रविवार, 15 सितंबर 2024

 कल तो एसएसपी को जाम के कारण पैदल 

चलना पड़ा।कल बारी  डी जी पी की आ सकती है 

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सुरेंद्र किशोर

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आज के अखबार की ताजा खबर

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पटना जिले के

दानापुर थाने का निरीक्षण करने गये एस.एस.पी. जाम में फंसे,पैदल पहुंचे।

थानाध्यक्ष को लगाई फटकार,

यातायात एस.पी.को दिये निदेश

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एक पिछली खबर

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कुछ ही साल हुए । 

पटना हाईकोर्ट के एक जज ने कोर्ट में हाजिर थानेदार से पूछा--

सड़कों पर अतिक्रमण करवा कर रोज कितना कमा लेते हो ?

यह खबर भी अखबारों में छपी थी।

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जानकार बताते हैं कि उपर्युक्त दोनों खबरों के बीच सीधा रिश्ता है।

क्या जज महोदय भी यह नहीं जानते हैं कि जाम के पीछे  कौन -कौन से तत्व हंै ?

 फिर वे सुओ मोटो यानी स्वतः संज्ञान लेकर सख्त कार्रवाई क्यों नहीं करते ?

एस एस पी साहेब ने भी जाम के लिए थानेदार को ही फटकारा।

यानी, कारण मुख्यतः थानेदार है।

पर,क्या सिर्फ थानेदार ही जिम्मेदार है ?

दरअसल लगता है कि जनता,खास कर एम्बुलेंस सवार मरीजों के साथ रोज-रोज इतना बड़ा अनर्थ-अन्याय करते रहने की ताकत कहीं और से थानदारों को मिलती है।

अपार जन-पीड़ा प्रदान करके की भी सजा से बच जाने की ताकत सिर्फ थोनदार की अपनी नहीं हो सकती।इस पाप में हिस्सेदार बड़े -बड़े लोग भी हो सकते हैं। 

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यदि कर्तव्यनिष्ठ हैं तो पैदल चलने को मजबूर हुए एस.एस.पी.साहब को अब यह देखना है कि उनकी कोई अगली यात्रा भी पैदल यात्रा ही न बन जाये !

यह भी देखना है कि जाम पर रोक नहीं लगी तो अगले दिन डा.जी.पी.साहब को भी कहीं पैदल चलने को मजबूर होना पड़ सकता है।

 आम जनता का हाल जानिए।मैं जरूरी काम रहते हुए भी पटना मुख्य नगर में नहीं जाता क्योंकि मुझे आशंका रहती है कि कहीं मैं घंटों 

जाम में न फंस जाऊं !

यदि किसी व्यक्ति को लगातार दो-तीन घंटे जाम में फंस कर पेशाब रोकना पड़ जाये तो उसकी किडनी पर उसका खराब असर पड़ सकता है।मुझे अपनी किडनी बचाये रखनी है।

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इस बात पर शीर्ष सत्तासीनों को भी विचार करना चाहिए,कि पहले के कुछ पुलिस अफसर किस तरह अपनी ड्यूटी ठीक ढंग से कर पाते थे ?

 डी.एन.गौतम और किशोर कुणाल जैसे एस.पी. जब जिलों में हुआ करते थे तो सड़क जाम कौन कहे, अपराधी भी जिला छोड़ देते थे।

कभी पटना में कार्यरत दुबले -पतले बड़े ट्राफिक अफसर बनवारी सिंह की कार्य दक्षता याद आती है।जाम स्थल पर तुरंत पहुंच जाते थे।

आज ऐसा क्यों नहीं होता ?

क्या इस बीच एस.पी.या ट्राफिक एस पी की ताकत कम कर दी गयी है ?

बिल्कुल नहीं।

फिर सड़कों पर अराजकता के क्या कारण हैं ?

यह लाइलाज बीमारी क्यों बन चुकी है ?

क्या शीर्ष राजनीतिक कार्यपालिका के लोग अफसरों को 

जाम हटाने से रोकते हंै ?

या पैसे के लिए जाम लगवाने वालों को वैसा करते रहने के लिए बढ़ावा देते हैं ?

या, आज के एस.पी.गण, ‘‘गौतम-कुणाल कार्य कौशल’’ से 

अनभिज्ञ हैं ?

यदि अनभिज्ञ हैं तो वे दोनों

पटना में ही रहते हैं।जाकर पूछ लीजिए।

(मैं यहां यह क्यों कहूं कि थानेदारों को अपने वरीय अधिकारियों की ‘‘गैर प्रशासनिक जरूरतें’’ पूरी करनी 

पड़ती हंै ?उसके लिए जाम लगवा कर पैसे जुटाने पड़ते हैं ?) 

पर,एक बात जरूर कहूंगा।

अस्सी के दशक में भागवत झा आजाद जैसे दबंग मुख्य मंत्री ने कहा था कि बिहार में मेरा राज नहीं, बल्कि दारोगा राज है।

यानी सुधारने की कोशिश में वे विफल रहे थे।

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आए दिन प्रमंडलीय आयुक्त, पटना की सड़कों से अतिक्रमण हटाने के लिए सड़कों पर उतरते हैं।

पर,हर बार वे फेल होते हैं।

उनकी स्थिति हास्यास्पद हो जाती है और आम जनता की हालत पीड़ाजनक।

क्या हम सड़क जाम से पीड़ा झेलने के लिए ही पैदा हुए हैं।

कोई भी देख सकता है कि आम लोग जिस जगह जाम से कराह रहे होते हैं,उसके ठीक बगल में एक ट्राफिक पुलिसकर्मी  आराम से खैनी मल रहा होता है । दूसरा जाम लगाने के लिए उन लोगों से शुकराना वसूल रहा होता जिनके कारण जाम लगती है।

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15 सितंबर 24


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