रविवार, 15 सितंबर 2024

 कल तो एसएसपी को जाम के कारण पैदल 

चलना पड़ा।कल बारी  डी जी पी की आ सकती है 

------------------

सुरेंद्र किशोर

-------------

आज के अखबार की ताजा खबर

----------

पटना जिले के

दानापुर थाने का निरीक्षण करने गये एस.एस.पी. जाम में फंसे,पैदल पहुंचे।

थानाध्यक्ष को लगाई फटकार,

यातायात एस.पी.को दिये निदेश

----------

एक पिछली खबर

--------

कुछ ही साल हुए । 

पटना हाईकोर्ट के एक जज ने कोर्ट में हाजिर थानेदार से पूछा--

सड़कों पर अतिक्रमण करवा कर रोज कितना कमा लेते हो ?

यह खबर भी अखबारों में छपी थी।

------------

जानकार बताते हैं कि उपर्युक्त दोनों खबरों के बीच सीधा रिश्ता है।

क्या जज महोदय भी यह नहीं जानते हैं कि जाम के पीछे  कौन -कौन से तत्व हंै ?

 फिर वे सुओ मोटो यानी स्वतः संज्ञान लेकर सख्त कार्रवाई क्यों नहीं करते ?

एस एस पी साहेब ने भी जाम के लिए थानेदार को ही फटकारा।

यानी, कारण मुख्यतः थानेदार है।

पर,क्या सिर्फ थानेदार ही जिम्मेदार है ?

दरअसल लगता है कि जनता,खास कर एम्बुलेंस सवार मरीजों के साथ रोज-रोज इतना बड़ा अनर्थ-अन्याय करते रहने की ताकत कहीं और से थानदारों को मिलती है।

अपार जन-पीड़ा प्रदान करके की भी सजा से बच जाने की ताकत सिर्फ थोनदार की अपनी नहीं हो सकती।इस पाप में हिस्सेदार बड़े -बड़े लोग भी हो सकते हैं। 

------------

यदि कर्तव्यनिष्ठ हैं तो पैदल चलने को मजबूर हुए एस.एस.पी.साहब को अब यह देखना है कि उनकी कोई अगली यात्रा भी पैदल यात्रा ही न बन जाये !

यह भी देखना है कि जाम पर रोक नहीं लगी तो अगले दिन डा.जी.पी.साहब को भी कहीं पैदल चलने को मजबूर होना पड़ सकता है।

 आम जनता का हाल जानिए।मैं जरूरी काम रहते हुए भी पटना मुख्य नगर में नहीं जाता क्योंकि मुझे आशंका रहती है कि कहीं मैं घंटों 

जाम में न फंस जाऊं !

यदि किसी व्यक्ति को लगातार दो-तीन घंटे जाम में फंस कर पेशाब रोकना पड़ जाये तो उसकी किडनी पर उसका खराब असर पड़ सकता है।मुझे अपनी किडनी बचाये रखनी है।

----------------

इस बात पर शीर्ष सत्तासीनों को भी विचार करना चाहिए,कि पहले के कुछ पुलिस अफसर किस तरह अपनी ड्यूटी ठीक ढंग से कर पाते थे ?

 डी.एन.गौतम और किशोर कुणाल जैसे एस.पी. जब जिलों में हुआ करते थे तो सड़क जाम कौन कहे, अपराधी भी जिला छोड़ देते थे।

कभी पटना में कार्यरत दुबले -पतले बड़े ट्राफिक अफसर बनवारी सिंह की कार्य दक्षता याद आती है।जाम स्थल पर तुरंत पहुंच जाते थे।

आज ऐसा क्यों नहीं होता ?

क्या इस बीच एस.पी.या ट्राफिक एस पी की ताकत कम कर दी गयी है ?

बिल्कुल नहीं।

फिर सड़कों पर अराजकता के क्या कारण हैं ?

यह लाइलाज बीमारी क्यों बन चुकी है ?

क्या शीर्ष राजनीतिक कार्यपालिका के लोग अफसरों को 

जाम हटाने से रोकते हंै ?

या पैसे के लिए जाम लगवाने वालों को वैसा करते रहने के लिए बढ़ावा देते हैं ?

या, आज के एस.पी.गण, ‘‘गौतम-कुणाल कार्य कौशल’’ से 

अनभिज्ञ हैं ?

यदि अनभिज्ञ हैं तो वे दोनों

पटना में ही रहते हैं।जाकर पूछ लीजिए।

(मैं यहां यह क्यों कहूं कि थानेदारों को अपने वरीय अधिकारियों की ‘‘गैर प्रशासनिक जरूरतें’’ पूरी करनी 

पड़ती हंै ?उसके लिए जाम लगवा कर पैसे जुटाने पड़ते हैं ?) 

पर,एक बात जरूर कहूंगा।

अस्सी के दशक में भागवत झा आजाद जैसे दबंग मुख्य मंत्री ने कहा था कि बिहार में मेरा राज नहीं, बल्कि दारोगा राज है।

यानी सुधारने की कोशिश में वे विफल रहे थे।

-----------

आए दिन प्रमंडलीय आयुक्त, पटना की सड़कों से अतिक्रमण हटाने के लिए सड़कों पर उतरते हैं।

पर,हर बार वे फेल होते हैं।

उनकी स्थिति हास्यास्पद हो जाती है और आम जनता की हालत पीड़ाजनक।

क्या हम सड़क जाम से पीड़ा झेलने के लिए ही पैदा हुए हैं।

कोई भी देख सकता है कि आम लोग जिस जगह जाम से कराह रहे होते हैं,उसके ठीक बगल में एक ट्राफिक पुलिसकर्मी  आराम से खैनी मल रहा होता है । दूसरा जाम लगाने के लिए उन लोगों से शुकराना वसूल रहा होता जिनके कारण जाम लगती है।

---------------

15 सितंबर 24


शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

       सामयिक चेतावनी

  ----------------

जो पति -पत्नी बात -बात पर आपस में झगड़ते

रहते हैं।

   तनाव के कारण जिन्हें अपनी संतान को प्यार करने की फुर्सत नहीं मिलती।

 उनकी अल्पवयस्क बेटियां घर के 

बाहर और कई बार जाति के बाहर

प्यार खोजने लगती हैं।

वैसी ही बेटियों में से कुछ बेटियां ‘‘लव जेहाद’’ की शिकार हो जाती हैं।

----------

13 सितंबर 24

 


गुरुवार, 12 सितंबर 2024

 भारत पर गिद्ध दृष्टि !

----------

बांग्ला देश

-------

पूर्व प्रधान मंत्री खालिदा जिया भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद थीं।शेख हसीना के सत्ता से जबरन हटाए जाने के तत्काल बाद खालिदा को रिहा कर दिया गया।

नोबल विजेता मुहम्मद युनूस को गत जनवरी में छह माह की सजा वहां की कोर्ट ने सुनाई थी।उन पर भी भ्रष्टाचार के आरोप थे।सत्ता परिवर्तन के बाद युनूस भी दोषमुक्त करार दे दिए गए।

याद रहे कि विदेशी मदद से बांग्ला देश की सरकार का तख्ता पलट दिया गया है।

वहां पहले आरक्षण को लेकर छात्रगण सड़कों पर आये।बाद में जेहादी और राजनीतिक कार्यकत्र्तागण सड़कों पर आ गये।

मध्ययुगीन अराजकता फैल गयी।(आज का बांग्ला देश देखकर भारत के लोगों को इस बात का हल्का अनुमान लगाने का अवसर मिल गया कि हमारे यहां का 

मध्य युग कैसा रहा होगा !

हमारे पूर्वजों को तब कैसे -कैसे और कितने कष्ट,अपमान,पीड़ा,दुख सहने पड़े होंगे।)

जेहादियोें ने इस बहाने बांग्ला देश में हिन्दुुओं की संख्या कुछ और ‘‘कम’’ कर दी।शासन ने उनका सहयोग किया।

चूंकि दो महत्वपूर्ण हस्तियों को जेल से रिहा कराना था,इसीलिए सत्ता परिवर्तन करा दिया गया।उसके बिना वे जेल से रिहा नहीं होते।

-----------------

पाकिस्तान

-----------

पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में हैं।उन्हें कोर्ट से राहत नहीं मिल पा रही है।

उन्होंने हजारों की संख्या में अपने समर्थकों को सड़कों पर उतार दिया।क्या वहां भी तख्ता पलट की ही कोशिश है ?

चूंकि इमरान को कोर्ट से राहत नहीं मिल पा रही है,इसलिए उनके भी समर्थकगण जबरन सत्ता परिवर्तन करके इमरान को राहत दिलवाना चाहते हैं। 

----

भारत

-----

भारत में अनेक बड़े -बड़े प्रतिपक्षी नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों मेें मुकदमे चल रहे हैंै।कोर्ट से आरोपियों और आरोपितों को कोई खास मदद नहीं मिल पा रही है।सबूत ही ऐसे हैं।

 यहां भी बांग्ला देश दोहराने की धमकी उनकी ओर से दी जा रही है।

कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर और सलमान खुर्शीद ने गत माह कहा कि भारत में भी बांग्ला देश दोहराया जा सकता है।

   यानी ,यदि भ्रष्टाचार के केस में कोर्ट मदद न करे तो लोगों को सड़कों पर उतार दिया जाये।जबरन सत्ता परिवर्तन करके मुकदमों से मुक्ति पा ली जाये ?

इस देश के आरोपियों और आरोपितों को यह उम्मीद थी कि जार्ज सोरोस के अपार पैसों की मदद से मोदी को 2024 चुनाव मेें उखाड़ फेंकंेगे।

पर वह काम हो नहीं सका।

अब दूसरे उपाय किये जा रहे हैं।दुनिया भर के भारत विरोधी तत्वों से संपर्क किया जा रहा है।

बांग्ला देश के एक अतिवादी नेता ने हाल में ममता बनर्जी से अपील की है कि वे पश्चिम बंगाल को मुस्लिम देश बना दें ,हम आपको प्रधान मंत्री बनवा देंगे।

यानी,कुछ भारत विरोधी विदेशी शक्तियों ने भारत को गाजर-मूली समझ लिया है।उनका मनोबल स्थानीय मिरजाफरों और जयचंदों ने बढ़ा रखा है।

----------

सन 2024 के लोक सभा चुनाव से ठीक पहले विवादास्पद अमरीकी अमीर जार्ज सोरोस ने कहा था कि मोदी को सत्ता से हटाने के लिए एक बिलियन डालर खर्च करूंगा।(यह भी यह रकम 2 बिलियन डालर तक जा सकती है)भारत के कौन कौन नेता सोरोस के संपर्क में रहे हैं,यह बात छिपी नहीं है।

गत चुनाव के तत्काल बाद बिहार के विभिन्न हिस्सों से मुझे जानकारियां मिलीं कि चुनाव से ठीक पहले अनेक गांवों-मुहल्लों में काफी धन -वितरण हुआ।अभूतपूर्व पैमाने पर मतदाताओं के बीच पैसे खर्च किए गए।वे पैसे संभवतः सोरोस के ही थे।

फिर भी उसका सीमित असर ही हुआ।

अब मुकदमा झेल रहे नेतागण व अन्य लोग यह कोशिश कर रहे हैं कि इस देश में भी लाखों लोग एक साथ सड़कों पर उतर आएं और मोदी सरकार से हम इस्तीफा ले लें।

पाकिस्तान और बांग्ला देश से भी ऐसी ही अपील भारत के जेहादी तत्वों से की जा रही है।देश के भीतर से भी ऐसे प्रयास अब तेज हो गये हैैं।

पहले से तो ऐसे छिटपुट प्रयास हो ही रहे थे।

 ---------------

कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने मोदी सरकार को धमकाते हुए कहा है कि 

यदि गत लोक सभा चुनाव में हमें 20 सीटें और अधिक मिल गई होतीं तो वे लोग आज जेलों में होते।(वे लोग मतलब मोदी जमात)

 -------------

यानी कांग्रेस ने जिस तरह इमरजेंसी में किसी कसूर के बिना ही जेपी-कृपलानी-मोरारजी- चदं्रशेखर सहित असंख्य लोगों को जेलों में बंद कर दिया,उसी तरह सत्ता मिलने पर फिर वही काम कांग्रेस आज भी करने का हौसला रखती है ताकि कुछ नेताओं को मुकदमों से बचाया जा सके।

 संभव है कि मोदी विरोधी जमात के नेताओं में से कई बड़े नेतागण आने वाले महीनों में जेल जा सकते हैं।उसका डर उन्हें सता रहा है।

याद रहे कि सिर्फ अपनी लोक सभा की सदस्यता बचाने के लिए ही 1975 में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने देश पर बर्बर आपातकाल थोप दिया था। 

----------------

खड़गे साहब यदि समझते हैं कि मोदी की जमात में ऐसे नेताओं की भरमार है जो कसूरवार हैं और उन्हंे जेलों में रहना चाहिए तो उन्हें इसके लिए ‘‘स्वामी फार्मूला’’ अपनाना चाहिए।पर उसके लिए कोर्ट में उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के ठोस सबूत देने होंगे।

  डा.सुब्रह्मण्यम सवामी ने जब जय ललिता और ए.राजा को जेल भिजवाया,तब स्वामी खुद सत्ता में नहीं थे।स्वामी ने ही नेशनल हेराल्ड घोटाला केस में सोनिया-राहुल को जमानत लेने के लिए मजबूर कर दिया हैै।

  जिस ब्रह्मास्त्र का प्रयोग स्वामी ने किया,वह खड़गे या किसी अन्य के पास भी उपलब्ध है।आम जनता को उपलब्ध है।

डा.स्वामी की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट ने सन 2012 में ही यह निर्णय दे दिया है कि किसी भी लोक सेवक के खिलाफ कोई भी नागरिक कोर्ट में केस कर सकता है।सांसद,विधायक आदि भी लोक सेवक में आते हैं।

---------------

कुल मिलाकर आने वाले दिन भारत के लिए कठिन हैं।संघर्षों के दिन हो सकते हैं।मोदी ने भी हाल में ऐसा ही संकेत दिया है।

आशंका है कि दो परस्पर विरोधी शक्तियां आमने-सामने होंगी।

भारत के अब हर देशभक्त नागरिक को अपने लिए अपना एक पक्ष चुन ही लेना होगा।आप तब निष्पक्ष नहीं रह पाएंगे।अभी से मन बना लें।

   क्योंकि.......जो तटस्थ हैं,समय लिखेगा,उनका भी अपराध !!

-------------

  वैसे सबको यह याद रहे कि भारत में अत्यंत मजबूत व गैर राजनीतिक सेना है।मजबूत पुलिस और कारगर अर्धसैनिक बल हैं।बांग्ला देश की घटनाने भारत के लोगों को सचेत व जाग्रत कर दिया है कि किस तरह इस देश को इस्लामिक देश में बदलने कीे कोशिश करने वालों का हौसला तोड़ा जाए।

---------------

क्या शुरू हो गया 

‘‘सभ्यताओं का संघर्ष’’ ?!!

--------

नब्बे के दशक में अमरीकी राजनीतिक वैज्ञानिक सेम्युएल 

पी. हंटिग्टन ने लिखा था कि शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अब सभ्यताओं के बीच संघर्ष होगा।

  उस संघर्ष में चीन इस्लामिक देशों के साथ रहेगा।

   (इजरायल बनाम हमास युद्ध में चीन किधर है,देख ही लीजिए !)

......................

हंटिंग्टन की स्थापना के सामने आने के तत्काल बाद भारत के बहुत सारे सेक्युलर नेताओं व प्रगतिशील बुद्धिजीवियों ने हंटिग्टन की सख्त आलोचना की थी।कहा था कि ऐसा कभी नहीं होगा।

........................

पर, आज दुनिया के कई देशों में क्या हो रहा है ?

हाल में ब्रिटेन,फ्रांस,जर्मनी आदि में क्या-क्या हुआ ?

वहां हो रहे चुनावों के ट्रेंड क्या बता रहे हैं ?

  सूचनाओं के विस्फोट के इस युग में कुछ भी छिपा नहीं रहता है।

आपने उन संघर्षों के चरित्र पर गौर किया है ?

हमास से लेकर भारत के पी.एफ.आई. तक के कारनामों पर गौर करें।

हमास के पक्ष में दुनिया के अनेक देशों में,जिसमें भारत के कुछ विश्व विद्यालय शामिल हैं, बड़े -बड़े प्रदर्शन हुए।

पाक के एक जेहादी ने कहा है कि हम भारत के साथ भी वही करेंगे जो हमास, इजरायल के साथ कर रहा है।  

क्या यह सब सभ्यताओं का संघर्ष नहीं है ?

भारतीय टी.वी.चैनलों पर और अखबारों के पन्नों पर जितने लोग जेहादी हमास के पक्ष में ‘बोल’ रहे हैं,उतने शायद मध्य युग में भी भारत में नहीं थे। 

   ध्यान से देख लीजिए कि कौन किधर से गेंदबाजी कर रहा है !

फाइनल मैच में काम आएगा।

तथाकथित ‘सेक्युलर’ तत्वों की लीपापोती या शुर्तुमुर्गपना के बावजूद भारत में भी आज क्या-क्या  हो रहा है ?

आगे पूरी दुनिया में क्या -क्या होने वाला है ?

ईश्वर करे, दुनिया में शांति रहे।

पर,वह अब कई बातों पर निर्भर करेगा।

ध्यान रहे कि दुनिया भर के जेहादी अब जरा जल्दी में हैं।

..........................


 






     


बुधवार, 11 सितंबर 2024

    इसलिए नहीं शामिल होता लाइव टी.वी.शो में

     -------------

       सुरेंद्र किशोर

     -------------

कई साल पहले की बात है।

बहुत आग्रह करने पर मैं एक स्थानीय चैनल के लाइव डिबेट शो में शामिल हुआ था।

चर्चा के दौरान एक अशिष्ट नेता ने मेरे खिलाफ ऐसी टिप्पणी कर दी कि मैं चुप रह गया।

क्योंकि उसके स्तर पर मैं नहीं उतर सकता था।

  उसके बाद ही मैंने निश्चय कर लिया कि कभी लाइव डिबेट शो में नहीं शामिल होऊंगा।

  क्योंकि मेरे परिजन-रिश्तेदार नहीं चाहेंगे कि कोई गुंडा मेरा अकारण सार्वजनिक रूप से अपमान करे।वैसे भी किसी शो में शामिल होने का मेरे पास समय भी नहीं होता,शामिल होने का कोई प्रयोजन भी नहीं है।

मैं अपने किसी-न किसी पसंद के काम लगा रहता हूं।उससे फुर्सत भी नहीं है।

------------

आजकल तो अधिकतर राष्ट्रीय चैनलों पर भी बहस का स्तर काफी नीचे गिर चुका है।

  कभी -कभी तो यह तय करना कठिन हो जाता है कि संसद में बहस का स्तर अधिक नीचे है या 

कुछ (सबका नहीं )टी.वी.चैनलों का ! 

देश की कई प्रतिष्ठित हस्तियां भी सच बात बोलने के कारण अक्सर चैनलों पर अपमानित होती रहती हैं।

मुझे उन पर दया आती है।उनके बाल-बच्चों को चाहिए कि वे उन्हें शो में जाने से मना करें।

यह चैनलों और उनके एंकरों की विफलता है कि वे आदतन बिगड़ैल ‘‘अतिथियों’’ को 

अनुशासित नहीं कर पाते, न ही उनके फेडर डाउन करते हैं।

लगता है कि जानबूझ कर वे कुत्ता-भुकाओ कार्यक्रम चलाकर खुश होते हैं।

एक साथ तीन से अधिक लोगों को बैठाओगे तो कोई सार्थक बहस हो ही नहीं सकती।क्योंकि कम ही लोग अपनी बारी का इंतजार करते हैं।  

------------

और अंत में

-------

एक तरफ भारतीय रेल, हाई स्पीड ट्रेन और बुलेट ट्रेन पर जोर दे रहा है।दूसरी ओर, अधिकतर टी.वी.चैनलों के समाचार वाचकों और वाचिकाओं ने वाचन की गति काफी बढ़ा दी है।

गति ऐसी है कि कई बार उनका एक  शब्द अगले शब्द पर चढ़ता जाता है और श्रोताओं को अंततः कुछ समझ में नहीं आता।

 आप थोड़े समय में 100 समाचार पढ़ते हो।उनमें से 25 समाचारों का ओर-छोर समझ में नहीं आता।

 75 ही पढ़ो।

इतमिनान से पढ़ो ताकि सारे समाचार लोगों की समझ में आ जाये।टी.वी.चैनलों की लोकतंत्र में बहुत बड़ी भूमिका है।लोगबाग उम्मीद भरी नजरों से उस ओर देखते हैं।

इसके स्तर को और उठाइए,गिराइए मत।

------------- 

11 सितंबर 24


मंगलवार, 10 सितंबर 2024

 घर के बुजुर्ग से सवाल

-----------

क्या सुबह उठकर आप खुद ही घर के आगे-पीछे के दरवाजे खोलते हैं और जलती बत्तियां आॅफ करते हैं या आपके बेटा या पोता अब यह काम करने लगा है ?

-------------

शाम होते ही या रात में सोने से (जिस इलाके में कानून -व्यवस्था की स्थिति जैसी होती है,उसके अनुसार ही लोग घर बंद कर लेने का समय तय कर लेते हैं)पहले घर के दरवाजे कौन बंद करता है ?

कौन यह देखता है कि बत्तियां जली हैं या नहीं ?

आप या आपके पुत्र या आपका पोता ?

------------

इस सवाल के जवाब में ही यह तथ्य निहित है कि आपकी जिम्मेदारियां संभालने लायक आपका उत्तराधिकार तैयार हो चुका है या अभी नहीं !

----------------  

9 सितंबर 24


 



कारगिल युद्ध में यदि इजरायल ने हमारी मदद

 न की होती तो पता नहीं क्या होता !

------------------

फिर भी इस देश की कुछ शक्तियां यह चाहती हैं 

कि भारत सरकार, इजरायल से दोस्ती न निभाए

------------------------

सुरेंद्र किशोर

------------------------

  कारगिल युद्ध की कठिन घड़ी में भारतीय सेना को 

उपग्रह निगरानी तंत्र की सख्त जरूरत थी।रात्रि दर्शी उपकरण चाहिए था।

हमें उन दुर्गम पहाड़ियों पर बारूद रोधी वाहन और मानव रहित विमान चाहिए था।

फ्रिक्वेंसी हाॅपर और युद्ध क्षेत्रीय रडार

आदि चाहिए थे।

इनमें से कई जरूरी साज ओ सामान हमें तब इजरायल ने ही मुहैया कराए थे।

कहावत है--फें्रड इन नीड, इज फं्रेड इनडीड।

(फरवरी, 23 में तुर्की में भीषण भूकम्प आया।भारी तबाही हुई।भारत सरकार ने तुर्की की भारी तदद की।पर एक ही माह बाद तुर्की सरकार कश्मीर के सवाल पर भारत के विरूद्ध पाकिस्तान के पक्ष में खड़ी हो गयी।)

कई देशों ने कारगिल युद्ध के समय भारत को ऐसी युद्ध सामग्री देने से इजरायल को रोकने तक की भी कोशिश की थी।याद रहे कि किसी अन्य देश ने मांगने पर भी तब हमारी जरूरी मदद नहीं की थी।

पर इजरायल उन देशों के विरोध को दरकिनार करके हमें जरूरी सामान भेजे जिससे हम तब युद्ध जीत सके थे। 

-------------

पर, आज जब इजरायल को भारत से युद्ध सामग्री की सख्त जरूरत है तो स्वाभाविक ही है कि यह देश उसकी आपूर्ति करे।

पर,इस निर्यात को रोकने के लिए चर्चित वकील प्रशांत भूषण हाल में सुप्रीम कोर्ट चले गये।

 यह अच्छी बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने कल उस वकील को भारतीय संविधान का अनुच्छेद-253 दिखा दिया।

कहा कि अंतरराष्ट्रीय संधियों को लेकर सरकार का ही क्षेत्राधिकार है।इसमें कोर्ट कुछ नहीं कर सकता।

आपकी याचिका विचार योग्य नहीं है।

याद रहे कि 12 साल पहले प्रशांत भूषण ने कहा था कि कश्मीर में जनमत संग्रह होना चाहिए।उस बयान से गुस्साए कुछ युवकों ने उनके चेम्बर में घुसकर प्रशांत भूषण की पिटाई की थी।

पिटाई करके अच्छा नहीं किया था।बल्कि ऐसे लोगों को बोलने देना चाहिए जो कुछ वे बोलना चाहते हें।

क्योंकि उससे यह पता चल जाता है कि देश में सक्रिय कुछ खास तरह की शक्तियां क्या चाहती हैं।

------------------

दुनिया के अन्य सारे देश अपने मित्रों का चयन सदैव सोच-समझकर और अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर ही करते हैं।पर भारत में आजादी के बाद ही कुछ खास तरह के लोगों ने नेहरू सरकार को सलाह दी थी कि अमेरिका नहीं बल्कि सोवियत संघ से दोस्ती कीजिए।हालांकि ऐसा कोई बंधन नहीं होना चाहिए था।सब से अलग -अलग देशहित में दोस्ती करने की कोशिश की जानी चाहिए थी।

वैसी सलाह का खामियाजा सन 1962 में इस देश को भुगतना पड़ा।सोवियत संघ से पूर्वानुमति लेकर चीन ने भारत पर चढ़ाई करके हमारी हजारों वर्ग मील जमीन पर कब्जा कर लिया।अंततः नेहरू ने अमेरिका को कुछ ही घंटों के भीतर बारी- बारी से तीन  त्राहिमाम संदेश भेजे । जब चीन को लगा कि अमेरिका हस्तक्षेप कर देगा तो चीन पीछे हट गया।

--------------

आज भी प्रशांत भूषण सदृश्य लोग व शक्तियां चाहती हंै कि 

जब पाक -चीन-कुछ भीतरी तत्व -अब तो बांग्ला देश से भी गंभीर खतरा पैदा हो तो इजरायल जैसे मित्र हमारे काम न आ पायें।

--------------- 

10 सितंबर 14



सोमवार, 9 सितंबर 2024

     दो हजार साल में कुछ नहीं बदला ?!!

    ------------------

विष्णु शर्मा रचित ‘‘पंचतंत्र’’के एक श्लोक का अर्थ है--

‘‘कुलीनता, प्रवीणता तथा सज्जनता आदि गुणों की अपेक्षा न करके लोग सम्पन्न व्यक्ति को कल्पतरु की भांति सन्तुष्ट करने का प्रयास करते हैं।

  निर्धन व्यक्ति चाहे जितना भी कुलीन एवं कुशल हो,कोई उसकी परछाई तक लांघना नहीं चाहता है,जबकि अकुलीन होने पर भी धनी व्यक्ति की छाया में रहना सबको पसन्द होता है।’’

-----------------

पंचतंत्र की रचना गुप्तकाल में हुई थी।

  अब आप आज चारों तरफ नजर दौड़ाइए।

आकलन कीजिए।

फिर बताइए कि पिछले करीब दो हजार साल में इस मामले में अपना देश कितना बदला है ?

---------------

सुरेंद्र किशोर

9 सितंबर 2024 

 


शनिवार, 7 सितंबर 2024

 


कितना कारगर होगा जाति गणना का दांव 

-----------------  

राहुल गांधी जाति गणना कराकर आरक्षण बढ़ाने को जो वादा कर रहे हैं,वह एक झांसा ही अधिक है और झांसा देना कांग्रेस की आदत है।

-----------------

सुरेंद्र किशोर

------------------

कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी का कहना है कि हम जातीय  गणना अवश्य कराएंगे और उससे मिले आंकड़ों के आधार पर जिस जातीय समूह को जितने अधिक आरक्षण की जरूरत होगी, उसें उतना आरक्षण देंगे।

वह कहते हैं कि सर्वोच्च अदालत ने 50 प्रतिशत आरक्षण की जो अधिकत्तम सीमा तय कर रखी है,उसे सत्ता में आने के बाद हम समाप्त कर देंगे।

   यदि राहुल की पार्टी सत्ता में आ भी गई तो क्या वह यह काम कभी कर पाएगी ?

संभव तो नहीं लगता,

क्योंकि यहां अधिकार संपन्न सुप्रीम कोर्ट भी मौजूद है, जो  किसी भी ऐसे निर्णय की समीक्षा ‘‘संविधान की मूल संरचना’’के तय सिद्धांत की परिधि में रहकर करता है।

   इसके बावजूद राहुल गांधी लोगों से कह रहे हैं कि हम आपके लिए चांद तोड़कर ला देंगे।यानी वह लोगों को झांसा देकर उनके वोट लेना चाहते हैं।

ऐसा ही झांसा सन 1969 में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने भी दिया था जो जाहिर है कि झूठा साबित हुआ।

उन्होंने कहा था कि हम गरीबी हटा देंगे।वह यह कहतीं कि गरीबी कम कर देंगे तो वह सही हो सकता था।पर, उससे लोग उनके झांसे में नहीं आते।

झांसा देना कांग्रेस के लिए कोई नई बात नहीं है।

  आजादी के तत्काल बाद के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था,‘‘कालाबाजारियों को निकत्तम लैम्पपोस्ट पर फांसी दे दी जानी चाहिए।’’

उनके इस उद्गार का जनता पर सकारात्मक असर  पड़ा।लोगों में उम्मीद जगी कि अब भ्रष्टाचार से राहत मिलेगी।

  पर उसके बाद हुआ क्या ?

आजादी के तत्काल बाद जब पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठ 

की तो भारतीय सेना को जीपों की भारी कमी महसूस हुई।

  सरकार ने तय किया कि ब्रिटेन से तत्काल दो हजार जीपें खरीदी जाएं।

प्रधान मंत्री कार्यालय ने ब्रिटेन में उच्चायुक्त वी.के.कृष्ण मेनन को महत्वपूर्ण तत्संबंधी संदेश भेजा।

बाद में पता चला कि ब्रिटेन की किस कंपनी से जीपें खरीदी जाएं उसके बारे में संकेत भी प्रधान मंत्री कार्यालय ने मेनन को दे दिया था।

उस कंपनी की कोई साख नहीं थी।

  मेनन ने प्रशासनिक प्रक्रियाओं का पालन किए बिना उस कंपनी को एक लाख 72 हजार पाउंड का अग्रिम भुगतान भी कर दिया।

    कंपनी ने दो हजार में से सिर्फ 155 जीपें भारत भेजीं।

वे भी इस्तेमाल लायक ही नहीं थीं।

उन्हें बंदरगाह से चलाकर गैरेज तक भी नहीं ले जाया जा सकता था।

  उस पर संसद में भारी हंगामा हुआ।

यह बात भी सामने आई कि पैसे का भुगतान खुद कृष्ण मेनन ने कर दिया था जबकि यह काम उनका नहीं था।

अनंत शयनम अयंगार की अध्यक्षता जांच कमेटी बनी।

 कमेटी ने अपनी रपट में कहा कि जीप खरीद की प्रक्रिया गलत थी।इसकी न्यायिक जांच होनी चाहिए।

  पर,नेहरू सरकार ने न्यायिक जांच नहीं कराई।

जब फिर यह मामला संसद में उठा तो 30 सिंतबर, 1955 को तत्कालीन गृहमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत ने कहा कि हमारी सरकार ने इस केस को बंद करने निर्णय किया है।यदि इस निर्णय से प्रतिपक्ष संतुष्ट नहीं तो वह अगले आम चुनाव में इसे मुद्दा बनाकर देख ले।

यह बात एक ऐसी सरकार कह रही थी जिसके मुखिया नेहरू ने जनता से वायदा किया था कि गलत करने वालों को नजदीक के लैम्प पोस्ट पर फांसी से लटका दिया जाना चाहिए।यानी उनका वायदा झांसा साबित हुआ।

   नेहरू के शासन काल में अन्य घोटाले भी हुए।

 तत्कालीन केंद्रीय मंत्री सी.डी.देशमुख ने नेहरू को सलाह दी कि भ्रष्टाचार पर निगरानी के लिए एक संगठन  बनना  चाहिए।इस पर नेहरू ने कहा कि इससे प्रशासन में पस्तहिम्मती आएगी।

  नतीजतन तत्कालीन कांग्रेस  अध्यक्ष डी.संजीवैया को  यह कहना पड़ा  कि ‘‘वे कांग्रेसी जो 1947 में भिखारी थे, वे आज करोड़पति बन बैठे हैं।झोपड़ियों का स्थान शाही महलों ने और कैदखानों का स्थान कारखानों ने ले लिया है।’’(इन्दौर का भाषण )

  वर्ष 1971 के बाद तो सरकारी  लूट की गति और तेज हो गई।

 इंदिरा गांधी की सरकार 1969 में उस समय अल्पमत में आ गई, जब कांग्रेस में विभाजन हो गया।

  कम्युनिस्टों,डी.एम.के आदि की बैसाखी के सहारे उनकी सरकार किसी तरह घिसट रही थी।

ऐसे मौके पर ही इंदिरा गांधी ने आम गरीबों को झांसा देने के लिए ‘‘गरीबी हटाओ’’ का नारा दिया।

 लोग उनके झांसे में आ गये और 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेसं को लोक सभा में पूर्ण बहुमत मिल गया।

इस जीत के बाद वह गरीबी हटाने का वायदा भूल गईं।उन्होंने पहला सर्वाधिक महत्वपूर्ण काम स्वहित में किया। 

अपने पुत्र संजय गांधी को मारुति कारखाने का उपहार दे दिया।

जब मारुति कारखाने की स्थापना का योजना आयोग ने विरोध किया तो उसका पुनर्गठन कर दिया गया।

इंदिरा सरकार ने जब 14 निजी बैकों का राष्ट्रीयकरण किया और पूर्व राजाओं के प्रिवी पर्स समाप्त किए तो जनता को लगा कि वह गरीबी हटाना चाहती हैं और पूंजीपतियों का असर कम करना चाहती हैं।पर हुआ इसके उलट।ं

  जब देश में घोटालों की झड़ी लग गई तो जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आंदोलन शुरू हो गया।

(जेपी ने जब भ्रष्टाचार का आरोप लगाया तो प्रधान मंत्री ने जेपी की ओर संकेत करते हुए कहा कि ‘‘जो लोग पैसे वालों से मदद लेते हैं ,वे कैसे भ्रष्टाचार के बारे में बोलने का साहस करते हैं ?’’)

 ऐसे माहौल में इंदिरा गांधी ने कहा था कि भ्रष्टाचार सिर्फ भारत में ही नहीं है ।

यह तो विश्वव्यापी परिघटना है।

इसके जवाब में जयप्रकाश नारायण ने कहा था कि ‘‘इंदिरा जी,आप सरीखे निचले स्तर तक मैं नहीं जा सकता।’’

(जेपी ने यह भी कहा कि अपने ‘‘टू द डिट्रैक्टर’’ (एवरीमेन्स-13 अक्तूबर, 1973)नामक लेख में मैंने साफ-साफ लिख डाला है कि मैंने इन पिछले वर्षों में अपना कैसे निर्वाह किया।’’)

  सन 1984 में राजीव गांधी ने प्रधान मंत्री बनते ही ‘‘सत्ता के दलालों’’ के खिलाफ अभियान चलाने की घोषणा कर दी।

अंततः उनका झांसा ही साबित हुआ।बाद में वह खुद दलालों से घिर गये।

  राजीव गांधी ने यह भी कहा था कि केंद्र सरकार 100 पैसे भेजती है,पर उसमें से सिर्फ 15 पैसे ही गांवों तक पहुंच पाते हैं। वह जब कांग्रेस महा मंत्री थे तो उन्होंने इंदिरा गांधी से कह कर  तीन विवादास्पद कांग्रेसी मुख्य मंत्रियों को हटवा दिया था।

यह सब उन्होंने जनता में अपनी छवि बेहतर बनाने के लिए किया।बेहतर छवि बनी भी,पर,वह जब बोफोर्स घोटाले में फंस गये तो बचाव की मुद्रा में आ गए।

 1989 के आम चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका।उसके बाद अब तक कभी कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला।

 राहुल गांधी अब उसी तरह केे राजनीतिक हथकंडे का इस्तेमाल करना चाहते हैं।वस्तुतः वह दलितों-पिछड़ों को  झांसा दे रहे हैं।

वह भी अंततः विफल ही होंगे।

गत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने खटाखट नकदी देने के लिए मतदातओं से जो फार्म भरवाया था,उस झांसे को लोग अभी भूले नहीं हैं।

-----------------

आज के दैनिक जागरण और नईदुनिया में एक साथ प्रकाशित

----------

(इस लेख में कोष्टक में लिखे गये वाक्य अखबारों में नहीं छपे हैं।)