सुरेंद्र किशोर
क्या रेल मंत्री लालू प्रसाद को पंद्रह साल पहले का अपना ही एक बयान याद है ? मुख्य मंत्री के रूप में उन्होंने 27 जुलाई 1993 को बिहार विधान सभा में कहा था कि ‘उत्तर बिहार की बाढ़ की समस्या को स्थायी तौर पर तब तक हल नहीं किया जा सकता, जब तक कोसी नदी पर हाई डैम बनाने के लिए भारत सरकार, नेपाल सरकार से बातचीत नहीं करती।’ वे बाढ़ की समस्या पर हुई विशेष बहस का जवाब दे रहे थे। यदि लालू प्रसाद अब भी उतनी ही तीव्रता से हाई डैम की जरूरत महसूस करते हैं तो इसकी पहल वे कर सकते हैं।
आज भारत सरकार में उनकी जितनी मजबूत स्थिति है, वैसे में उनके लिए यह आसान काम है कि वे इस मुद्दे पर किसी आगामी भारत-नेपाल वार्ता को केंंिद्रत करा दें।नेपाल के नए शासक प्रचंड ने कहा भी है कि उनकी पहली राजनीतिक यात्रा भारत से ही शुरू होगी। कोसी की बाढ़ से आए प्रलय के कारण पीड़ित लोगों की मदद के लिए लालू प्रसाद की ताजा पहल सराहनीय है। वे केंद्र से मदद दे और दिला रहे हैं।
हालांकि उन्होंने कोसी तटबंध में दरार के लिए बिहार सरकार को कसूरवार ठहराया है। एक हद तक उनका आरोप सही भी हो सकता है। हालांकि इसमें कुछ राजनीति का पुट भी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि विपदा की इस घड़ी में किसी को राजनीति नहीं करनी चाहिए।
हालांकि लालू प्रसाद को बिहार सरकार की आलोचना करने का अधिकार है। ऐसी ही स्थिति जब नब्बे के दशक में आई थी तो लालू प्रसाद की सरकार ने उसका सफलतापूर्वक मुकाबला करके कोसी को अपनी धारा बदलने से तब रोक दिया था। पर इस बार धारा बदलने के कारण ही प्रलय आ गया। तब लालू प्रसाद मुख्य मंत्री,जगदानंद सिंचाई मंत्री और वी.एस.दुबे सिंचाई आयुक्त थे। तब पता चला था कि कोसी बराज के उपर यानी नेपाल में स्थित बांध में 32 किलोमीटर में कई स्थानों में कटाव की स्थिति पैदा हो गई है।तब खुद वी.एस.दुबे ने कई दिनों तक कटाव स्थल पर रात -दिन कैम्प करके कटाव पर काबू पा लिया था।
इस काम की नेपाल और भारत सरकार तथा मीडिया ने भी तारीफ की थी। पर केंद्र में पिछले चार से अधिक साल से लालू प्रसाद दबंग स्थिति में हैं। फिर भी क्या उन्होंने 1993 के विधान सभा में दिए गए अपने ही भाषण के संदर्भ में प्रधान मंत्री से कभी चर्चा की ? अभी तो करीब तीस लाख बाढपीड़ितों ़के रिलीफ व पुनर्वास की समस्या केंद्र व राज्य सरकार के सिर पर है।पर कोसी के कहर से निबटने के लिए जिस स्थायी समाधान की कल्पना लालू प्रसाद के जेहन में रही है,उसे कार्यरूप देने में देरी करने से बिहार का और भी नुकसान होने वाला है।
नेपाल के जिस स्थल पर इस बार कोसी नदी ने बांध तोड़ कर अपनी धारा बदल ली है,उस स्थल पर बांध की मरम्मत के काम को वहां के माओवादी काफी पहले सेे नहीं होने दे रहे थे।पर बांध की मरम्मत नहीं होने से कैसा प्रलय आ सकता है,इसका पुर्वानुमान 1993 में सिंचाई मंत्री और ंिसंचाई आयुक्त को था।मौजूदा राज्य सरकार को क्यों नहीं था,यह देखकर अनेक लोग आश्चर्यचकित हैं। राज्य सरकार को चाहिए था कि वह प्रलय की आशंका से देश-दुनिया को अवगत कराती।
बांध की मरम्मत के काम में माओवादियों के विरोध को ठंडा करने के लिए राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय दबाव डाला जा सकता था। हालांकि एक बात और ध्यान रखने की है,वह यह कि 1993 के बाद कोसी के तटबंध और भी कमजोर हुए हैं और नदी के पेट में गाद बढ़ी है जिससे नदी का पेट उठ गया है। नेपाल में कुशहा के पास कोसी तटबंध इसलिए भी टूटा क्योंकि नदी का पेट पानी को संभालने के लिए कम ही खाली बचा था।गाद की सफाई तो इधर हुई नहीं ।
वर्षों पहले जब सफाई की कोशिश हुई थी तो पता चला कि सफाई के लिए आवंटित पैसे में से अधिकांश भ्रष्ट इंजीनियरों,ठेकेदारों और नेताओं के पेट में चले गए।हालांकि बांध की मरम्मत के काम में भी लूट ही लूट है।यानी आज समस्या 1993 की अपेक्षा अधिक विकट है। अक्सर अपनी धारा बदलने की प्रवृति वाली कोसी नदी को स्थायी तौर पर नियंत्रित करने के लिए भारत सरकार,नेपाल सरकार और बिहार सरकार में जिस राजनीतिक इच्छा शक्ति की जरूरत है,वैसी कभी रही नहीं। याद रहे कि कोसी की बाढ़ से नेेपाल में भी जनधन की हानि होती है।
बिहार के लगभग सभी प्रमुख दलों के अधिकतर नेताओं ने समय- समय पर यह जरूर कहा कि नेपाल में हाई डैम बनना ही चाहिए। यही समस्या का स्थायी निदान है।वे बांध विरोधियों के तर्क से कभी सहमत नहीं हुए।पर केंद्र में सत्ता में आने के बाद वही सारे नेता और दल यह बात भूलते ही चले गए। दसियों साल से यही हो रहा है।इस बीच कई बार कोसी की बाढ़ से लाखों जनता तबाह होती रही।हालांकि इस बार जैसी प्रलयंकारी बाढ़ आई है वैसी तो कहते हैं कि दो सौ साल पहले आई थी। पिछले 30 वर्षों से लगभग सभी प्रमुख दल बारी-बारी से कंेद्र व राज्य में सत्ता में रहे हैं।कोई दल जब बिहार में सत्ता में होता है तो इस काम के लिए केंद्र को जिम्मेदार बताता है और जब वही दल केंद्र में सत्ता में आता है तो अपनी ही बात भूल जाता है।
अब तो नेपाल में राजनीतिक स्थिति पूरी तरह बदल गई है। शायद इस काम के लिए भारत सरकार को कोई बड़ी कीमत नेपाल को देनी पड़ेगी।पर इस परियोजना के निर्माण के लिए कोई भी कीमत कम होगी क्योंकि लाखों लोगों के जीवन की अपेक्षा किसी कीमत का क्या मतलब है ? आज कोसी के बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में पीड़ितों की जो दर्दनाक स्थिति है,उसका विवरण देते हुए इलेक्ट्रानिक मीडिया के संवाददाता की आखें भी डबडबा जा रही हैं और आवाज भारी हो जा रही है।यह ऐसा प्रलय है जिसमें चाहते हुए भी सरकार विपरीत मौसम में लाखों पीड़ितों को एक साथ वांछित मदद नहीं पहुंचा पा रही है।ऐसा प्रलय भविष्य में भी नहीं आएगा,इसकी कोई गारंटी भी नहीं है।
क्या रेल मंत्री लालू प्रसाद को पंद्रह साल पहले का अपना ही एक बयान याद है ? मुख्य मंत्री के रूप में उन्होंने 27 जुलाई 1993 को बिहार विधान सभा में कहा था कि ‘उत्तर बिहार की बाढ़ की समस्या को स्थायी तौर पर तब तक हल नहीं किया जा सकता, जब तक कोसी नदी पर हाई डैम बनाने के लिए भारत सरकार, नेपाल सरकार से बातचीत नहीं करती।’ वे बाढ़ की समस्या पर हुई विशेष बहस का जवाब दे रहे थे। यदि लालू प्रसाद अब भी उतनी ही तीव्रता से हाई डैम की जरूरत महसूस करते हैं तो इसकी पहल वे कर सकते हैं।
आज भारत सरकार में उनकी जितनी मजबूत स्थिति है, वैसे में उनके लिए यह आसान काम है कि वे इस मुद्दे पर किसी आगामी भारत-नेपाल वार्ता को केंंिद्रत करा दें।नेपाल के नए शासक प्रचंड ने कहा भी है कि उनकी पहली राजनीतिक यात्रा भारत से ही शुरू होगी। कोसी की बाढ़ से आए प्रलय के कारण पीड़ित लोगों की मदद के लिए लालू प्रसाद की ताजा पहल सराहनीय है। वे केंद्र से मदद दे और दिला रहे हैं।
हालांकि उन्होंने कोसी तटबंध में दरार के लिए बिहार सरकार को कसूरवार ठहराया है। एक हद तक उनका आरोप सही भी हो सकता है। हालांकि इसमें कुछ राजनीति का पुट भी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि विपदा की इस घड़ी में किसी को राजनीति नहीं करनी चाहिए।
हालांकि लालू प्रसाद को बिहार सरकार की आलोचना करने का अधिकार है। ऐसी ही स्थिति जब नब्बे के दशक में आई थी तो लालू प्रसाद की सरकार ने उसका सफलतापूर्वक मुकाबला करके कोसी को अपनी धारा बदलने से तब रोक दिया था। पर इस बार धारा बदलने के कारण ही प्रलय आ गया। तब लालू प्रसाद मुख्य मंत्री,जगदानंद सिंचाई मंत्री और वी.एस.दुबे सिंचाई आयुक्त थे। तब पता चला था कि कोसी बराज के उपर यानी नेपाल में स्थित बांध में 32 किलोमीटर में कई स्थानों में कटाव की स्थिति पैदा हो गई है।तब खुद वी.एस.दुबे ने कई दिनों तक कटाव स्थल पर रात -दिन कैम्प करके कटाव पर काबू पा लिया था।
इस काम की नेपाल और भारत सरकार तथा मीडिया ने भी तारीफ की थी। पर केंद्र में पिछले चार से अधिक साल से लालू प्रसाद दबंग स्थिति में हैं। फिर भी क्या उन्होंने 1993 के विधान सभा में दिए गए अपने ही भाषण के संदर्भ में प्रधान मंत्री से कभी चर्चा की ? अभी तो करीब तीस लाख बाढपीड़ितों ़के रिलीफ व पुनर्वास की समस्या केंद्र व राज्य सरकार के सिर पर है।पर कोसी के कहर से निबटने के लिए जिस स्थायी समाधान की कल्पना लालू प्रसाद के जेहन में रही है,उसे कार्यरूप देने में देरी करने से बिहार का और भी नुकसान होने वाला है।
नेपाल के जिस स्थल पर इस बार कोसी नदी ने बांध तोड़ कर अपनी धारा बदल ली है,उस स्थल पर बांध की मरम्मत के काम को वहां के माओवादी काफी पहले सेे नहीं होने दे रहे थे।पर बांध की मरम्मत नहीं होने से कैसा प्रलय आ सकता है,इसका पुर्वानुमान 1993 में सिंचाई मंत्री और ंिसंचाई आयुक्त को था।मौजूदा राज्य सरकार को क्यों नहीं था,यह देखकर अनेक लोग आश्चर्यचकित हैं। राज्य सरकार को चाहिए था कि वह प्रलय की आशंका से देश-दुनिया को अवगत कराती।
बांध की मरम्मत के काम में माओवादियों के विरोध को ठंडा करने के लिए राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय दबाव डाला जा सकता था। हालांकि एक बात और ध्यान रखने की है,वह यह कि 1993 के बाद कोसी के तटबंध और भी कमजोर हुए हैं और नदी के पेट में गाद बढ़ी है जिससे नदी का पेट उठ गया है। नेपाल में कुशहा के पास कोसी तटबंध इसलिए भी टूटा क्योंकि नदी का पेट पानी को संभालने के लिए कम ही खाली बचा था।गाद की सफाई तो इधर हुई नहीं ।
वर्षों पहले जब सफाई की कोशिश हुई थी तो पता चला कि सफाई के लिए आवंटित पैसे में से अधिकांश भ्रष्ट इंजीनियरों,ठेकेदारों और नेताओं के पेट में चले गए।हालांकि बांध की मरम्मत के काम में भी लूट ही लूट है।यानी आज समस्या 1993 की अपेक्षा अधिक विकट है। अक्सर अपनी धारा बदलने की प्रवृति वाली कोसी नदी को स्थायी तौर पर नियंत्रित करने के लिए भारत सरकार,नेपाल सरकार और बिहार सरकार में जिस राजनीतिक इच्छा शक्ति की जरूरत है,वैसी कभी रही नहीं। याद रहे कि कोसी की बाढ़ से नेेपाल में भी जनधन की हानि होती है।
बिहार के लगभग सभी प्रमुख दलों के अधिकतर नेताओं ने समय- समय पर यह जरूर कहा कि नेपाल में हाई डैम बनना ही चाहिए। यही समस्या का स्थायी निदान है।वे बांध विरोधियों के तर्क से कभी सहमत नहीं हुए।पर केंद्र में सत्ता में आने के बाद वही सारे नेता और दल यह बात भूलते ही चले गए। दसियों साल से यही हो रहा है।इस बीच कई बार कोसी की बाढ़ से लाखों जनता तबाह होती रही।हालांकि इस बार जैसी प्रलयंकारी बाढ़ आई है वैसी तो कहते हैं कि दो सौ साल पहले आई थी। पिछले 30 वर्षों से लगभग सभी प्रमुख दल बारी-बारी से कंेद्र व राज्य में सत्ता में रहे हैं।कोई दल जब बिहार में सत्ता में होता है तो इस काम के लिए केंद्र को जिम्मेदार बताता है और जब वही दल केंद्र में सत्ता में आता है तो अपनी ही बात भूल जाता है।
अब तो नेपाल में राजनीतिक स्थिति पूरी तरह बदल गई है। शायद इस काम के लिए भारत सरकार को कोई बड़ी कीमत नेपाल को देनी पड़ेगी।पर इस परियोजना के निर्माण के लिए कोई भी कीमत कम होगी क्योंकि लाखों लोगों के जीवन की अपेक्षा किसी कीमत का क्या मतलब है ? आज कोसी के बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में पीड़ितों की जो दर्दनाक स्थिति है,उसका विवरण देते हुए इलेक्ट्रानिक मीडिया के संवाददाता की आखें भी डबडबा जा रही हैं और आवाज भारी हो जा रही है।यह ऐसा प्रलय है जिसमें चाहते हुए भी सरकार विपरीत मौसम में लाखों पीड़ितों को एक साथ वांछित मदद नहीं पहुंचा पा रही है।ऐसा प्रलय भविष्य में भी नहीं आएगा,इसकी कोई गारंटी भी नहीं है।
साभार जनसत्ता (29/08/2008)
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