रविवार, 29 सितंबर 2024

 भारत की ‘डायनेस्टिक डेमोक्रेसी’ के ‘राजाओं’ की 

संख्या एक बार फिर 565 तक कब पहुंचेगी ?!

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सुरेंद्र किशोर

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तमिलनाडु के मुख्य मंत्री एम.के.स्टालिन के पुत्र और पूर्व मुख्य मंत्री दिवंगत एम.करुणानिधि के पौत्र उदयनिधि स्टालिन को उप मुख्य मंत्री का दर्जा मिल गया है।

 इस तरह यह देश धीरे -धीरे ‘‘डायनेस्टिक डेमोक्रेसी’’ में बदल रहा है। भारतीय लोकतंत्र के नये राजाओं की कुल संख्या 565 तक कब तक पहुंच जाएगी ?

आजादी से पहले तक हमारे यहां 565 राजा-महाराजा थे।

 हां, उदयानिधि की पदोन्नति के साथ हम उस दिशा में एक कदम और आगे जरूर बढ़ गये हैं।

   दक्षिण भारत के ही एक अन्य मुख्य मंत्री ने कुछ साल पहले सार्वजनिक रूप से यह कहा था कि अपना मुख्य मंत्री पद मैं अपने पुत्र को उसके अगले जन्म दिन पर उपहार में दे दूंगा।पर,उनके पुत्र का दुर्भाग्य रहा कि बीच में वे चुनाव हार कर सत्ता में अलग हो गये हैं।

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राजनीति में वंशवाद की शुरुआत कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष  मोतीलाल नेहरू ने सन 1928-29 में ही कर दी थी।प्रारंभिक झिझक के बाद महात्मा गांधी ने उन्हें इस काम में ठोस मदद की थी।

कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय के लिए इलाहाबाद में अपना बड़ा मकान दे देने वाले मोतीलाल जी ने गांधी जी पर दबाव डाला और दबाव काम कर गया।

  क्योंकि उन दिनों कांग्रेस को अपना मकान दे देने का खतरा उठाने वाले कितने थे ?

दरअसल वे मोतीलाल जी जैसे दूरदर्शी भी नहीं थे।

 मोतीलाल जी ने जवाहरलाल नेहरू को सन 1929 में कांग्रेस अध्यक्ष बनवा दिया।खुद मोतीलाल जी 1928 में कांग्रेस अध्यक्ष थे।

उन्होंने अपने पुत्र को अध्यक्ष बनवाने के लिए उससे पहले  गांधी जी को लगातार तीन चिट््््््ठयां लिखीं(देखिए मोतीलाल पेपर्स)।दो चिट्ठियों पर तो गांधी जी ने साफ-साफ जवाब दे दिया कि अभी समय नहीं आया है कि जवाहर को अध्यक्ष बनाया जाये।पर, वे तीसरी चिट्ठी के दबाव में गांधी जी आ गये और जवाहरलाल को बना दिया।

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आजादी के बाद और समय के साथ वंशवाद -परिवारवाद ने विकराल रूप धारण कर लिया है।अब तो इस बुराई ने महामारी का स्वरूप ग्रहण कर लिया है।

इस देश में कुछ सौ राजनीतिक परिवार हैं जिनके बाल-बच्चे सांसद विधायक,मंत्री, मुख्य मंत्री, प्रधान मंत्री बनते जा रहे हैं।

कोई किसी खास परिवार से हो तो यह कोई अयोग्यता नहीं है।पर,वह गरीब देश की जनता के लिए काम ईमानदारी से करे तो पद जरूर पाये।

पर, 100 सरकारी पैसों को घिसकर 15 पैसे कर दे फिर भी उस परिवार को सत्ता मिलती रहे ?!!

आज कितने वंशवादी-परिवारवादी नेता हैं जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप में मुकदमे नहीं चल रहे हैं ?

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इस देश की राजनीति पर यानी पूरब,पश्चिम,उत्तर और दक्षिण व मध्य क्षेत्रों पर नजर दौड़ाइए।

  आप आसानी से गिन सकते हैं कि कितने अधिक परिवार राजनीति पर हावी है।यूं कहें कि राजनीति कितने परिवारों के कब्जे में है।

अत्यंत थोड़े से अपवादों को छोड़कर वंशवाद-परिवारवाद के साथ कुछ अन्य बुराइयां भी अनिवार्य रूप से चलती रहती हैं--जैसे जातिवाद,

भ्रष्टाचारवाद,

तुष्टिकरण 

और अपराधवाद।

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  भाजपा भी कहती है कि वह किसी एक राजनीतिक परिवार से एक ही सदस्य को टिकट देती है।

उससे अधिक हम नहीं देंगे।

दूसरी ओर, सपा जैसी पार्टी में सुप्रीमो के कितने परिजन

को चुनावी टिकट मिलेंगे,उसकी कोई सीमा नहीं।

  कुछ लोग यह तर्क देते हंै कि यदि किसी खास परिवार को लोग वोट देते हैं तभी तो वह सत्ता में आता है।

दरअसल जनता भी क्या करे ?

पार्टी सिस्टम भी ऐसा हो चुका है कि वह किसी न किसी परिवार व जाति के कब्जे में है।

मजबूर है।

  एक परिवार,एक टिकट की भाजपा नीति पर गौर करें तो पता चलेगा कि लोस-विस की कुछ खास सीटें पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही परिवार के कब्जे में होगी,यदि भाजपा अपनी एकल नीति पर कायम रही तो।

    फिर उन खास क्षेत्रों के ईमानदार पार्टी कार्यकर्ता क्या करेंगे ?

 जीवन भर भूंजा फांकेंगे ?

झाल बजाएंगे ?

दूसरी ओर कुछ लोग वंशवाद-परिवारवाद  के आधार पर सांसद-विधायक बनेंगे और उनके कार्यकर्ता बनेंगे--एम.पी.-विधायक फंड के ठेकेदार ?

अच्छी मंशा वाले कार्यकर्तागण पद पाकर समाज के व्यापक हित में जो कुछ करना चाहते हैं,वे जनहित के काम कैसे करेंगे ?

उनका सशक्तीकरण कैसे होगा ?

यह कैसा लोकतंत्र है ?

लोकतंत्र के नाम पर वंश तंत्र ? 

यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि किसी राजनीतिक परिवार का सदस्य अच्छी मंशा वाला हो ही नहीं सकता।पर एक परिवार के सदस्य को ही टिकट दे ही देना है तो वह अच्छी मंशा का ही हो,यह जरूरी तो नहीं।वह तो नहीं देखा जाएगा ! 

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भारत में विकसित हो रही  इस तरह की डायनेस्टिक डेमोके्रसी में नये राजाओं की संख्या 565 तक पहुंचने में कितने साल लगेंगे ?

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क्या ब्रिटेन के पूर्व प्रधान मंत्री विंस्टन चर्चिल भारत की आजादी के समय हमारे बारे में गलत भविष्यवाणी की थी ?

लगता तो नहीं है।वह हमारी आजादी के खिलाफ था।

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29 सितंबर 24



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