इसलिए जरूरी है याद करना क्योंकि
ब्रिटिश शासन से भी अधिक क्रूर
था इंदिरा गांधी का आपातकाल
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सुरेंद्र किशोर
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1.-जीने तक का अधिकार नहीं
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भारत के एटार्नी जनरल नीरेन डे ने 15 दिसंबर 1975 को सुप्रीम कोर्ट में पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष कहा था कि ‘‘यदि शासन आज किसी की जान भी ले ले, तो भी यह अदालत कुछ नहीं कर सकती।’’
तब के डरे-सहमें सर्वोच्च अदालत ने नीरेन डे के इस तर्क से सहमति जताते हुए बंदी प्रत्यक्षीकरण के उन मामलों को खारिज कर दिया जो हाईकोर्ट के बाद उसके पास विचारार्थ आए थे।
क्या अंग्रेजों ने अपने शासन काल में भारतीयों के जीने का अधिकार कभी छीना था ?
जवाब है --नहीं।
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2-जयप्रकाश नारायण आजादी की लड़ाई के दिनों लाहौर जेल में थे।
जेपी ने जेल में अपने साथ कैदी डा.लोहिया को रखने की अंग्रेज शासक से मांग की।अंग्रेजों ने उनकी बात मान ली।लोहिया उनके साथ रहे।
दूसरी ओर, तब क्या हुआ जब आपातकाल में जेपी कैद में थे ?
जेपी ने अपने साथ एक राजनीतिक कैदी रखने की इंदिरा शासन से मांग की।पर,इस मामूली मांग को भी पूरा नहीं किया गया।याद रहे कि कैद के दौरान जेपी की किडनी खराब कर दी गयी या हो गयी ! कोई विश्वस्त साथी रहता तो वह इस बात का ध्यान रखता कि जेपी को खाने-पीने में तब क्या दिया जा रहा था।
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आज कांग्रेसी कह रहे हैं कि एक पुरानी घटना यानी आपात -काल को क्यों याद किया जा रहा है ?
सवाल है कि जब कांग्रेस वीर सावरकर के माफीनामे को आज भी समय समय पर याद कर सकती है तो भाजपा आपातकाल को क्यों नहीं ?
जो काल ब्रिटिश शासन से भी
अधिक क्रूर था ?
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कांग्रेस अपनी सुविधा के अनुसार कुछ पुरानी घटनाओं को तो खूब याद करती है और कुछ अन्य को भुला देने के लिए कहती है।
कांग्रेस गुजरात दंगे को खूब याद करती है जिसमें 750 अल्पसंख्यक मारे गये थे।किंतु वह कांग्रेस शासन काल में हुए भीषण भागलपुर दंगे को याद नहीं करती जिसमें करीब एक हजार अल्पसंख्यकों की जानें गई थीं।
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गुजरात दंगे के पीछे का उकसावा भयंकर था।जबकि भागलपुर दंगे के पीछे का उकसावा मामूली।
गोधरा में जेहादी भीड़ ने ट्रेन के डिब्बे पर बाहर से पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दी जिससे 59 कारसेवक जल मरे थे।
दूसरी ओर, सन 1989 में भागलपुर के शिला पूजन जुलूस की सुरक्षा में चल रहे एस.पी.की जीप पर मुस्लिम गुंडों ने बम फेंक दिया,उसके कारण दंगा शुरू हो गया था।
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क्या कांग्रेस सन 1984 में दिल्ली में हुए एकतरफा सिख संहार को कभी याद करेगी जिसमें करीब तीन हजार सिख मारे गये थे ?
मरते सिखों को बचाने के लिए राष्ट्रपति जैल सिंह और पत्रकार खुशवंत सिंह प्रधान मंत्री राजीव गांधी को फोन करते रह गये,वे फोन पर नहीं आये थे।
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27 जून 24
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