गुरुवार, 13 जून 2024

 नेहरू और मोदी की तुलना करने से पहले 

रजनीकांत पुराणिक की पुस्तक ‘‘नेहरू’ज

97 मेजर ब्लंडर्स’’ पढ़ लीजिए।

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सुरेंद्र किशोर

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एक काल्पनिक कहानी।

एक किसान के पास 100 एकड़ जमीन थी।

कुप्रबंधन और ऐयाशी के कारण उस किसान ने 100 में से 85 एकड़ जमीन बेच दी।

किसान के बेटे ने अपने पिता को घर से निकाल दिया।

(राजनीति में ऐसा नहीं होता।इस देश के दुर्भाग्य का यही मुख्य कारण है।)

नतीजतन 15 एकड़ जमीन बच गयी।उसमें बेहतर प्रबंधन के जरिए बेटे ने बाद में तरक्की कर ली।

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सन 1985 में तब के प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि हम दिल्ली से 100 पैसे भेजते हैं,पर उसमें से 15 पैसे ही गांवों तक पहुंच पाते हैं।

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अब सवाल है कि आजादी के तत्काल बाद से ही 85 प्रतिशत की लूट कौन करता था ?

कौन लूट की छूट देता था ?

इसका जवाब 

राजीव गांधी ने नहीं दिया।

पर,जाहिर है कि राजीव के पहले जो -जो नेता प्रधान मंत्री पद पर थे,उन्होंने ही अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई।लूट की छूट दी।

जीप घोटाले से शुरुआत हुई।

भारत में लूट की छूट सरकार की ओर से ही क्यों दी गई ,उसका जवाब लेखक पाॅल आर.ब्रास ने अपनी किताब में दिया है।

अमरीकी समाजशास्त्री पाॅल आर. ब्रास ने सन् 1966 में ही यह लिख दिया था कि 

‘‘भारत में भीषण भ्रष्टाचार की शुरूआत आजादी के बाद के सत्ताधारी नेताओं 

ने ही कर दी थी।’’

उससे पहले ब्रास ने उत्तर प्रदेश में रह कर भ्रष्टाचार की समस्या का गहन अध्ययन किया था।

आज देश में सरकारी -गैर सरकारी भ्रष्टाचारों के अपार मामलों को देखते हुए यह लगता है कि यदि ब्रास ने बिहार का अध्ययन किया होता तो यहां भी  वह उसी नतीजे पर पहुंचते।

याद रहे कि इन बीमारू प्रदेशों के कई बड़े नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगते रहे हैं।

  इस अध्ययन के बाद लिखी गयी  अपनी किताब ‘‘ फैक्सनल पाॅलिटिक्स इन एन इंडियन स्टेट: दी कांग्रेस पार्टी इन उत्तर प्रदेश ’’ में वाशिंगटन विश्व विद्यालय के समाजशास्त्र के प्रोफेसर  ब्रास ने लिखा कि ‘‘कांग्रेसी मंत्रियों द्वारा अपने अनुचरों को आर्थिक लाभ द्वारा पुरस्कृत करना गुटबंदी को स्थायी बनाने का सबसे सबल साधन है।’’ अपने शोध कार्य के सिलसिले में ब्रास ने उत्तर प्रदेश के दो सौ कांग्रेसी और गैर कांग्रेसी नेताओं और पत्रकारों से लंबी बातचीत की थी।

  ध्यान रहे कि आजादी के बाद उत्तर प्रदेश और बिहार सहित कई राज्यों के कांग्रेस संगठनों और सरकारों में गुटबंदी तेज हो गयी थी।हालांकि थोड़ी -बहुत गुटबंदी पहले से भी थी।

 अपने विस्तृत अध्ययन के बाद ब्रास ने यह पाया कि ‘‘जिलों में अधिकार और पुरस्कार बांटने के महत्वपूर्ण विभाग हैं गृह ,शिक्षा , सहकारिता  और उद्योग विभाग।

  मौका पर मिलने पर होम मिनिस्ट्री के जरिए विरोधी गुट के नेताओं को सबक सिखाया जाता है।अपने लोगों को फायदा देने के लिए शिक्षा विभाग सबसे अधिक सशक्त विभाग है।

विश्व विद्यालय और निजी शिक्षण संस्थानांें पर शिक्षा मंत्री का नियंत्रण रहता है।

उनकी आर्थिक सहायता और सैकड़ों विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति उन्हीं की कृपा दृष्टि पर निर्भर करती है।

यू.पी. के हर जिले में अलग -अलग गुट के नेताओं ने अपनी -अपनी शिक्षण संस्थाएं स्थापित कर ली हैं।इस प्रकार उन्हें व्यवस्थापकों और छात्रों का बना -बनाया संगठन मिल जाता है।’’

पाॅल ने लिखा कि दो विरोधी गुटों के मंत्रियों की हमेशा चेष्टा रहती है कि वह किस प्रकार एक जिले में अपने समर्थकों को मजबूत और अपने प्रतिद्वंद्वियों को कमजोर कर सकें।

 इस चेष्टा को सफल बनाने के लिए समय -समय पर मंत्रियों के सरकारी दौरे सहायक सिद्ध होते हैं।परिणामस्वरूप कई बार जिलों में प्रशासनिक अधिकारी भी गुटबंदी से ग्रसित हो जाते हैं।इसका प्रशासन तंत्र पर प्रतिकूल असर पड़ता है।’’

पाॅल ब्रास का अध्ययन काफी पुराना है।

पर यह बात पुरानी नहीं है कि भ्रष्टाचार के आरोपियों को  सजा देने-दिलाने  में इस देश में आजादी के बाद से ही शासन का ढीला-ढाला रवैया रहा है।

नतीजतन हर स्तर के भ्रष्ट लोंगों का मनोबल समय बीतने के साथ बढ़ता चला गया, साथ ही लूट के माल के आकार-प्रकार में भी बेशुमार वृद्धि होती चली गयी।

  नतीजतन आज के अनेक नेतागण  और उनके परिजन अरबों से खेल रहे हैं।

पर जब कार्रवाई होती है तो वे सामाजिक न्याय और धर्म निरपेक्षता के मंत्र का जोर -जोर से जाप करने लगते हैं।



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दूसरी ओर, इस बात का पता लगाइए कि भारत सरकार का कुल राजस्व सन 2013-14 वित्तीय वर्ष में कितना था ?

2023-24 में कितना हुआ ?

गुगल गुरु से मदद लीजिए।

क्या शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार आज भी उतना ही है जितना मनमोहन सिंह के शासन काल में था ?

यह कह सकता हूं कि निचले स्तर पर भ्रष्टाचार में मोदी राज में भी कोई कमी नहीं आई है।

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सन 1963 में ही तत्कालीन कांग्रेस  अध्यक्ष डी.संजीवैया को  इन्दौर के अपने भाषण में यह कहना पड़ा  कि ‘‘वे कांग्रेसी जो 1947 में भिखारी थे, वे आज करोड़पति बन बैठे।( 1963 के एक करोड़ की कीमत आज कितनी होगी ?)

गुस्से में बोलते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने  यह भी कहा था कि ‘‘झोपड़ियों का स्थान शाही महलों ने और कैदखानों का स्थान कारखानों ने ले लिया है।’’ 

  नेहरू सरकार के वित मंत्री रहे सी.डी.देशमुख ने नेहरू को सलाह दी थी कि सरकार में जारी भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए उच्चाधिकार प्राप्त ट्रिब्यूल गठित कीजिए।

नेहरू ने यह कह कर मांग ठुकरा दी कि उससे प्रशासन में पस्तहिम्मती आएगी।(पुराणिक की पुस्तक का पेज नंबर-209 ) 

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13 जून 24

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पुनश्चः-- श्री पुराणिक की पुस्तक को पुस्तक महल ने प्रकाशित किया है। उम्मीद है कि इसका हिन्दी संस्करण भी उपलब्ध होगा।

    




 


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