शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024

 मनमोहन सिंह को श्रद्धांजलि

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सरदार जी सांसद फंड के 

प्रावधान के सख्त खिलाफ थे

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सुरेंद्र किशोर

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प्रधान मंत्री पी.वी.नरसिंह राव ने सन 1993 में सांसद क्षेत्र विकास फंड तब शुरू किया था जब उनके वित्त मंत्री मनमोहन सिंह लंबी विदेश यात्रा पर थे।

क्योंकि सरदार जी इस फंड की शुरूआत के ही सख्त खिलाफ थे।

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इस फंड से होने वाली बुराइयों से संभवतः सरदार जी पूर्णतः अवगत थे।उनकी आशंका सच साबित हो रही है।

मेरा भी मानना है कि सांसद-विधायक फंड, देश के राजनीतिक-प्रशासनिक भ्रष्टाचार के लिए ‘‘रावणी अमृत कुंड’’ साबित हो रहा है।

  अत्यंत थोड़े से ही सांसद-विधायक-संबंधित अफसर इस फंड से कमीशन नहीं लेते।

वित्त मंत्री मनमोहन सिंह इस पैसे से चुनाव कोष बनाने के पक्ष में थे ताकि उम्मीदवारों को पैसे दिए जा सकंे।

  यह और बात है कि जब प्रधान मंत्री बने तो खुद सरदार जी ने दबाव में आकर सन 2011 में फंड की राशि दो करोड़ रुपए सालाना से बढ़ा कर पांच करोड़ रुपए कर दी।

उससे पहले प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी फंड के खिलाफ थे।पर उन्होंने भी दबाव में आकर 2003 में एक करोड़ रुपए से बढ़ा कर 2 करोड़ कर दिए।

 जब -जब बढ़ा,तब -तब केंद्र में मिली जुली सरकारें थीं।

सांसद फंड शुरू करने से ठीक पहले प्रधान मंत्री राव पर शेयर दलाल हर्षद मेहता से एक करोड़ रुपए का ‘‘चंदा’’ लेने का आरोप लगा था।

उन दिनों सरकारी कामों में आम तौर पर 20 प्रतिशत कमीशन का अघोषित प्रावधान था।

पांच साल में कुल मिला कर एक करोड़ हो जाता था।पर कहा जाता है कि अब बढ़कर 40 प्रतिशत कमीशन हो चुका है।

सी.ए.जी.भी सांसद फंड से हो रहे निर्माण-विकास कार्यों  का अब आम तौर पर आॅडिट नहीं करता।

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  यहां मैं यह नहीं कह रहा हूं कि सारे सांसद या विधायक कमीशन लेते ही हंै।कुछ नहीं भी लेते।

    मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद             अनेक सांसद यह चाहते थे कि सांसद फंड की राशि को  सालाना पांच करोड़ से बढ़ाकर 50 करोड़ रुपए कर दिया जाए।

 कांग्रेस सांसद और लोक लेखा समिति के अध्यक्ष के.वी.थाॅमस ने कहा था कि इस सिलसिले में विभिन्न दलों के सांसद गण जल्द ही प्रधान मंत्री से मिलेंगे।

 थाॅमस के अनुसार 50 करोड़ कर देने से सांसद आदर्श ग्राम योजना को 

कार्यान्वित करने में सुविधा होगी।अभी इस काम में   दिक्कतंें आ रही हैं।

  प्रधान मंत्री मोदी के सामने  किसी सांसद के दबाव में आने की मजबूरी नहीं रही है।इसलिए थाॅमस की मांग नहीं मानी गयी।पर,मोदी चाहते हुए भी इस फंड को समाप्त नहीं कर पा रहे हैं।इसलिए इस फंड की ताकत को समझिए।

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    अब इस फंड की कुछ खास बुराइयों की ओर एक नजर डालें अत्यंत संक्षेप में।

इस फंड के एवज में घूस लेते हुए  एक राज्य सभा के सदस्य कैमरे पर पकड़े गए थे।उनकी सदस्यता चली गई।

 विकास निधि में कमीशनखोरी को लेकर बिहार में एक विधायक के खिलाफ 

सितंबर, 2014 में कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल किया गया। सन 2001 में सी.ए.जी.ने अपनी जांच में इस फंड की गड़बड़ी को पकड़ा था।

2003 के दिसंबर में पटना हाईकोर्ट ने कहा था कि विधायक -सांसद फंड के काम का ठेका अनेक मामलों में सांसद-विधायक के रिश्तेदार,पोलिंग एजेंट,चुनाव एजेंट को दिया जाता है।इसलिए गुणवत्ता नहीं रहती। 

(अब तो फंड के ठेकेदार ही अनेक मामलों में राजनीतिक कार्यकर्ता की भूमिका भी निभा रहे हैं।क्योंकि अनेक सांसद-विधायक खांटी राजीतिक कार्यकर्ताओं को आगे नहीं बढ़ने देते। उन्हें तो अपने परिजन को ही अपनी जगह चुनावी टिकट दिलवानी है।) 

  कई साल पहले वीरप्पा मोइली के नेतृत्व वाले प्रशासनिक सुधार आयोग ने सांसद फंड को बंद कर देने की सिफारिश की थी।

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कुछ अनजान लोग कहते हैं कि मैं यानी इस पोस्ट का लेखक इस फंड के खिलाफ क्यों हूं जबकि इसमें बहुत अधिक राशि का प्रावधान नहीं ।

दूसरी ओर, सैकड़ों -हजारों करोड़ रुपए की अन्यत्र बर्बादी-लूट हो रही है।

उनसे मैं कहना चाहता हूं कि बोफोर्स सौदे में दलाली की राशि सिर्फ 41 करोड़ रुपए थी।फिर भी उसी के कारण 1989 में प्रधान मंत्री राजीव गांधी की पार्टी चुनाव हार गयी थी।

क्योंकि पाया गया था कि शीर्ष सत्ताधारी लोग बोफोर्स दलाल क्वात्रोचि का बचाव कर रहे थे।

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27 दिसंबर 24


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