अद्भुत इन्सान थे किशोर कुणाल
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कहते हैं कि ईश्वर जिसे पसंद करता है,उसे
समय से पहले ही पास बुला लेता है !
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सुरेंद्र किशोर
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किशोर कुणाल के असमय-आकस्मिक निधन से हतप्रभ और मर्माहत हूं।
लगता है कि ईश्वर जिस पर खुश होता है,उसे जल्द ही अपने पास बुला लेता है।
शानदार पुलिस सेवा और सामान्य जन की अद्भुत सेवा के क्षेत्रों में उनका योगदान सदा याद किया जाएगा।
‘‘दमन तक्षकों का’’ नाम से उनकी करीब 500 पृष्ठों की जीवनी नयी पीढ़ी को प्रेरित करती रहेगी।
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पत्रकार के रूप में सन 1983 में कुणाल साहब के संपर्क में आने का मुझे अवसर मिला था।
तब मैंने और मेरे पत्रकार मित्र परशुराम शर्मा ने बाॅबी हत्या कांड की खबर दी थी।तब मैं दैनिक आज और परशुराम जी दैनिक प्रदीप में काम करते थे।
वह एक ऐसा सनसनीखेज कांड था,जिसकी रिपोर्टिंग करके हमने भारी खतरा मोल लिया था।पर,कुणाल साहब ने उस केस को आगे बढ़ाकर हमें किसी खतरे से मुक्त कर दिया था।
यदि उस समय पटना के वरीय एस.पी.के पद पर किशोर कुणाल नहीं होते तो राजनीतिक रूप से वह अत्यंत संवेदनशील कांड दबा दिया जाता और गलत खबर देने का आरोप हम पर लगाया जा सकता था।
उस हत्याकांड को लेकर श्वेतनिशा त्रिवेदी उर्फ बाॅबी की उप माता राजेश्वरी सरोज दास तक भयवश पुलिस से शिकायत करने को तैयार नहीं थीं।
क्योंकि उस कांड में प्रत्य़क्ष-परोक्ष रूप से बड़ी-बड़ी हस्तियों के नाम आ रहे थे।
ऐसे मामले में कोई प्राथमिकी न हो,पुलिस को कोई सूचना न हो फिर भी खबर छाप देना बड़ा जोखिम भरा काम था।
फिर भी हम दो संवाददाताओं ने तय किया कि यह खतरा उठाया जाये।
मई, 1983 में आज और प्रदीप में एक साथ वह सनसनीखेज खबर छपी।मेरी खबर के साथ ‘‘आज’’ का शीर्षक था-‘‘बाॅबी की मौत से पटना में सनसनी।’’
चूंकि आज का प्रसार अपेक्षाकृत अधिक था,इसलिए इस स्टा्ररी ब्रेक को लेकर मेरा नाम अधिक हुआ।हालांकि हम दोनों पत्रकारों का समान योगदान था।इस कांड के फाॅलो -अप रिपोर्टिंग में परशुराम जी और आज के अवधेश ओझा ने शानदार काम किये थे।
हत्या की खबर छपते ही दोनों अखबारों की खबरों को आधार
बना कर पटना पुलिस ने सचिवालय थाने मंे अप्राकृतिक मौत का केस दर्ज किया और जांच शुरू कर दी।
ईसाई कब्रगाह से बाॅबी की लाश निकाली गई।पोस्टमार्टम कराया गया।वेसरा में जहर पाया गया।
दो चश्मदीदों का बयान मजिस्ट्रेट के समक्ष कराया गया।जांच जब निर्णायक दौर में पहुंचने लगी तो इस केस को सी.बी.आई.के हवाले कर दिया गया।क्योंकि बड़ी हस्तियां फंस रही थीं।
उच्चत्तम स्तर से हुए हस्तक्षेप के कारण सी.बी.आई.ने मामला रफादफा कर दिया।पर,लोगबाग तो बात समझ ही गये।उस बीच भारी दबाव की परवाह किये बिना कुणाल ने अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी ड्यूटी निभाई।संयोगवश उन्हीं दिनों एक अन्य कत्र्तव्यनिष्ठ अफसर आर.के.सिंह पटना के डी.एम.थे जो बाद में केंद्रीय मंत्री बने।
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जन सेवा किशोर कुणाल के स्वभाव में थी
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मंदिर,अस्पताल तथा अन्य सेवा प्रकल्पों के जरिए कुणाल साहब व्यापक जनहित के जो काम करते रहे,वह सब तो लोगों की जुबां पर रहा है।
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एक अन्य तरह की सेवा की चर्चा करूंगा जो मेरी पत्नी रीता सिंह ने मुझे सन 2022 में बताई थी।
29 नवंबर, 2022 के तत्संबंधी अपने
एक पोस्ट को यहां रि -पोस्ट कर रहा हूं--
‘‘मैंने आज पत्नी से कहा कि
कुणाल साहब के पुत्र की शादी के बाद का स्वागत-समारोह उसी वेटनरी काॅलेज के मैदान में होने जा रहा है,जहां कभी तुम्हारा स्कूल हुआ करता था।मेरी पत्नी शिक्षिका रही है।
पत्नी ने देर किए बिना कह दिया,
‘‘आपको वहां जरूर जाना चाहिए।’’
मैंने कहा कि तुम जानती हो कि मैं अभी अस्वस्थ हूं ।
कहीं जा नहीं जा रहा हूं।फिर भी तुमने यह कैसे कह दिया !
उसने कहा--अरे हां !!
उसका कारण उसने बताया।
नब्बे के दशक की बात है।
मेरी पत्नी हमारे एक रिश्तेदार मुखिया जी की पत्नी के साथ बाबा धाम,देवघर गई थी।
लौटती में पटना रेलवे जंक्शन पर रात साढ़े नौ बज गए थे।
तब हमलोग मजिस्ट्रेट काॅलोनी में रहते थे।
उन दिनों पटना में रात-बिरात चलने से लोग बचते थे।
इसी सोच-विचार में मेरी पत्नी महावीर मंदिर (कुणाल साहब मंदिर के संचालक भी थे।)की सीढ़ी पर बैठी हुई थी।
क्या किया जाए ?
स्टेशन के प्लेटफार्म पर रुक जाया जाए,या
आॅटो पकड़ा चला जाए ?
इसी बीच कुणाल साहब वहां पहुंच गए।
उन्होंने दो महिलाओं को ‘‘अकेला’’ देखकर पूछा कि ‘‘आपलोग कहां से आई हैं और कहां जाना है ?’’
मेरी पत्नी ने कहा कि ‘‘हमलोग बाबा धाम से आ रहे हैं।
मजिस्ट्रेट काॅलोनी जाना है।’’
उसके बाद उसी सीढ़ी पर कुणाल साहब भी बगल में बैठ गए।
कुणाल साहब ने अपनी दोनांे तलहथियां सामने फैलाते हुए कहा कि ‘‘प्रसाद दे दीजिए।’’
उन्हें प्रसाद दिया गया।
उसके बाद उन्होंने आॅटो रिक्शा वाले को पास बुलाया।
कहा कि ‘‘तुम अपना लाइसेंस मुझे दे दो।’’
उसने दे दिया।
कुणाल साहब ने कहा कि इन लोगों को मजिस्ट्रेट काॅलोनी पहुंचा कर यहां आ जाओ और अपना लाइसेंस मुझसे ले लेना।
आॅटो वाला जब पत्नी को लेकर गतव्य स्थान की ओर चला तो पूछा कि कुणाल साहब आपके कौन हैं ?
मेरी पत्नी ने कहा कि वे मेरे भाई हैं।
लगे हाथ यह भी बता दूं कि कुणाल साहब मुझे सन 1983 से ही जानते थे।
बाॅबी कांड को लेकर वे आम लोगों में भी लोकप्रिय हो चुके थे।
पर, जब महावीर मंदिर की सीढ़ी पर मेरी पत्नी से मुलाकात हुई तो मेरी पत्नी ने उन्हें मेरा नाम बता कर अपना कोई परिचय नहीं दिया था।
कुणाल साहब ने भी महिलाओं से कोई परिचय नहीं पूछा।
बस वे यही समझ रहे थे कि रात में महिलाओं को रास्ते में कोई परेशानी न हो जाए,इसलिए ड्राइवर का लाइसेंस ले लेना जरूरी था।
याद रहे कि तब वहां कोई पे्रस संवाददाता भी मौजूद नहीं था जिसे वे अपना सेवा भाव का सबूत दे रहे थे।ऐसे थे किशोर कुणाल !
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29 दिसंबर 24
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