैसे नहीं लेते थे।
धनी किसान उन्हेें मदद करते थे।
प्रधान मंत्री चरण सिंह के राज नारायण जी यानी ‘नेता जी’ करीबी थे।
एक बड़े पूंजीपति ‘‘नेता जी’’ के यहां गए थे।
उनसे कहा कि हमारे हिन्दी अखबार के लिए कोई संपादक आपके ध्यान में हो तो बताइए।
राजनारायण जी उद्देश्य समझ गए।
उन्होंने कहा कि मेरे पास कोई नाम नहीं हैं
ऐसा इसलिए कह दिया क्योंकि वे जानते थे कि प्रधान मंत्री चैधरी साहब तो सेठ जी की कोई पैरवी सुुनेंगे नहीं।
उन दिनों दिनमान और धर्मयुग आदि के कारण समाजवादी विचारधारा के अनेक पत्रकार मुख्य धारा की पत्रकारिता में शीर्ष पर थे।
कुछ समाजवादी पत्रकार उस बड़े पद के आकांक्षी भी थे।
वे मन ही मन नेता जी से नाराज भी हो गए।
चरण सिंह कहते थे कि यदि उद्योग को बढ़ावा देना हो तो पहले कृषि को बढ़ावा दो।
क्योंकि देश की अधिकतर आबादी यानी कृषक की आय जब तक नहीं बढ़ेगी, तब तक करखनिया माल खरीदेगा कौन ?
नहीं खरीदेगा तो कारखाने चलेंगे कैसे ?
चरण सिंह ने राजनीति को रुपया कमाने का जरिया नहीं बनाया।
कुछ कमियां चैधरी साहब में भी थीं।
पर थोड़ी -बहुत कमी तो हर मनुष्य में होती है।
उनकी कमियों पर उनके गुण हावी थे।
फिर भी मेरा मानना है कि उन्हें देखने का अनेक बुद्धिजीवियों का नजरिया पूर्वाग्रहग्रस्त ही रहा ।
मैं बारी -बारी से दो बार पटना में चैधरी साहब से मिला था।एक बार कर्पूरी ठाकुर के साथ और दूसरी बार जनसत्ता के लिए उनसे बातचीत करने के लिए।
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पटना के स्टेट गेस्ट हाउस में चरण सिंह से मेरी बातचीत हो रही थी।
उनकी बातों से मुझे लगा कि इस देश की मूल आर्थिक समस्याओं और उनके समाधान को लेकर अन्य अनेक नेताओं की अपेक्षा चैधरी साहब का आकलन बेहतर,जमीन से जुड़ा हुआ व सटीक था।
मुझे सुनने में अच्छा लग रहा था।वे भी बातचीत से ऊब नहीं रहे थे जबकि समय अधिक होता जा रहा था।
इस बीच उनका बाॅडी गार्ड या निजी सचिव मुझे वहां से भगाने की कोशिश करने लगा।
पहले धीरे से।
बाद में कड़े स्वर में, कहने लगा,उठो जाओ।
भागो यहां से।
मैं भला क्या करता !
चैधरी साहब उसे रोक भी नहीं रहे थे।
संभवतः वह बेचारा कर्मचारी अपनी ड्यूटी बजा रहा था।
कोई और जरूरी काम रहा होगा।
या फिर उन्हें अधिक बोलने की मनाही होगी।
यह सब तो चरण सिंह का कोई करीबी ही बता सकता है।
फिर भी मैं दुःखी नहीं हुआ।
क्योंकि मुझे लगा कि एक ऐसे नेता से बातें र्हुइं जो देश की असली समस्या को समझता है।उसका निदान भी उसके पास था।
चरण सिंह को अक्सर लोग ‘‘जाट नेता’’ कहते या लिखते रहे।उन्हें बहुत बुरा लगता था।
मुझे भी यह अन्यायपूर्ण लगा।
केंद्र के उनके मंत्रिमंडल में सिर्फ एक ही जाट मंत्री अजय सिंह थे।
वह भी राज्य मंत्री।बुद्धिजीवी थे।संभवतः विदेश में पढ़े थे।
चैधरी साहब कहते थे कि राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में एक ही जाति के 15 कैबिनेट मंत्री हैं ,पर उन्हें मीडिया ब्राह्मण नेता नहीं लिखता।पर एक जाट मंत्री पर मुझे जाट नेता लिखता है।
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जातिवाद के आरोप पर चरण सिंह कहा कहते थे कि इस देश में एक कानून बने।
गजटेड नौकरियां सिर्फ उन्हें ही मिलें जिन्होंने अंतरजातीय शादी की हो।
इस पर सब चुप हो जाते थे।
देश की सुरक्षा और एकता को लेकर चरण सिंह के विचार बड़े पक्के थे।
उन्होंने ब्रिटिश इतिहासकार सर जे.आर.सिली की चर्चित पुस्तक का हिन्दी में अनुवाद करवा कर छपवाया और वितरित करवाया।
सिली ने लिखा था कि ब्रिटिशर्स ने भारत को कैसे जीता।
उस इतिहासकार की स्थापना थी कि हम ब्रिटिशर्स ने नहीं जीता,बल्कि खुद भारतीयों ने ही भारत को जीत कर हमारे प्लेट पर रख दिया।
चरण सिंह ने एक तरह से चेताया था कि यदि इस देश में
गद्दार मजबूत होंगे तो देश नहीं बचेगा।
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आज भी यह देश ऐसे गद्दार नेताओं और बुद्धिजीवियों को झेल रहा है जो ऐसे -ऐसे बयान देते रहते हैं,लेख लिखते रहते हैं और काम करते हैं जिनसे उन लोगों को मदद मिले जो इस देश को तोड़ने और हथियारों के बल पर राज सत्ता पर कब्जा करके एक खास धर्म का शासन स्थापित करने के लिए रात दिन प्रयत्नशील हैं।हथियार जुटा रहे हैं।कातिलों के दस्ते तैयार कर रहे हैं। फिर भी वे खुद को सेक्युलर कहते हैं।जो उन जेहादियों और उनके समर्थक दलों का विरोध करते हं,उन्हें ही वे साम्प्रदायिक कहते हैं।यानी, उल्टा चोर,कोतवाल को डांटे !!
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23 दिसंबर 24
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