शुक्रवार, 20 सितंबर 2024

   एक खुशखबरी

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सुरेंद्र किशोर

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मैं हर छह माह-साल भर पर अपना विस्तृत पैथोलाॅजिकल टेस्ट करवाता रहता हूं।

  ताजा टेस्ट 18 सितंबर 2024 को करवाया।

पिछली बार 4 अप्रैल 24 को करवाया था।

 दोनों बार अलग-अलग लेबोरेटरी से।

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गत बार की रपट मैंने अपने एक पड़ोसी डाक्टर (जो रिटायर सिविल सर्जन हैं) को दिखाई थी।उन्होंने कहा कि कोई गडब़ड़ी नहीं है।

इस बार की रिपोर्ट मैंने पोता की उम्र के एक रिश्तेदार डाक्टर को दिखवाई।

उसने संदेश भेेजा, ‘‘दादाजी की रिपोर्ट मेरी रिपोर्ट से भी 

अच्छी है।कोई चिन्ता नहीं।कोई दवा नहीं।’’

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अब पूछिएगा कि ऐसा कैसे होता है ?

सिर्फ पुरानी पीढ़ी के लोगों की कुछ बातें याद करें--

आहार-विहार ठीक रखो।

कम खाना, गम खाना।

अरली टू बेड एंड अरली टू राइज।

शाकाहारी बनो।

आदि आदि 

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सन 1966 से 1977 तक राजीतिक कार्यकर्ता के रूप में मैंनेे अपने शरीर के साथ बहुत ‘अत्याचार’ किया--समाजवाद लाने की भोली आशा में।

  न खाने का ठीक, न सोने का ठिकाना।

पाॅकिट मैं पैसे नहीं।चंदा दाताओं की भारी कमी। 

1977 से सामान्य जीवन शुरू हुआ।

शरीर का ‘रिपेयर’ शुरू किया।

और एकाग्र निष्ठा से पत्रकारिता प्रारंभ की।

न बायें देखा,न दायें ! 

सन 1983 के बाद बिछावन पर मेरे चले जाने का समय रहा 9 बजे रात।

पत्रकारिता में ऊंचे पद पर जाने पर रातजगा करना पड़ता है।

 रातजगा से बचने के लिए मैंने हमेशा बड़ा पद ठुकराया।

चूंकि मेरा काम ठीक ठाक था ,इसलिए इस क्षेत्र के सिरमौर रहे ब्राह्मणों (वे इसके हकदार भी हैं)ने मुझे सदा ‘और आगे’ 

(स्वजातीय के दावे को दरकिनार करके भी)

बढ़ाने की कोशिश की।

 (जनसत्ता का बिहार संवाददाता था तो संपादक प्रभाष जोशी ने डेस्क को कह रखा था कि 9 बजे रात के बाद सरेंद्र को फोन नहीं करना है,चाहे बिहार से जैसी भी बड़ी खबर आ रही हो !)

  कुछ लोग अपनी विफलता का ठीकरा जातपात पर फोड़ते हैं।होगा जातपात।

मैं इनकार नहीं करता।

  पर,मेरा अनुभव अलग रहा।

इसलिए मानसिक शांति भी रही।उसका सकारात्मक असर शरीर पर भी पड़ता है।

  देखिए, ईश्वर और कितने दिनों तक मेरा दाना-पानी इस धरती के लिए तय किया है !

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  20 सितंबर 24


 

  


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