डा. अम्बेडकर पर कटु बातें लिखने वाले
अपने मित्र अरुण शौरी को मोदी ने मंत्री
नहीं बनाया
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सुरेंद्र किशोर
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अरुण शौरी ने डा.अम्बेडकर के ‘‘खिलाफ’’ एक किताब लिखी है जिसका नाम है--‘‘वाॅरशिपिंग फाल्स गाॅड।’’
यानी,‘‘पूजा झूठे देवताओं की’’।
इंडियन एक्सपे्रस के संपादक व केंद्र में कैबिनेट मंत्री रहे शौरी ने इस तरह की दो अन्य किताबें भी लिखीं हैं जिनके नाम हैं--
1.-‘‘भारत में ईसाई धर्म-प्रचार तंत्र -निरंतरताएं ,परिवर्तन ,दुविधाएं।’’
2-‘‘फतवे,उलेमा और उनकी दुनिया’’
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क्या नरेंद्र मोदी ने इन्हीं किताबों के कारण अरुण शौरी जैसी ईमानदार,प्रतिभाशाली और राष्ट्रभक्त हस्ती को अपने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया ?जबकि दोनों के बीच पुरानी मित्रता रही थी।
इस संबंध में मुझे कोई पक्की जानकारी तो नहीं।मेरा सिर्फ अनुमान ही है।
गुजरात दंगे को लेकर नरेंद्र मोदी की देश-विदेश में जो नाहक बदनामी की और कराई गई थी,उस स्थिति से संभवतः मोदी उबरना चाहते थे।
वे यह नहीं चाहते थे कि शौरी को मंत्री बनाकर उन किताबों की चर्चा के जरिए खुद उन पर राजनीतिक हमला करने का कोई मौका दिया जाये।
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शौरी और मोदी के बीच पहले से ही बहुत अच्छा संबंध रहा था।(अब नहीं है।)
कुछ बातों को छोड़ दीजिए तो अच्छी मंशा वाला कोई भी प्रधान मंत्री, शौरी जैसी प्रतिभा को अपने पास रखना चाहेगा।
पर,नरेंद्र मोदी संभवतः नहीं चाहते थे कि अम्बेडकर आदि को लेकर कटु (भले वे बातें सत्य हों)बातें लिखने वालों को अपनी सत्ता का करीबी बनाया जाये।(यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि शौरी ने अपनी किताब में गलत बातें लिखी हंै।वह बहुत रिसर्च के बाद ही लिखने वाले लेखक रहे हैं।पर,किताब लिखना और मिली जुली संस्कृति वाले देश की सरकार चलाना,लोगों का विश्वास प्राप्त करना दो अलग -अलग बातें हैं।
अल्पसंख्यक और दलितों व उनके नेताओं की मोदी के बारे में जो भी राय हो,पर खुद प्रधान मंत्री मोदी सबको साथ लेकर चलने की लगातार कोशिश कर रहे हैं।
हां,वे किसी भी देशभक्त की तरह किसी भी कीमत पर यह होने देना नहीं चाहते हैं कि कोई खास समुदाय हथियारों के बल पर और आबादी बढ़ाकर देश पर कब्जा कर ले।
वैसे जेहादी लोग इसी लिए मोदी से कुछ अधिक ही खफा हैं।अन्यथा 1989 के भागलपुर दंगे की वे अधिक चर्चा करते न कि 2002 के गुजरात दंगे की।
भागलपुर दंगे में एक हजार से अधिक मुस्लिम मारे गये थे,पर गुजरात में तो सिर्फ 750 मुस्लिमों की ही जानें गई थीं।
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24 दिसंबर 24
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