इमर्जेंसी का कहर मुझ पर भी
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सुरेंद्र किशोर
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इमर्जेंसी में सी.बी.आई.यह केस बनाना चाहती थी कि
सुरेंद्र किशोर जार्ज फर्नांडिस के ‘‘डायनामाइटी अभियान’’ के लिए नेपाल स्थित चीनी दूतावास से हर माह पैसे लाता था।
पर,मेरे फरार हो जाने के कारण जांच एजेंसी का वह मंसूबा पूरा न हो सका था।
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सन 1977 में आपातकाल की समाप्ति और मोरारजी देसाई सरकार बन जाने के बाद एक सी.बी.आई.अफसर ने मेरे एक मित्र से एक रहस्योद्घाटन किया।वह उस अफसर का पूर्व परिचित था।
बड़ौदा डायनामाइट मुकदमे की चर्चा करते हुए उस अफसर ने
उससे कहा कि ‘‘हमारी एजेंसी को इस बात का अफसोस रहा कि सुरेंद्र अकेला (अब सुरेंद्र किशोर)हमारी गिरफ्त में नहीं आ सका।
आ जाता तो हमें पता चल जाता कि वह हर माह काठमाण्डो स्थित चीनी दूतावास से फर्नांडिस के लिए कितना पैसा लाता था।’’
बाद में अचानक वह मित्र मुझे मिला तो उलाहना के स्वर में कहा कि ‘‘तुम तो बहुत खराब काम कर रहे थे इमर्जेंसी में !
डायनामाइट केस की जांच में लगा एक सी.बी.आई.अफसर ने मुझे बताया है कि तुम हर माह पैसे के लिए काठमाण्डो जाते थे।
मैंने उससे कहा कि मैं तो आज तक नेपाल नहीं गया।हां,मैं कानपुर से जरूर पैसे लाता था जिससे बिहार में भूमिगत आंदोलन का खर्च चलता था।
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इस संबंध में देश के मशहूर पत्रकार के. विक्रम राव ने लिखा है--
‘‘चीनी एजेंट के लांछन से ऐसे बचे फर्नांडिस और उनके
साथी।
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के. विक्रम राव
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जार्ज फर्नांडिस सहित हम साथी आपातकाल के लड़ैया थे।
हम सब साथी, पत्रकार भाई सुरेंद्र किशोर के सदैव कृतज्ञ रहेंगे।क्योंकि उन्होंने हम लोकतंत्र -प्रहरियों को राष्ट्रद्रोह के लांछन से बचा लिया।
मेरे साथ बड़ौदा डायनामाइट केस में कैद हुए सभी साथी सुरेंद्र किशोर जी के ताउम्र एकहसानमंद रहेंगे।
तब मैं 1975-76 में बड़ौदा में टाइम्स आॅफ इंडिया का संवाददाता था।
साल भर बाद देश भर से हम और हमारे सहयोगी पकड़े गये।
गिरफ्तार लोगों में प्रमुख रहे वीरेन जे.शाह और प्रभुदास पटवारी(दोनों बाद में राज्यपाल बने।)
हमें आशंका थी कि पटना में सक्रिय सुरेंद्र किशोर पकड़े जा सकते हैं।
खैर खुदा का,सुरेंद्र जी भूमिगत हो गये।
मेघालय जाकर अपने संबंधी के घर छिप गये।
इस बीच सी.बी.आई.ने सनसनीखेज षड्यंत्र
रचा था।
उसकी योजना थी कि पकड़े जाने पर सुरेंद्र किशोर को यातना देकर यह लिखवा लिया जाए कि वे डायनामाइट खरीदने तथा अन्य विप्लवी कामों के लिए काठमाण्डो स्थित चीनी दूतावास से धनराशि लाते थे।
मगर मंघालय में रहने के कारण अंत तक सुरेंद्र किशोर बचे रहे।
उन दिनों मेघालय में कांग्रेस की नहीं बल्कि आॅल पार्टी हिल्स लीडर्स कांफ्रंेस की सरकार थी।
वहां इमर्जेंसी का अत्याचार नहीं था।सन 1977 के चुनाव में इंदिरा सरकार का पतन हो गया।मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री बने।
डायनामाइट केस को जनता सरकार ने वापस ले लिया।इस तरह हम राजद्रोह और चीन की धनराशि से इंदिरा सरकार को उखाड़ फेंकने के झूठे अभियोग से बच गये।
शुक्र है सुरेंद्र भाई का।’’
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मैं खुद गिरफ्तारी से कैसे बचा ?
सी.बी.आई.को मुखबिर से यह पता चला था कि जुलाई, 1975 में जब जार्ज फर्नांडिस पटना आये थे तो सुरेंद्र किशोर उनके साथ था।
(याद रहे कि मैं उन दिनों दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका ‘‘प्रतिपक्ष’’ का बिहार संवाददाता था।प्रतिपक्ष के प्रधान संपादक जार्ज फर्नांडिस थे।)
साथ ही,यह भी पता चला था कि डा.विनयन और शाहाबाद इलाके के विनयन के साथी ने बड़ौदा से जो डायनामाइट लाया था,उसे सुरेंद्र के आवास में ही रखा गया था।
दिल्ली से आई सी.बी.आई.की टीम मुख्य मंत्री जगन्नाथ मिश्र के आॅफिस में पहुंची।वहां उसने संयोग से मेरे एक परिचित अफसर से ही मेरे बारे में पूछा।
अफसर ने कहा कि हम सुरेंद्र अकेला को नहीं जानते।
पर,इस बीच वह अफसर ,जो कर्पूरी ठाकुर के करीबी थे,धीरे से मुख्य मंत्री सचिवालय से निकल गये और अपने मित्र लक्ष्मी साहु के घर पहुंच गये।
कर्पूरी जी के निजी सचिव रहे साहु से कहा कि आप खोजकर सुरेंद्र को जल्द से जल्द बता दीजिए कि वे कहीं छिप जायें।क्योंकि सी.बी.आई.की टीम उन्हें पटना में बेचैनी से खोज रही है।लक्ष्मी साहु ने जक्कनपुर स्थित मेरे आवास पर मुश्किल से जाकर कहा कि आप जिस स्थिति में हैं,तुरंत यहां निकल जाइए।
इस तरह मैं वहां से निकल गया।पटना में थोड़े समय तक एक घनी आबादी वाले घर में छिपे रहने के बाद मेघालय चला गया जहां के फुलबाड़ी स्थित छोटे बाजार में (गारो हिल्स जिला)मेरे बहनोई कपड़े की दुकान चलाते थे।
इस तरह मुख्य मंत्री सचिवालय के उस अफसर की मेहरबानी से मैं भी एक बहुत बड़े लांछन से बच गया।
इमर्जेंसी की, मुझसे संबंधित, लंबी रोमांचक कहानियों का यह एक बहुत ही छोटा हिस्सा है।
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27 जून 2024
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