इसलिए नहीं शामिल होता लाइव टी.वी.शो में
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सुरेंद्र किशोर
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कई साल पहले की बात है।
बहुत आग्रह करने पर मैं एक स्थानीय चैनल के लाइव डिबेट शो में शामिल हुआ था।
चर्चा के दौरान एक अशिष्ट नेता ने मेरे खिलाफ ऐसी टिप्पणी कर दी कि मैं चुप रह गया।
क्योंकि उसके स्तर पर मैं नहीं उतर सकता था।
उसके बाद ही मैंने निश्चय कर लिया कि कभी लाइव डिबेट शो में नहीं शामिल होऊंगा।
क्योंकि मेरे परिजन-रिश्तेदार नहीं चाहेंगे कि कोई गुंडा मेरा अकारण सार्वजनिक रूप से अपमान करे।वैसे भी किसी शो में शामिल होने का मेरे पास समय भी नहीं होता,शामिल होने का कोई प्रयोजन भी नहीं है।
मैं अपने किसी-न किसी पसंद के काम लगा रहता हूं।उससे फुर्सत भी नहीं है।
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आजकल तो अधिकतर राष्ट्रीय चैनलों पर भी बहस का स्तर काफी नीचे गिर चुका है।
कभी -कभी तो यह तय करना कठिन हो जाता है कि संसद में बहस का स्तर अधिक नीचे है या
कुछ (सबका नहीं )टी.वी.चैनलों का !
देश की कई प्रतिष्ठित हस्तियां भी सच बात बोलने के कारण अक्सर चैनलों पर अपमानित होती रहती हैं।
मुझे उन पर दया आती है।उनके बाल-बच्चों को चाहिए कि वे उन्हें शो में जाने से मना करें।
यह चैनलों और उनके एंकरों की विफलता है कि वे आदतन बिगड़ैल ‘‘अतिथियों’’ को
अनुशासित नहीं कर पाते, न ही उनके फेडर डाउन करते हैं।
लगता है कि जानबूझ कर वे कुत्ता-भुकाओ कार्यक्रम चलाकर खुश होते हैं।
एक साथ तीन से अधिक लोगों को बैठाओगे तो कोई सार्थक बहस हो ही नहीं सकती।क्योंकि कम ही लोग अपनी बारी का इंतजार करते हैं।
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और अंत में
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एक तरफ भारतीय रेल, हाई स्पीड ट्रेन और बुलेट ट्रेन पर जोर दे रहा है।दूसरी ओर, अधिकतर टी.वी.चैनलों के समाचार वाचकों और वाचिकाओं ने वाचन की गति काफी बढ़ा दी है।
गति ऐसी है कि कई बार उनका एक शब्द अगले शब्द पर चढ़ता जाता है और श्रोताओं को अंततः कुछ समझ में नहीं आता।
आप थोड़े समय में 100 समाचार पढ़ते हो।उनमें से 25 समाचारों का ओर-छोर समझ में नहीं आता।
75 ही पढ़ो।
इतमिनान से पढ़ो ताकि सारे समाचार लोगों की समझ में आ जाये।टी.वी.चैनलों की लोकतंत्र में बहुत बड़ी भूमिका है।लोगबाग उम्मीद भरी नजरों से उस ओर देखते हैं।
इसके स्तर को और उठाइए,गिराइए मत।
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11 सितंबर 24
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