जो इतिहास से नहीं सीखता,वह
उसे दोहराने को अभिशप्त होता है।
क्या भारत एक बार फिर गुलामी के अपने
इतिहास को दोहराने के कगार पर है ?
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दृश्य--1
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मध्य युग में जब मुस्लिम आक्रंाता इस देश को रौंद रहे थे तो मान सिंह जैसे शासक उसके पक्ष से खड़े थे।
(अपने परिवार की महिला के पृथ्वीराज चैहान द्वारा अपहरण के कारण)
जयचंद जैसे शासक निष्क्रिय हो गये थे।
महाराणा प्रताप जैसे देशभक्त अकबर का मुकाबला कर रहे थे।
(क्या आप आज यह नहीं देख पा रहे हैं कि राष्ट्रीय एकता-संप्रभुता पर आए खतरे के खिलाफ कुछ लोग तो लड़ रहे है।
कुछ अन्य लोग निष्क्रिय हैं और अन्य अनेक सत्तालोलुप लोग वोट बैंक के लिए राष्ट्र पर गंभीर खतरा पैदा कर रहे लोगों ं के साथ एकजुट हैं ?)
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इतिहास बताता है कि चितौड़ विजय के बाद तथाकथित अकबर महान ने 30 हजार हिन्दुओं को काट डाला।
हजारों स्त्रियों व बच्चियों ने बलात्कार से बचने के लिए अपने शरीर का जला (जौहर किया)लिया।
उस जीत पर अकबर ने कहा था कि ‘‘यह इस्लाम की जीत है।’’
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इसके बावजूद अस्सी के दशक में तब की केंद्रीय सरकार ने अकबर महान के सम्मान व गुणगान में सरकारी खर्चे पर राष्ट्रीय स्तर पर समारोह शुरू किया था।पर,दक्षिण भारत के विरोध के कारण उस समारोह को बीच में ही रोक देना पड़ा।
2006 में द इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस ने केंद्र सरकार को एक प्रस्ताव भेजा।प्रस्ताव था कि अकबर की 400 वां मृत्यु दिवस मनाया जाये।यह जानकारी सरकार ने राज्य सभा में दी थी।
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क्या आजादी के बाद नेहरू सरकार ने कभी महाराणा प्रताप या छत्रपति शिवाजी को इस तरह याद किया था ?
नहीं बल्कि ऐसा करने की मनाही की थी।
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दृश्य--2
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उदारवादी ब्रिटिश इतिहासकार सर जे.आर.सिली (1834-1895)ने लिखा है कि ब्रिटिशर्स ने भारत को कैसे जीता।
मशहूर किताब ‘द एक्सपेंसन आॅफ इंगलैंड’ के लेखक सिली की स्थापना थी कि
‘‘हमने (यानी अंग्रेजों ने) नहीं जीता,बल्कि खुद भारतीयों ने ही भारत को जीत कर हमारे प्लेट पर रख दिया।’’
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मध्य युग में भी वीरता की कमी के कारण हम नहीं हारे।
बल्कि आधुनिक हथियारों की कमी और आपसी फूट के कारण हारे।याद रहे कि बाबर के पास तोपें थीं और राणा सांगा के पास तलवारें।
हमारे राजा अपने विदेशी दुश्मन की माफी को बार-बार स्वीकार कर उसे बख्श देते थे।
पर, दुश्मन हमें एक बार भी नहीं बख्शता था।
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आजादी के तत्काल बाद के हमारे एकांगी ‘सेक्युलर’ हुक्मरानों ने यह सुनिश्चित किया कि ऐसा इतिहास लिखवाया जाए जिसमें हमारे देश के शूरमाओं के शौर्य और वीरता की चर्चा तक नहीं हो।
वे इस काम में सफल रहे।
उनका तर्क था कि इससे हिन्दुत्व पनपेगा।
यानी, उनकी मंशा थी कि भले दूसरा धर्म पनप जाए, किंतु हिन्दुत्व न पनपे।
यही थी अपने वोट बैंक की रक्षा की उनकी रणनीति।
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दृश्य--3
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आज की स्थिति क्या है ?
आज इस देश में पाॅपुलर फं्रट आॅफ इंडिया नामक हथियारबंद जेहादी संगठन अति सक्रिय है जिसने अपने साहित्य (फुलवारीशरीफ,पटना में हुई छापामारी में वह साहित्य बरामद हुआ।)
में लिखा है कि हम हथियारों के बल सन 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बना देंगे।
हालांकि उसने कहा है कि यदि इस देश के मुसलमानों में से 10 प्रतिशत लोग भी हमारे साथ हो जाएं तो हम जल्द ही सफल हो जाएंगे।
यानी, भारत के 90 प्रतिशत मुसलमान उसके साथ हथियारबंद होने को तैयार नहीं है।यह देश के लिए शुभ लक्षण है।
पर,इन दिनों अधिकतर मुस्लिम मतदातागण पी.एफ.आई.-एस.डी.पी.आई. के इशारे पर ही कुछ खास राजनीतिक दलों खासकर कांग्रेस को वोट दे रहे हैं।इस लोक सभा चुनाव में तो यह बड़े पैमाने पर हुआ है।बसपा को इस बार मुस्लिम वोट एकदम नहीं मिला।
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उसी वोट बैंक के लोभ में अधिकतर तथाकथित सेक्युलर राजनीतिक दलों के नेताओं में से किसी के मुंह से पी.एफ.आई.के खिलाफ कभी एक शब्द का बयान भी आप न सुनेंगे और देखेंगे।
इससे उल्टी बात हो रही है।
जो दल,नेता या बुद्धिजीवी पी.एफ.आई.के एजेंडे की जानकारी लोगों को देते हैं,उनके बारे में कांग्रेस तथा कुछ अन्य दल व सेक्युलर बुद्धिजीवी कहते हैं कि वे देश में नफरत फैला रहे हैं।
ऐसा सिर्फ भारत में ही संभव है।
इसीलिए तो यह देश सैकड़ों साल तक गुलाम रहा।
यह सब देख-जान-सुन कर आपको अब इस बात का अफसोस नहीं होना चाहिए कि आप मध्ययुग में पैदा नहीं हुए थे।
वही सारे दृश्य दोहराए जा रहे हंै जो हमने किताबों में पढ़े हैं या दंतकथाओं में सुने हैं।
यदि पी.एफ.आई.सन 2047 में सफल हो गया तो गैर मुस्लिमों के लिए वह गुलामी ही तो होगी !!
जिन्हें स्थिति की गंभीरता को समझना हो वे समय रहते समझ जाएं अन्यथा--
तब पछताए होत का जब चिड़िया चुग जाए खेत !!!!
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7 जून 24
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