लतीफ बनाम सोहराबुद्दीन
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राजनीति सदा करती रही
है मुंठभेड़, मुंठभेड़ में फर्क !
यानी, सेक्युलर मुंठभेड़ बनाम
कम्युनल मुंठभेड़ ।
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सुरेंद्र किशोर
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सन 1995 में आतंक विरोधी दस्ते ने गुजरात के खूंखार माफिया लतीफ को दिल्ली से गिरफ्तार किया। गुजरात पुलिस ने सन 1997 में लतीफ को मुंठभेड़ में मार
दिया।
आरोप लगा कि मुंठभेड़ नकली थी।
यह भी कहा गया कि उसे हिरासत से निकाल कर मारा गया था।
पर, गुजरात की कांग्रेस समर्थित राजपा सरकार ने तब उन पुलिस अफसरों को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया जिन्होंने लतीफ को मारा था।
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सोहराबुद्दीन शेख पहले लतीफ का ड्रायवर था।लतीफ गुजरात में वही काम करता था जो काम महाराष्ट्र में दाऊद इब्राहिम करता था।
पहले लतीफ दाउद का सहयोगी ही था।बाद में दोनों के बीच झगड़ा हो गया।
एक बार तो गुजरात में जब दाऊद गैंग और लतीफ गंैग
में मुंठभेड़ हुई तो लतीफ गैंग ने दाऊद गैंग को हराकर भगा दिया था।
लतीफ की मौत के बाद सोहराबुददीन वही काम करने लगा था जो काम पहले लतीफ करता था।गुजरात सहित तीन राज्यों के बड़े व्यापारी रोहराबुद्दीन से परेशान थे।
सोहराबुद्दीन के खिलाफ 50 आपराधिक मुकदमे लंबित थे।
नरेंद्र मोदी के मुख्य मंत्रित्वकाल में सोहराबुदद्दीन सन 2005 में गुजरात पुलिस के साथ मुंठभेड़ मेें मारा गया।
तब अमित शाह गुजरात के गृह राज्य मंत्री थे।इसे नकली मुंठभेड़ बताकर अमित शाह पर केस कर दिया गया।
उन्हें जेल भिजवा दिया गया।
सन 2014 में अमित शह कोर्ट से दोषमुक्त हो गये।
याद रहे कि आरोप लगा कि सन 2000 से 2017 तक इस देश में नकली मुंठभेड़ के 1782 मामले सामने आये।सारे मामले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पास गये थे।पर,उनमें से सोहराबुद्दीन के मामले को लेकर किसी बड़े नेता को जेल भिजवाया गया।
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सवाल कम्युनल मुंठभेड़ का जो था।
उस केस को आगे बढ़ाने से वोट मिलने वाले थे।
आज भी इस देश में यही सब हो रहा है।
कम्युनल मुंठभेड़ और सेक्युलर मुंठभेड़ के बीच रस्साकसी चल रही है।
आज तो यह भी देखा जा रहा है कि पुलिस के साथ मुंठभेड़ में अगड़ी जाति के अपराधी मारे जा
रहे हैं या पिछड़ी जाति के अपराधी।
हां,जब खूंखार अपराधी पुलिस मुंठभेड़ के दौरान पुलिसकर्मियों की जान लेते हैं तो नेतागण आम तौर पर मृतक पुलिसकर्मियों की जाति नहीं पूछते।
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24 सितंबर 24
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