कारगिल युद्ध में यदि इजरायल ने हमारी मदद
न की होती तो पता नहीं क्या होता !
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फिर भी इस देश की कुछ शक्तियां यह चाहती हैं
कि भारत सरकार, इजरायल से दोस्ती न निभाए
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सुरेंद्र किशोर
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कारगिल युद्ध की कठिन घड़ी में भारतीय सेना को
उपग्रह निगरानी तंत्र की सख्त जरूरत थी।रात्रि दर्शी उपकरण चाहिए था।
हमें उन दुर्गम पहाड़ियों पर बारूद रोधी वाहन और मानव रहित विमान चाहिए था।
फ्रिक्वेंसी हाॅपर और युद्ध क्षेत्रीय रडार
आदि चाहिए थे।
इनमें से कई जरूरी साज ओ सामान हमें तब इजरायल ने ही मुहैया कराए थे।
कहावत है--फें्रड इन नीड, इज फं्रेड इनडीड।
(फरवरी, 23 में तुर्की में भीषण भूकम्प आया।भारी तबाही हुई।भारत सरकार ने तुर्की की भारी तदद की।पर एक ही माह बाद तुर्की सरकार कश्मीर के सवाल पर भारत के विरूद्ध पाकिस्तान के पक्ष में खड़ी हो गयी।)
कई देशों ने कारगिल युद्ध के समय भारत को ऐसी युद्ध सामग्री देने से इजरायल को रोकने तक की भी कोशिश की थी।याद रहे कि किसी अन्य देश ने मांगने पर भी तब हमारी जरूरी मदद नहीं की थी।
पर इजरायल उन देशों के विरोध को दरकिनार करके हमें जरूरी सामान भेजे जिससे हम तब युद्ध जीत सके थे।
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पर, आज जब इजरायल को भारत से युद्ध सामग्री की सख्त जरूरत है तो स्वाभाविक ही है कि यह देश उसकी आपूर्ति करे।
पर,इस निर्यात को रोकने के लिए चर्चित वकील प्रशांत भूषण हाल में सुप्रीम कोर्ट चले गये।
यह अच्छी बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने कल उस वकील को भारतीय संविधान का अनुच्छेद-253 दिखा दिया।
कहा कि अंतरराष्ट्रीय संधियों को लेकर सरकार का ही क्षेत्राधिकार है।इसमें कोर्ट कुछ नहीं कर सकता।
आपकी याचिका विचार योग्य नहीं है।
याद रहे कि 12 साल पहले प्रशांत भूषण ने कहा था कि कश्मीर में जनमत संग्रह होना चाहिए।उस बयान से गुस्साए कुछ युवकों ने उनके चेम्बर में घुसकर प्रशांत भूषण की पिटाई की थी।
पिटाई करके अच्छा नहीं किया था।बल्कि ऐसे लोगों को बोलने देना चाहिए जो कुछ वे बोलना चाहते हें।
क्योंकि उससे यह पता चल जाता है कि देश में सक्रिय कुछ खास तरह की शक्तियां क्या चाहती हैं।
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दुनिया के अन्य सारे देश अपने मित्रों का चयन सदैव सोच-समझकर और अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर ही करते हैं।पर भारत में आजादी के बाद ही कुछ खास तरह के लोगों ने नेहरू सरकार को सलाह दी थी कि अमेरिका नहीं बल्कि सोवियत संघ से दोस्ती कीजिए।हालांकि ऐसा कोई बंधन नहीं होना चाहिए था।सब से अलग -अलग देशहित में दोस्ती करने की कोशिश की जानी चाहिए थी।
वैसी सलाह का खामियाजा सन 1962 में इस देश को भुगतना पड़ा।सोवियत संघ से पूर्वानुमति लेकर चीन ने भारत पर चढ़ाई करके हमारी हजारों वर्ग मील जमीन पर कब्जा कर लिया।अंततः नेहरू ने अमेरिका को कुछ ही घंटों के भीतर बारी- बारी से तीन त्राहिमाम संदेश भेजे । जब चीन को लगा कि अमेरिका हस्तक्षेप कर देगा तो चीन पीछे हट गया।
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आज भी प्रशांत भूषण सदृश्य लोग व शक्तियां चाहती हंै कि
जब पाक -चीन-कुछ भीतरी तत्व -अब तो बांग्ला देश से भी गंभीर खतरा पैदा हो तो इजरायल जैसे मित्र हमारे काम न आ पायें।
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10 सितंबर 14
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