बिहार पुलिस का शेर चला गया !
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‘‘लफंगे नेताओं के हाथ में सत्ता’’
--बिहार पुलिस के महा निदेशक
डीपी.ओझा, 28 नवंबर, 2003
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सुरेंद्र किशोर
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पद पर रहते हुए ऐसी बातें कहने वाले डी.पी.ओझा का आज पटना में निधन हो गया।
वे 1967 बैच के आई.पी.एस. अफसर थे।
अपने कार्यकाल में ओझा ने बड़े- बड़े कानून तोड़कों और कई क्षेत्रों के माफियाओं के खिलाफ ऐसे -ऐसे कठिन अभियान चलाये कि सत्ताधारी पार्टी के शीर्ष नेता लालू प्रसाद ने एक बार कहा कि ‘‘डी.जी.पी.अपनी सीमा लांघ रहे हैं।’’
जब ऐसी टिप्पणी आ गयी तो रिटायर होने के बाद उनके सहकर्मियों ने ओझा जी को औपचारिक विदाई भी नहीं दी।
ऐसे थे ओझा जी !
कम कहना अधिक समझना।
काश ! हमारे पुलिस बल में ऐसे -ऐसे अफसर अधिक संख्या में आज होते !
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मैं ओझा जी के कामों पर तब से ही गौर कर रहा था जब वे समस्तीपुर जिले में एस.पी. थे।
उन्हीं दिनों केंद्रीय रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की अत्यंत उच्चस्तरीय शक्तियों ने समस्तीपुर में हत्या करवा दी।
डी.पी.ओझा ने दो असली हत्यारों को तत्काल गिरफ्तार कर लिया।उनके कबूलनामे भी मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज करवा लिये।
पर उससे देश की बड़ी शक्तियां नाराज हो गयीं।
सी.बी.आई.के निदेशक को तुरंत समस्तीपुर भेज कर उस केस को बिहार पुलिस से छीन लिया गया।दोनों गिरफ्तार हत्यारों को सी.बी.आई. ने रिहा करवा दिया।सी.बी.आई.ने आनंदमार्गियों को नाहक फंसा दिया गया।
ललित बाबू के पुत्र ने मुझसे एक बार कहा था कि जिन्हें फंसाया गया है,उनसे ललित बाबू की कोई दुश्मनी नहीं थी।ललित बाबू के भाई डा.जगन्नाथ मिश्र ने कोर्ट में गवाही दी कि ललित बाबू की आनंदमार्गियों से कोई दुश्मनी नहीं थी।
ओझा जी जानते थे कि वे क्या कर रहे हैं,फिर भी उन्होंने ललित बाबू के केस में डर कर अपने कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ा।
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ऐसे अनेक अवसर उनके जीवन में आये थे।
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6 दिसंबर 24
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