चलो गांव की ओर
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सुरेंद्र किशोर
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इस साल जितनी गर्मी है,अगले साल उससे कम होगी,इसकी कल्पना मत कीजिए।
बल्कि बढ़ ही सकती है।
क्योंकि सरकारें पर्यावरण संतुलित करने और मौसम की गर्मी उतारने के लिए जितना खर्च करती हैं,उसमें से अधिकांश भ्रष्ट लोग लूट लेते हैं।आने वाले दिनों में नहीं लूटेंगे,इसकी कोई गारंटंी नहीं।
इसलिए हम खुद ही कुछ उपाय करें,जितना कर सकते हैं।
वह उपाय नगरों में संभव नहीं।
एक उपाय है--चलो गांव की ओर।
मैने अपने गांव की ओर अपने कदम बढ़ा दिए है।
इसीलिए दूसरों से यह बात कहने का अधिकारी बन गया हूं।
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नगरों और महानगरों से थोड़ा दूर या पास के गावंों में कुछ जमीन खरीदिए।उसमें फलदार पेड़ लगाइए।
साथ में बरगद़,पीपल और नीम भी।
जमीन में बीचोंबीच छोटा सा अपना मकान हो।
अब भी जिनकी पुश्तैनी जमीन गांव में उपलब्ध है,उसे बेचने के बारे में मत सोचिए।
सेवानिवृत होने के बाद कंक्रीट के महा जंगल से निकल कर कुछ महीने वहां बिताइए।
नगर में ए.सी.बहुत काम नहीं आएगी।ए.सी. में जहां -तहां विस्फोट की भी खबरें आ रही हैं।
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हाल में मनीष सिंह परमार ने लिखा है
कि गत 68 साल में पीपल,बरगद और नीम के पेड़ों को
सरकारी स्तर पर लगाना बंद किया गया है।
,पीपल कार्बन डाइ आॅक्साइड का 100 प्रतिशत सोंख लेता
है।
बरगद 80 प्रतिशत और नीम 75 प्रतिशत।
यदि 500 मीटर की दूरी पर पीपल का पेड़ लगायें तो आने वाले कुछ साल बाद भारत प्रदूषणमुक्त होगा।
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बरगद एक लगाइये,पीपल रोपें पांच,
घर-घर नीम लगाइये,यही पुरातन सांच।
यही पुरातन सांच,आज सब मान रहे हैं,
भाग जाये प्रदूषण सभी अब जान रहे हैं।
विश्वताप मिट जाये,होय हर जन मन गदगद,
धरती पर त्रिदेव हैं,नीम पीपल और बरगद।
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मनीष जी ने जो नहीं लिखा है,वह मैं लिख रहा हूं
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आजादी के तत्काल बाद की हमारी सेक्युलर सरकार ने
संभवतः यह सोचा होगा कि हम सरकारी खरचे
पर त्रिदेव की पूजा करने के लिए ऐसे पेड़ क्यों लगाये ?
इससे धर्मांधता बढ़ेगी।
क्या यह बात सच है ?
याद रहे कि पीपल की पूजा करती महिलाओं और जल चढ़ाते पुरुषों को आप आज भी देख सकते हैं।
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19 जून 24
ं
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