कितना कारगर होगा जाति गणना का दांव
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राहुल गांधी जाति गणना कराकर आरक्षण बढ़ाने को जो वादा कर रहे हैं,वह एक झांसा ही अधिक है और झांसा देना कांग्रेस की आदत है।
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सुरेंद्र किशोर
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कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी का कहना है कि हम जातीय गणना अवश्य कराएंगे और उससे मिले आंकड़ों के आधार पर जिस जातीय समूह को जितने अधिक आरक्षण की जरूरत होगी, उसें उतना आरक्षण देंगे।
वह कहते हैं कि सर्वोच्च अदालत ने 50 प्रतिशत आरक्षण की जो अधिकत्तम सीमा तय कर रखी है,उसे सत्ता में आने के बाद हम समाप्त कर देंगे।
यदि राहुल की पार्टी सत्ता में आ भी गई तो क्या वह यह काम कभी कर पाएगी ?
संभव तो नहीं लगता,
क्योंकि यहां अधिकार संपन्न सुप्रीम कोर्ट भी मौजूद है, जो किसी भी ऐसे निर्णय की समीक्षा ‘‘संविधान की मूल संरचना’’के तय सिद्धांत की परिधि में रहकर करता है।
इसके बावजूद राहुल गांधी लोगों से कह रहे हैं कि हम आपके लिए चांद तोड़कर ला देंगे।यानी वह लोगों को झांसा देकर उनके वोट लेना चाहते हैं।
ऐसा ही झांसा सन 1969 में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने भी दिया था जो जाहिर है कि झूठा साबित हुआ।
उन्होंने कहा था कि हम गरीबी हटा देंगे।वह यह कहतीं कि गरीबी कम कर देंगे तो वह सही हो सकता था।पर, उससे लोग उनके झांसे में नहीं आते।
झांसा देना कांग्रेस के लिए कोई नई बात नहीं है।
आजादी के तत्काल बाद के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था,‘‘कालाबाजारियों को निकत्तम लैम्पपोस्ट पर फांसी दे दी जानी चाहिए।’’
उनके इस उद्गार का जनता पर सकारात्मक असर पड़ा।लोगों में उम्मीद जगी कि अब भ्रष्टाचार से राहत मिलेगी।
पर उसके बाद हुआ क्या ?
आजादी के तत्काल बाद जब पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठ
की तो भारतीय सेना को जीपों की भारी कमी महसूस हुई।
सरकार ने तय किया कि ब्रिटेन से तत्काल दो हजार जीपें खरीदी जाएं।
प्रधान मंत्री कार्यालय ने ब्रिटेन में उच्चायुक्त वी.के.कृष्ण मेनन को महत्वपूर्ण तत्संबंधी संदेश भेजा।
बाद में पता चला कि ब्रिटेन की किस कंपनी से जीपें खरीदी जाएं उसके बारे में संकेत भी प्रधान मंत्री कार्यालय ने मेनन को दे दिया था।
उस कंपनी की कोई साख नहीं थी।
मेनन ने प्रशासनिक प्रक्रियाओं का पालन किए बिना उस कंपनी को एक लाख 72 हजार पाउंड का अग्रिम भुगतान भी कर दिया।
कंपनी ने दो हजार में से सिर्फ 155 जीपें भारत भेजीं।
वे भी इस्तेमाल लायक ही नहीं थीं।
उन्हें बंदरगाह से चलाकर गैरेज तक भी नहीं ले जाया जा सकता था।
उस पर संसद में भारी हंगामा हुआ।
यह बात भी सामने आई कि पैसे का भुगतान खुद कृष्ण मेनन ने कर दिया था जबकि यह काम उनका नहीं था।
अनंत शयनम अयंगार की अध्यक्षता जांच कमेटी बनी।
कमेटी ने अपनी रपट में कहा कि जीप खरीद की प्रक्रिया गलत थी।इसकी न्यायिक जांच होनी चाहिए।
पर,नेहरू सरकार ने न्यायिक जांच नहीं कराई।
जब फिर यह मामला संसद में उठा तो 30 सिंतबर, 1955 को तत्कालीन गृहमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत ने कहा कि हमारी सरकार ने इस केस को बंद करने निर्णय किया है।यदि इस निर्णय से प्रतिपक्ष संतुष्ट नहीं तो वह अगले आम चुनाव में इसे मुद्दा बनाकर देख ले।
यह बात एक ऐसी सरकार कह रही थी जिसके मुखिया नेहरू ने जनता से वायदा किया था कि गलत करने वालों को नजदीक के लैम्प पोस्ट पर फांसी से लटका दिया जाना चाहिए।यानी उनका वायदा झांसा साबित हुआ।
नेहरू के शासन काल में अन्य घोटाले भी हुए।
तत्कालीन केंद्रीय मंत्री सी.डी.देशमुख ने नेहरू को सलाह दी कि भ्रष्टाचार पर निगरानी के लिए एक संगठन बनना चाहिए।इस पर नेहरू ने कहा कि इससे प्रशासन में पस्तहिम्मती आएगी।
नतीजतन तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष डी.संजीवैया को यह कहना पड़ा कि ‘‘वे कांग्रेसी जो 1947 में भिखारी थे, वे आज करोड़पति बन बैठे हैं।झोपड़ियों का स्थान शाही महलों ने और कैदखानों का स्थान कारखानों ने ले लिया है।’’(इन्दौर का भाषण )
वर्ष 1971 के बाद तो सरकारी लूट की गति और तेज हो गई।
इंदिरा गांधी की सरकार 1969 में उस समय अल्पमत में आ गई, जब कांग्रेस में विभाजन हो गया।
कम्युनिस्टों,डी.एम.के आदि की बैसाखी के सहारे उनकी सरकार किसी तरह घिसट रही थी।
ऐसे मौके पर ही इंदिरा गांधी ने आम गरीबों को झांसा देने के लिए ‘‘गरीबी हटाओ’’ का नारा दिया।
लोग उनके झांसे में आ गये और 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेसं को लोक सभा में पूर्ण बहुमत मिल गया।
इस जीत के बाद वह गरीबी हटाने का वायदा भूल गईं।उन्होंने पहला सर्वाधिक महत्वपूर्ण काम स्वहित में किया।
अपने पुत्र संजय गांधी को मारुति कारखाने का उपहार दे दिया।
जब मारुति कारखाने की स्थापना का योजना आयोग ने विरोध किया तो उसका पुनर्गठन कर दिया गया।
इंदिरा सरकार ने जब 14 निजी बैकों का राष्ट्रीयकरण किया और पूर्व राजाओं के प्रिवी पर्स समाप्त किए तो जनता को लगा कि वह गरीबी हटाना चाहती हैं और पूंजीपतियों का असर कम करना चाहती हैं।पर हुआ इसके उलट।ं
जब देश में घोटालों की झड़ी लग गई तो जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आंदोलन शुरू हो गया।
(जेपी ने जब भ्रष्टाचार का आरोप लगाया तो प्रधान मंत्री ने जेपी की ओर संकेत करते हुए कहा कि ‘‘जो लोग पैसे वालों से मदद लेते हैं ,वे कैसे भ्रष्टाचार के बारे में बोलने का साहस करते हैं ?’’)
ऐसे माहौल में इंदिरा गांधी ने कहा था कि भ्रष्टाचार सिर्फ भारत में ही नहीं है ।
यह तो विश्वव्यापी परिघटना है।
इसके जवाब में जयप्रकाश नारायण ने कहा था कि ‘‘इंदिरा जी,आप सरीखे निचले स्तर तक मैं नहीं जा सकता।’’
(जेपी ने यह भी कहा कि अपने ‘‘टू द डिट्रैक्टर’’ (एवरीमेन्स-13 अक्तूबर, 1973)नामक लेख में मैंने साफ-साफ लिख डाला है कि मैंने इन पिछले वर्षों में अपना कैसे निर्वाह किया।’’)
सन 1984 में राजीव गांधी ने प्रधान मंत्री बनते ही ‘‘सत्ता के दलालों’’ के खिलाफ अभियान चलाने की घोषणा कर दी।
अंततः उनका झांसा ही साबित हुआ।बाद में वह खुद दलालों से घिर गये।
राजीव गांधी ने यह भी कहा था कि केंद्र सरकार 100 पैसे भेजती है,पर उसमें से सिर्फ 15 पैसे ही गांवों तक पहुंच पाते हैं। वह जब कांग्रेस महा मंत्री थे तो उन्होंने इंदिरा गांधी से कह कर तीन विवादास्पद कांग्रेसी मुख्य मंत्रियों को हटवा दिया था।
यह सब उन्होंने जनता में अपनी छवि बेहतर बनाने के लिए किया।बेहतर छवि बनी भी,पर,वह जब बोफोर्स घोटाले में फंस गये तो बचाव की मुद्रा में आ गए।
1989 के आम चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका।उसके बाद अब तक कभी कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला।
राहुल गांधी अब उसी तरह केे राजनीतिक हथकंडे का इस्तेमाल करना चाहते हैं।वस्तुतः वह दलितों-पिछड़ों को झांसा दे रहे हैं।
वह भी अंततः विफल ही होंगे।
गत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने खटाखट नकदी देने के लिए मतदातओं से जो फार्म भरवाया था,उस झांसे को लोग अभी भूले नहीं हैं।
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आज के दैनिक जागरण और नईदुनिया में एक साथ प्रकाशित
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(इस लेख में कोष्टक में लिखे गये वाक्य अखबारों में नहीं छपे हैं।)
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