शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2025

 मेरी पत्नी  परिवार के साथ 25 दिसंबर, 24 से 20 जनवरी, 25 तक प्रयागराज में थीं।

 प्रयागराज में मेरे भतीजे की ससुराल है।रहने की सुविधा थी।स्नेहिल आदर-सत्कार मिला।

उस बीच पत्नी व अन्य ने बारी- बारी से तीन

बार संगम पर स्नान किया।

  पटना लौटकर पत्नी ने मुझे बताया कि हमने उस जल में कहीं भी वह तत्व नहीं पाया जिसकी चर्चा जया बच्चन सहित कुछ प्रतिपक्षी नेताओं ने की थी।हमने आचमन भी किया था।

तीन -तीन बार नहाने के बावजूद हम में से किसी को कोई शारीरिक परेशानी नहीं हुई।

     ---सुरेंद्र किशोर

   


गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

 जब पी.एम.ने राष्ट्रपति का फोन नहीं उठाया

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 सन 1984 में दिल्ली के सिखों को, खासकर अपने रिश्तेदारों को, सामूहिक संहार से बचाने के लिए तब के राष्ट्रपति जैल सिंह ने कई बार प्रधान मंत्री राजीव गांधी को फोन किये।पर, प्रधान मंत्री फोन पर नहीं आये।

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सुरेंद्र किशोर

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31 अक्तूबर 1984 को सिख अतिवादियों ने,जो संतरी के रूप में प्रधान मंत्री आवास पर तैनात थे,प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी।

उसकी प्रतिक्रिया में कांग्रेसी नेताओं की अगुवाई व दिल्ली पुलिस के संरक्षण में लगातार चार दिनों तक दिल्ली में सिखों को सामूहिक संहार होता रहा।

पर, सेना को पांचवें दिन ही तब सड़कों पर उतारा गया जब हत्यारों का मन भर गया।

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 1 से 4 नवंबर 1984 तक सेना को क्यों नहीं बुलाया गया ?

नेहरू- गांधी परिवार के ‘‘सेवक’’ प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने इस पर बाद में कहा था कि 1984 में सेना नहीं बुलाने 

के लिए तब के केंद्रीय गृह मंत्री पीवी नरसिंह राव को दोषी थे।

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अब पढ़िए कि सन 2018 में हत्यारों में से एक सज्जन कुमार को एक अन्य केस में सजा सुनाते हुए जज ने क्या कहा था।

सज्जन कुमार को उम्र कैद की सजा देने वाले दिल्ली हाईकोर्ट ने 17 दिसंबर, 2018 को कहा था कि 

‘‘ 1 से 4 नवंबर तक पूरी दिल्ली में 2733 सिखों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।

उनके घरों को नष्ट कर दिया गया था।

देश के बाकी हिस्सों में भी हजारों सिख मारे गए थे।

इस भयावह त्रासदी के अपराधियों के बड़े समूह को राजनीतिक संरक्षण का लाभ मिला और जांच एजेंसियों से भी उन्हें मदद मिली।’’

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तब के प्रधान मंत्री राजीव गांधी की

उक्ति आपको याद ही होगी--

‘‘जब बड़ा गिरता है तो धरती हिलती है।’’

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याद रहे कि नेहरू -गांधी परिवार की खुशामद में लगे रहने के कारण पत्रकार -लेखक खुशवंत सिंह को कई बार खुशामद सिंह भी कहा जाता था।

बात तब की है जब सिख संहार हो रहा था। बेचारे ‘‘खुशामद सिंह’’ भी अपने रिश्तेदारों को, जल्लादों से बचाने के लिए कई बार प्रधान मंत्री राजीव गांधी को फोन किया।पर राजीव गांधी उनके फोन पर भी नहीं आये।

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याद रहे कि आपातकाल में संजय गांधी के कारनामों के भी सरदार खुशवंत सिंह प्रशंसक थे।मेनका गांधी की मासिक पत्रिका ‘‘ सूर्या’’  के तो खुशवंत सिंह  सलाहकार संपादक ही थे।प्रिंटलाइन में उनका नाम भी छपता था।

पर,आप जितनी चाहे किसी नेता की खुशामद कर लीजिए।पर कोई जरूरी नहीं कि वह ऐन वक्त पर गाढ़े समय में आपके काम आएगा ही।

सरदार जी ने सूर्या के सलाहकार संपादक का पद तभी छोड़ा जब मना करने के बावजूद मेनका गांधी ने जग जीवन राम के पुत्र सुरेश कुमार के साथ सुषमा की नंगी तस्वीरें सूर्या में छाप दी थी।

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सन 1984 में कांग्रेस के राष्ट्रीय महा सचिव चंदूलाल चंद्राकर ने कहा था कि ‘‘हमने जांच करा ली है।सिख दंगे में किसी भी कांग्रेसी का हाथ नहीं है।’’

(साप्ताहिक रविवार,कलकत्ता-25 नवंबर 1984)

पर 2014 के लोक सभा चुनाव से ठीक पहले राहुल गांधी ने टी.वी.पत्रकार अर्णव गोस्वामी से बातचीत में यह स्वीकार किया कि हां,कुछ कांग्रेसियों का हाथ था।

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27 फरवरी 25

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पुनश्चः

ब्लू स्टार आॅपरेशन के तत्काल बाद प्रधान मंत्री की जान पर खतरा बढ़ गया था।

उनकी सुरक्षा में लगे योग्य व दूरदर्शी अफसर ने यह निर्णय किया कि प्रधान मंत्री के आसपास से सिख सुरक्षाकर्मियों को हटा दिया जाये।

हटाया भी गया।

जब इंदिरा जी ने यह नोटिस किया कि उनके आवास पर पहले से तैनात सिख संतरी अब नहीं हैं तो उन्होंने संबंधित

अफसर से पूछा।

जब अफसर ने कहा कि सुरक्षा कारणों से उन्हें हटाया तो प्रधान मंत्री ने आदेश दिया कि उन्हें जल्द फिर से यहां तैनात करिए।

उनकी तैनाती हुई।उन्हीं लोगों ने इंदिरा जी हत्या की कर दी।



मंगलवार, 25 फ़रवरी 2025

 यदि लोकनायक जयप्रकाश नारायण और डा.राममनोहर लोहिया आज जीवित होते तो उनका आशीर्वाद 

किसे मिलता ?

राहुल गांधी को या नरेंद्र मोदी को ?

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मैंने महात्मा गांधी का नाम जान बूझकर नहीं लिया।

 क्योंकि मैं उनके संदर्भ में इस सवाल का जवाब अच्छी 

तरह जानता हंू।

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सुरेंद्र किशोर

25 फरवरी 25 


सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

 ंएक राजनीतिक घटना जो न तो उससे 

पहले हुई थी न ही उसके बाद कभी हुई 

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सुरेंद्र किशोर

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एक ही मंत्रिमंडल में भारतीय जनसंघ और 

सी.पी.आई. के नेता गण साथ-साथ थे

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सन 1967 में बिहार में महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा की गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी।

उस मंत्रिमंडल में अन्य दलों के साथ-साथ भारतीय जनसंघ,

संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और सी.पी.आई.के नेता भी शामिल हुए थे।

सी.पी.आई.के इंद्रदीप सिन्हा और चंद्रशेखर सिंह कैबिनेट मंत्री  थे।

सी.पी.आई.के ही तेज नारायण झा राज्य मंत्री थे।

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महामाया प्रसाद सिन्हा की सरकार को कुछ लोग संविद सरकार कहते या लिखते हैं।

संविद सरकार लिखना गलत है।

संविद का पूरा होता है--संयुक्त विधायक दल।

सन 1967 में कोई भी दो विधायक दल,संयुक्त नहीं हुए थे।

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24 फरवरी 25


 आधुनिक लोकतंत्र के सुप्रीमो को चाहिए कि वे दो तरह के सलाहकार अपने आसपास रखें।

1.-‘बरुआ’ टाइप का।

2.-बिदुर टाइप का।

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पहला आपके काम के टंेशन को दूर करता रहेगा।

दूसरा आपको मृगतृष्णा में पड़कर कहीं भटकने नहीं देगा।

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फरवरी 25


शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

 आधुनिक लोकतंत्र के सुप्रीमो को चाहिए कि वे दो तरह के सलाहकार अपने आसपास रखें।

1.-‘बरुआ’ टाइप का।

2.-बिदुर टाइप का।

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पहला आपके काम के टंेशन को दूर करता रहेगा।

दूसरा आपको मृगतृष्णा में पड़कर कहीं भटकने नहीं देगा।

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 विदेशी हस्तक्षेप की राह रोकना जरूरी

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सुरेंद्र किशोर

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अपने देश में अधिकतर राजनीतिक दलों को विदेशी पैसों में तभी बुराई दिखती है,जब वह विरोधी दल को मिल रहा हो

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बीते दिनों यह कह कर चैंका दिया कि उनके पूर्ववर्ती जो बाइडन भारतीय चुनावों के दौरान देश में सत्ता परिवर्तन की जुगत में लगे थे। 

ट्रंप के बयान से भारत के राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मचा और इससे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के उन आरोपों को ही बल मिला ,जिसमें संसदीय चुनाव के बाद उन्होंने अलग -अलग मौकों पर चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप की बात कही थी।

  फिलहाल इस पर बहस जारी है कि मतदान बढ़ाने के लिए अमेरिकी सहायता भारत आई या बांग्ला देश और यदि वह भारत आई तो खर्च कैसे हुई ?

जो भी हो,टं्रप के बयान को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।

इससे पहले उनके करीबी और जाने माने उद्यमी एलन मस्क ने भी अमेरिकी संसाधनों के प्रयोग को लेकर सवाल उठाए थे।

 इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि सलमान खुर्शीद और मणि शंकर अय्यर जैसे नेताओं का बांग्ला देश में हुए तख्ता पलट के बाद यह कहना था कि इस पड़ोसी देश में जो कुछ हुआ,उसकी भारत में भी पुनरावृति हो सकती है।

यह भी किसी से छिपा नहीं कि जार्ज सोरोस और उनकी संस्थाओं की संदिग्ध भूमिकाओं की चर्चा यदाकदा सतह पर उभरती रहती है।यह पूरा परिदृश्य गहन पडत़ाल की मांग करता है।

  भारत जैसे संप्रभु देश में विदेशी हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं,लेकिन ऐसे आरोप पहली बार नहीं लगे हैं।

  पूर्व में कांग्रेस सरकारों की या तो विदेशी शक्तियों के साथ साठगांठ रही या फिर उन्होंने ऐसे आरोपों को अनदेखा करना उचित समझा।

  यह 1967 की बात है जब केंद्रीय गृह मंत्री वाई.बी.चव्हाण ने उन राजनीतिक दलों के नाम बताने से इन्कार कर दिया था,जिन्हें विदेश से पैसे मिले थे।

नतीजा यह हुआ कि बाहर-भीतर राष्ट्र विरोधी शक्तियों का मनोबल बढ़ता गया।

 चूंकि सरकार ही ऐसे मामलों को लेकर उदासीन रही,इसलिए अवैध धन के इस्तेमाल को लेकर नेताओं और दलों की झिझक समाप्त होती चली गयी।याद रहे कि 1967 के आम चुनाव में सात राज्यों में कांग्रेस हार गई थी।

 अन्य दो राज्यों में कुछ ही समय बाद कांग्रेस सरकारें दल बदल के कारण अपदस्थ हो गईं।

लोक सभा में कांग्रेस का बहुमत घट गया।

 इन घटनाओं से तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की चिंता बढ़ गई थी।

 उन्हें लगा कि विपक्षी दलों ने विदेश से मिले अवैध धन की मदद से कांग्रेस को हरा दिया।

 परिणामस्वरूप केंद्रीय खुफिया एजेंसी से मामले की जांच कराई गई।

जांच से पता चला कि कांग्रेस सहित कई दलों और नेताओं को 1967 चुनाव लड़ने के लिए विदेश से पैसे मिले थे।

  सरकार ने उस रपट को दबा दिया,लेकिन वह रपट एक अमेरिकी अखबार में छप गई।

 यदि उसी समय उक्त मामले की नीर-क्षीर ढंग से जांच कराई जाती तो राजनीति को स्वच्छ बनाने में बड़ी सहायता मिलती।मगर जांच होती कैसे ?

 लगभग हर दल के नेता इस दल -दल में धंसे हुए थे।

शीत युद्ध के समय जहां कम्युनिस्ट देश भारत में साम्यवाद फैलाने के लिए पैसे खर्च कर रहे थे ,वहीं पूंजीवादी देश साम्यवाद को रोकने के लिए।

 जिस किसी देश में नेता से लेकर बुद्धिजीवी तक बिकने को तैयार हों, वहां विदेशी शक्तियों के लिए अपने संकीर्ण हितों को साधना कहीं आसान हो जाता है।

 अपने देश में अधिकतर दलों को विदेशी पैसों में तभी बुराई दिखती है,जब वह विरोधी दल को मिल रहा हो।

यह रवैया उचित नहीं।

कुछ समय पहले भाजपा ने कांग्रेस पर आरोप लगाया था कि राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन से वित्तीय मदद मिली।

उस पर कांग्रेस ठोस तरीके से अपना पक्ष नहीं रख सकी।

 इस संदर्भ में सोवियत खुफिया एजेंसी के.जी.बी. के बारे में आपातकाल के दौरान प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की राय पर गौर किया जाए।

  आपातकाल लगाने के अगले दिन इंदिरा गांधी ने केंद्र सरकार के सचिवों के साथ बैठक की।

प्रधान मंत्री के संयुक्त सचिव बिशन टंडन के अनुसार,इंदिरा गांधी ने सचिवों से कहा ‘‘प्रतिपक्ष नाजीवाद फैला रहा है।

नाजीवाद केवल सेना एवं पुलिस के उपयोग से ही नहीं आता।

कोई छोटा समूह जब प्रचार करके जनता को गुमराह करे तो वह भी नाजीवाद का लक्षण है।

 भारत में दूसरे दलों की सरकारें भले बन जाएं ,पर मैं माक्र्सवादी कम्युनिस्टों और जनसंघ की सरकार नहीं बनने दूंगी।

 जेपी आंन्दोलन के लिए रुपया बाहर से आ रहा है।अमरीकी खुफिया एजेंसी सी आई ए यहां बहुत सक्रिय है।

के.जी.बी.का कुछ पता नहीं।

उसकी सक्रियता का कोई प्रमाण सामने नहीं आया।

प्रतिपक्ष का सारा अभियान मेरे विरुद्ध है।मेरे अतिरिक्त मुझे ऐसा कोई व्यक्ति नजर नहीं आता जो इस समय देश के सामने आई चुनौतियों का सामना कर सके।’’

   इंदिरा गांधी की यह बात कितनी निराधार थी,इसका भंडा -फोड़ के.जी.बी.से जुड़े मित्रोखिन ने किया।

 क्रिस्टोफर एंड्रूज के साथ मिलकर वासिली मित्रोखिन ने दो किताबें लिखीं।

 मित्रोखिन के अनुसार,‘‘के.जी.बी.ने कई भारतीय समाचार पत्रों ,बुिद्धजीवियों और नेताओं पर अरबो-खरबांें रुपए खर्च किये।

 मित्रोखिन के रहस्योद्घाटन का तब कांग्रेसियों और कम्युनिस्टों ने खंडन किया।

ज्योति बसु ने कहा कि ‘‘मुझे यह तो नहीं मालूम कि के.जी.बी.ने इंदिरा गांधी को धन दिया या नहीं,परंतु एक बात मैं अच्छी तरह जानता हूं कि वामपंथियों की गतिविधियों को रोकने के लिए अमेरिका ने व्यक्तिगत रूप से इंदिरा गांधी को भी धन दिया था और कांग्रेस को भी।’’

 क्या बसु की इस बात पर विश्वास करना संभव है कि कम्युनिस्ट देशों ने भारत में अघोषित ढंग से कोई खर्च नहीं किया ?

 भारत में अमेरिका के राजदूत रहे डेनियल मोयनिहान ने अपनी पुस्तक ‘ए डेंजरस प्लेस’ में लिखा कि किस तरह कम्युनिस्ट फैलाव को रोकने के लिए अमेरिका ने भारतीय नेताओं को पैसे दिए।लगता है कि अब स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि इससे निपटना देश के लिए मुश्किल हो चला है।

लेकिन प्रधान मंत्री मोदी के चलते इसके समाधान की भी उम्मीद है।

 बांग्ला देश में तख्ता पलट ,खुर्शीद एवं अय्यर की बयानबाजी  और अब टं्रप एवं मस्क के बयानों के बाद देखना होगा कि मोदी भारत और भारतीयों को कितना आश्वस्त करते हैं कि यहां दखल संभव नहीं। 

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(आज के दैनिक जागरण और नईदुनिया में एक साथ प्रकाशित)  

    

  

       

  

   

   

 


शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

 लोक सभा चुनाव-2024

बिहार के सिर्फ एक बूथ की कहानी

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सुरेंद्र किशोर

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विश्वसनीय सूत्र ने मुझे 2024 के लोक सभा चुनाव के सिलसिले में हुए मतदान की एक कहानी बताई थी।तभी बता दी थी।

एक खास वी.आई.पी.चुनाव क्षेत्र के एक खास बूथ पर पोलिंग एजेंट को मतदान के दिन के खर्चे के लिए 10 हजार रुपए उम्मीदवार की ओर से मिले थे।

 उससे पहले की रात में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के एक गांव में उसी उमीदवार की ओर से पैसे बांटे गये।

प्रति मतदाता-- 500 रुपए।

यानी, जिस घर में पांच मतदाता थे, उसे 2500 रुपए मिले।

उस परिवार के लिए 25 सौ रुपए का बहुत महत्व था।

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उस क्षेत्र के सिर्फ एक बूथ की पक्की खबर मुझे मिली।

अन्य बूथों के बारे में मैं सिर्फ अनुमान लगा सकता हूं--कोई पक्की जानकारी नहीं।

पर सवाल है कि क्या कोई उम्मीदवार सिर्फ एक ही बूथ पर इतना पैसा खर्च करेगा ?

जरूर अन्य बूथों पर खर्च किया होगा।

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इतने पैसे उसे कहां से मिले ?

इसी देश से या विदेश से ?

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21 फरवरी 25  

 


 आर.के.सिंह जैसे नेता को लोक सभा के 

बदले राज्य सभा में भेजना चाहिए था

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सुरेंद्र किशोर  

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आज की चालू राजनीति में 

एक ईमानदार हस्ती की पीड़ा

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बात तब की है जब आर.के. सिंह पटना के डी.एम. थे।

डी.एम. ही प्राथमिक शिक्षा की जिला स्थापना समिति के प्रधान हुआ करते थे।

हम लोग पटना के लोहिया नगर में रहते थे।मेरी पत्नी पटना में ही, पर आवास से दूर स्थित एक सरकारी मिडिल स्कूल में पढ़ाने जाती थी।

अल्प वेतन का आधा पैसा रिक्शा भाड़े मेें चला जाता था।

लोहिया नगर के एक ‘बाबू साहब’ कभी- कभी  मेरे घर आया करते थे।

एक दिन जब उन्हें चाय नहीं मिली तो पता चला कि मेरी पत्नी तो स्कूल जा चुकी हैं।

उन्होंने पूछा,‘इतनी जल्दी ?

अभी तो नौ ही बजे हैं ?’

मैंने कहा कि ‘दूर जाना होता है।इसलिए जल्दी चली गयी।’

उन्होंने कहा कि आर.के. मेरे परिचित हैं,उनसे मैं बात करूंगा।मैंने उन्हें मना नहीं किया।

  एक दिन वे डी.एम.साहब से मिले।

उनसे कहा कि ‘‘सुरेंद्र किशोर को जानते हैं न ! 

जनसत्ता का रिपोर्टर है।

अपना ही जात-भाई है।

उसकी पत्नी कष्ट में है।

उसे नजदीक के किसी स्कूल में ट्रांसफर कर दीजिए।उसके घर के नजदीक भी कई स्कूल हैं।’’

इस पर आर.के. ने अनिच्छा दिखाते हुए कहा कि

 ‘‘पटना से पटना में बदली होती है ?

यह संभव नहीं है।’’

वे ऐसे कड़ियल अफसर थे कि कोई उनसे बहस नहीं कर सकता था।

बेचारे उदास ‘बाबू साहब’ दूसरे दिन मेरे पास आए।

कहा कि ‘‘गजब आदमी है आर.के. !

 ऐसे -ऐसे कह दिया।’’ 

इधर मैं तो मन ही मन खुश हुआ।

एक ऐसा अफसर तो बिहार में है जो न जात के प्रभाव में आया और न ही जनसत्ता जैसे ‘‘उखारू-पछारू’’ अखबार से सहमा।

जरूर वह राज्य का भला करेगा,मैंने मन ही मन सोचा।

याद रहे कि उन दिनों जनसत्ता की 18 हजार प्रतियां पटना आती थीं।

कई विवादास्पद हस्तियों को यह आशंका रहती थी कि पता नहीं कल के जनसत्ता में किसके बारे में क्या छपा होगा !

बड़े बड़े सत्ताधारी लोग मुझे उपकृत करने के लिए उत्सुक रहते थे।

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जहां तक मुझे मालूम है, आर.के.कभी विवादास्पद रहे नहीं।

उन्हें किसी अखबार से भला क्यों डरना !

 मैं कभी आर.के.सिंह से मिला नहीं।आज तक भी नहीं।

न ही अब कोई वैसा अवसर आने की उम्मीद है।क्योंकि मैंने कहीं आना-जाना काफी कम कर दिया है।

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केंद्रीय मंत्री रहे आर.के.सिंह ने तब कहा था कि ‘‘स्कूलों में मास्टर नहीं आते हैं और डी.एस.ई.आंखें मूंदे रहते हैं।

यह व्यवस्था सिर्फ बिहार में है।

सरकार को इस संबंध में विचार करना चाहिए।

बिहार में स्वास्थ्य विभाग का भी बुरा हाल है।प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर डाक्टर नहीं जाते।वे आरा और पटना में बैठकर प्रैक्टिस करते हैं।भागे रहने के एवज में सारे डाक्टर, सिविल सर्जन को कमाई का एक हिस्सा दे देते हैं।

आगे सिविल सर्जन क्या करते हैं, सबों को पता है।’

एम.पी.फंड की ठेकेदारी को लेकर क्या-क्या होता है,उससे भी दस साल में आर.के.परिचित हो चुके होंगे।

 बिहार काॅडर के आई.ए.एस. रहे आर.के. सिंह ने वही कहा है जिसकी जानकारी सरकार को ‘छोड़कर’ पूरे बिहार को है।

 आर.के.सिंह उन थोड़े से जन प्रतिनिधियों में शामिल हैं जो सांसद फंड से कमीशन नहीं लेते।

जो जन प्रतिनिधि लेते हैं,वे अफसरों के सामने लज्जित रहते हैं।वे भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ इस तरह आवाज नहीं उठाते।

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स्कूल शिक्षक,डाक्टर और एम.पी.फंड के बारे में जिस नेता की ऐसी राय हो,वह दो बार लोक सभा चुनाव जीत गया,वही आठवां आश्चर्य हुआ।

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भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को आर.के. को लेकर पहले ही सावधानी बरतनी चाहिए थी।

उन्हें लोक सभा लड़वाने  के बदले राज्य सभा मंे भेजना चाहिए था।

  एम.पी.और केंद्रीय मंत्री के रूप में आर.के.सार्वजनिक काम मंे ही लगे रहते थे।

 व्यक्तिगत काम से साफ मना कर देते थे।

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आर.के.केे बारे में यह कहा जा सकता है कि वे जिस पद पर बैठे या बैठेंगे,उस पद को ऊपरी कमाई का औजार नहीं बनने देंगे।

ऐसे नेताओं की मोदी राज में,यानी आज भी काफी कमी है।

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21 फरवरी 25

 




  


गुरुवार, 20 फ़रवरी 2025

 अमेरिका से प्रत्यार्पित होकर भारत पहुंचे दो 

युवकों को पटियाला पुलिस ने हत्या के आरोप में

15 फरवरी की रात को गिरफ्तार कर लिया 

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इस देश के जो नेता और राजनीतिक दल आपातकाल में जार्ज फर्नांडिस को भारी हथकड़ी लगा कर जकड़ दिये जाने की चर्चा तक नहीं करते ,वे भारी हथकड़ी-बेड़ी  के साथ अमेरिका से लौट रहे ‘‘घुसपैठियांे’’ं को लेकर काफी चिंतित और दुखी नजर आ रहेे हैं।

 याद रहे कि प्रत्यार्पितों में से कई लोगों के खिलाफ भारत में पहले से ही गंभीर आरोपों में मुकदमे चले रहे हैं।

(आपातकाल में केस की सुनवाई के सिलसिले में जब भी जार्ज को दिल्ली कोर्ट में हाजिर किया जाता था,उनको हथकडी में जकड़कर ही --जैसा कि इस पोस्ट के साथ संलग्न फोटोे से स्पष्ट है।

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 कहते हैं कि कुछ खास नेताओं -दलों की असल चिंता भारत में आकर उनका वोट बैंक बने बांग्लादेशी -रोहिंग्या घुसपठियों के भविष्य को लेकर है जिन्हें राजग सरकार ने निकाल बाहर करना शुरू कर दिया है।

 भारत में रह रहे वैसे करोड़ों घुसपैठियों को  धीरे -धीरे बाहर 

करने की गंभीर कोशिश होने वाली है।

फिर उनके वोट बैंक का क्या होगा ?!

उन घुसपैठियों के कारण देश के कई हिस्सों में वोट का समीकरण बदल गया है।

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20 फरवरी 25


मंगलवार, 18 फ़रवरी 2025

 कर्पूरी ठाकुर की पुण्य तिथि पर

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घोर अभाव के बावजूद गलत पैसों को अपने 

पास नहीं फटकने देते थे कर्पूरी ठाकुर

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सुरेंद्र किशोर

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सन 1972-73 की बात है।

समाजवादी कार्यकर्ता की हैसियत से मैं कर्पूरी ठाकुर का निजी सचिव था।

कर्पूरी जी बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता थे।

बिहार विधान मंडल भवन में आॅफिस के लिए उन्हें एक बड़ा कमरा मिला हुआ था।

कर्पूरी जी ने एक दिन मुझे एक बिल देकर कहा कि लेखा शाखा(विधान सभा सचिवालय ) में जाकर दे दीजिए।

मैं वहां गया।

वहां के प्रशाखा पदाधिकारी साहब को मैंने बिल थमाते हुए कहा कि यह कर्पूरी जी का है।

वह बिल करीब छह सौ रुपए का था।

 प्रशाखा पदाधिकारी ने पहले बिल की राशि देखी।

उसके बाद मुझे ऊपर से नीचे तक तीखी नजरों से निहारा ।

फिर असामान्य स्वर में कहा,

‘‘कैसे -कैसे लोग कुर्ता-पायजामा पहन कर बड़े- बड़े नेताओं के करीबी हो जाते हैं।

नेता की जरूरतों का उन्हें पता ही नहीं होता है।

आप 6 सौ रुपए का बिल दे रहे हैं।

कर्पूरी जी इतने बड़े नेता हैं।उनका इतने कम पैसे में काम चलेगा ?

जाइए,इसे 13 सौ का बना कर ले आइए।’’

  मुझे तो बिल वगैरह का कोई ज्ञान था नहीं।

मैंने लौटकर उस बाबू की उक्ति कर्पूरी जी के सामने दोहरा दी।

कर्पूरी जी ने गुस्से में दांत पीसते हुए कहा--‘‘ये बेईमान लोग हैं।

लुटेरे हैं।

राज्य को लूट लेंगे।

दीजिए मुझे बिल नहीं पास करवाना।’’

 यह कह कर उस बिल को उन्होंने अपने टेबल की दराज में रख लिया। 

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अब आप कर्पूरी जी की व्यक्तिगत आर्थिक परेशानी से संबंधित एक संस्मरण पढ़िए।

उन दिनों नेता,प्रतिपक्ष को कोई खास सुविधा हासिल नहीं थी।सिर्फ एक स्टेनो टाइपिस्ट मिलता था।

(वह सब सुविधाएं 1977 में शुरू र्हुइं--यानी, कैबिनेट मंत्री के बराबर सुविधाएं)

एक दिन कर्पूरी जी की धर्म पत्नी ने मुझसे कहा कि ठाकुर जी महीने में 15-20 दिन पटना से बाहर ही रहते हैं।यहां चैके में राशन है या नहीं, इसका ध्यान नहीं रखते।

उनसे कहिए कि पूरे महीने का राशन एक बार खरीद कर रखवा दें।

मैंने उनसे यह बात कही।कर्पूरी जी ने कहा कि उन लोगों से (उनके परिवार के सदस्यों से)कहिए कि वे पितौंजिया(यानी पुश्तैनी गांव) जाकर रहें।

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दरअसल कर्पूरी जी को विधायक के रूप में तब मात्र 300 रुपए वेतन मिलता था।कमेटी की बैठक होने पर 15 रुपए दैनिक भत्ता।

यानी कुल 60 रुपए।

अब आप बताइए कि कोई भी ईमानदार व्यक्ति 360 रुपए में पटना में परिवार का खर्च कैसे उठा सकता था !

यानी, इतने अभाव के बावजूद कर्पूरी जी ने जाली बिल बनवाना मंजूर नहीं किया था।

यह तो छोटा सा नमूना मैंने यहां पेश किया।करीब डेढ़ साल मैं रात-दिन उनके साथ रहा।

ऐसे अवसर कई बार आए जब घर आई ‘‘लक्ष्मी’’ को उन्होंने ठुकरा दिया।

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आज जो लोग भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर की जयंती और पुण्य तिथि मनाते हैं,क्या उन्हें ऐसा करने का कोई नैतिक अधिकार है ?

(बाद में एक बार तो कर्पूरी जी के दल के ही एक विधायक ने एक घंटे के लिए भी अपनी जीप उन्हें देने से इनकार कर दिया था।कहा था--दो बार मुख्य मंत्री रहे ।अपने लिए कार क्यों नहीं खरीद लेते ?)

उनकी जयंती-पुण्य तिथि मनाने का नैतिक अधिकार तब जरूर होगा जब आज के नेतागण , सांसद-विधायक फंड में भ्रष्टाचार की कमीशनखोरी का विरोध करेंगे।(वह कमीशनखोरी भ्रष्ट सरकारी कर्मियों के लिए प्रेरणा-प्रोत्साहन स्त्रोत बनी हुई है।)

  क्या कर्पूरी जी को सभाएं करके याद करने वाले लोग लगभग सर्वव्यापी सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ जन आन्दोलन करेंगे ?

खुद सादगी का कर्पूरीनुमा जीवन बिताएंगे ?

यानी, जायज आय पर ही गुजर करेंगे ?

पर,क्या आज यह संभव भी है ?

ऐसी उम्मीद करना ही अपना भोलापन प्रकट करना नहीं है ?

क्योंकि राजनीति करने वाले अधिकतर लोग आज उस दुनिया में हैं जो कर्पूरी ठाकुर की दुनिया नहीं थी।

जब तक राजनीति बेहतर नहीं होगी, तब तक सरकारी अफसर-कर्मचारी से भी बेहतरी की उम्मीद मत कीजिए।

जब तक यह चलता रहेगा,तब तक आम जनता को सरकारी दफ्तरों से ‘‘मुफ्त में’’ सेवा नहीं मिलेगी।

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17 फरवरी 25




गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025

 


दो सूत्री कार्यक्रम चलाइए

देश व वंशज को बचाइए

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किसी ने ठीक ही कहा है--

1.-भ्रष्टाचार के खिलाफ आदर्शवादी-आत्म बलिदानी  

युवकों का समूह बना कर स्टिंग आपरेशन चलाने की 

आज सख्त जरुरत है।

2.-देश में जारी व्यापक ‘‘जेहादी अभियान’’ के विरुद्ध सीधी

कार्रवाई की आज और भी जरुरत है।

अन्यथा, यह देश नहीं बचेगा।

जेहाद और भ्रष्टाचार का सीधा संबंध बन चुका है।

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वैसे तो यह काम किसी भी आदर्शवादी-राष्ट्रवादी-सनातनी जवान को किसी इनाम की उम्मीद के बिना ही करना चाहिए।

बल्कि देश,लोकतंत्र और अपने वंशजों को बचाने के लिए करना चाहिए।

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फिर भी यदि संसदीय करियर में कोई सफलता चाहता है तो ये दो काम उसे सफलता दे सकते हैं।

जो व्यक्ति या दल ऊपर लिखे दो काम करेगा ,उसे चुनाव जीतने के लिए भी देर-सबेर किसी अन्य तीन-तिकड़म की जरुरत नहीं पड़ेगी।

अनेक लोग ऐसे अभियानियों पर लटटू हो जाएंगे।

भले जेहाद के वास्तविक व गहरे खतरे से बहुत लोग अभी वाकिफ नहीं ह,ैं जब तक कि यह खतरा उनके घर तक नहीं पहुंच जाता,पर भ्रष्टाचार से तो इस देश में लाखों-करोड़ों बेचारे लोग पीड़ित हो रहे हैं।

कोई सरकार उन्हें भ्रष्टाचार के इस सर्वव्यापी -बहुरुपी राक्षस  से राहत नहीं दिला पा रही है।

 जो काम कोई न कर पाए,उसे आप करिए।उससे यश अधिक मिलेगा।इतिहास याद रखेगा।

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13 फरवरी 25


 


बुधवार, 12 फ़रवरी 2025

 भारतीय संविधान की मूल प्रति का 

बिगाड़ीकरण नेहरू सरकार ने ही कर 

दिया था।उसका सुधारीकरण 

मोदी सरकार करने जा रही।

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सुरेंद्र किशोर

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आज के दैनिक जागरण ने खबर दी है कि ‘‘अब देशवासियों को संविधान की अधूरी नहीं,बल्कि मूल और प्रामाणिक प्रतियंा पढ़ने को मिलेंगी।

    इन प्रतियों में पांच हजार साल पुरानी संस्कृति और विरासत से जुड़े सभी 22 रेखा चित्र और संविधान सभा के सदस्यों के हस्ताक्षरित पृष्ठ शामिल होंगे।(याद रहे कि नेहरू सरकार ने उसे हटा दिया था।)

  राज्य सभा में मंगलवार (11 फरवरी)को शून्य काल के दौरान भाजपा सांसद डा.राधा मोहन दास अग्रवाल द्वारा अधूरे संविधान को पढ़ाने का मुद्दा उठाए जाने के बाद राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने व्यवस्था दी ।

  इसके बाद राज्य सभा के आनलाइन प्लेटफार्म पर इसे आधे घंटे के भीतर अपडेट कर दिया गया।

  राज्य सभा में सदन के नेता जे.पी.नड्डा ने सदन में घोषणा की कि सरकार जल्द ही यह सुनिश्चित करेगी कि सभी को संविधान की प्रामणिक (यानी मूल)प्रति मिले।

जैसे ही डा.अग्रवाल ने इस मुद्दे को उठाया,कांग्रेस ने इस पर भारी एतराज जताया।

  कांग्रेस अध्यक्ष और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि पढ़ाए जा रहे संविधान को अधूरा कहना बाबा साहेब 

आंबेडकर का अपमान है।

सदन को गलत जानकारी दी रही है।’’

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(चूंकि संविधान की मूल काॅपी (अंग्रेजी-हिन्दी)मेरे व्यक्तिगत पुस्तकालय सह संदर्भालय में उपलब्ध है,इसलिए बिहार के ही नन्दलाल बसु द्वारा तैयार उन रेखा चित्रों में से कुछ चित्र इस 

पोस्ट के साथ यहां प्रस्तुत कर रहा हूं।

आप ही सोचिए कि आजादी के तत्काल बाद की सरकार ने उन चित्रांकनों को गायब करके आजाद पीढ़ी के साथ कितना अन्याय किया !

इतना ही, नेहरू-इंदिरा की सरकारों में 1947 से 1977 तक पांच गैर सनातनियों को शिक्षा मंत्री बना कर इतिहास तथा अन्य तरह का बिगाड़ीकरण भी कराया गया।

आर्थिक क्षेत्रों में आजादी के तत्काल बाद की सरकारों ने जो बिगाड़ीकरण किया,उसके सुधारीकरण की शुरूआत तो प्रधान मंत्री पी.वी.नरसिंह राव और उनके वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने कर दी थी।पर,अन्य तरह के बिगाड़ीकरणों को सुधारने की जिम्मेदारी अब मोदी सरकार पर है।) 

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12 फरवरी 25

  


मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

 इस पोस्ट को समय देकर पढ़िएगा

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सुरेंद्र किशोर

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भाजपा सरकार सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम नहीं करती,

बल्कि मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार कम करके केंद्र 

सरकार की आय में 2014 के बाद तीन गुनी

बढ़ोत्तरी कर दी है।

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जिसे कुछ लोग ‘‘हिन्दू मुस्लिम करना’’ कहते हैं ,वह कुछ और है।वह यह है कि हथियारों के बल पर भारत पर इस्लामिक शासन कायम करने वालों और उनके वोट लोलुप समर्थक दलों के खिलाफ भाजपा सरकार अभियान चलाती है।

 पूरी दुनिया में चीन सहित उन देशों के राष्टभक्त राजनीतिक दल जेहादियों से पूरी ताकत से आज लड़ रहे हैं जहां यह समस्या पैदा हो रही है या बढ़ रही है।

लगता है कि भारत सहित पूरी दुनिया के इस्लामिक जेहादी अब जल्दीबाजी में हैं।

भारत ही अपवाद है जहां उनसे सिर्फ सत्ता दल लड़ रहा है।

जेहादियों को लगता है कि मोदी के रहते वे भारत में अपने लक्ष्य में सफल नहीं होंगे।दिल्ली विधान सभा चुनाव में जीत के बाद मोदी सरकार जेहादियों और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ अब दुगुनी ताकत से कार्रवाई शुरू कर सकती है।अध्किातर जनता उसके साथ है।

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दुनिया की हर अच्छी सरकार जेहादियों से आज लड़ रही है।पर भारत का कोई भी भाजपा विरोधी राजनीतिक दल या नेता प्रतिबंधित हथियारबंद जेहादी संगठन पी.एफ.आई. और उसके राजनीतिक दल एस.डी.पी.आई.के खिलाफ एक शब्द का भी उच्चारण तक नहीं करता,लड़ने की बात कौन कहे !

मोदी के लिए और देश के विकास व भले के लिए यह अच्छी स्थिति है कि अधिकतर भाजपा विरोधी दलों की छवि जेहाद समर्थक हो चुकी है।यदि वे चाहें तो अब भी अपनी छवि सुधार सकते हैं अन्यथा उनके लिए देर हो जाएगी।

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आज के दैनिक भास्कर के प्रथम पेज की हेडिंग है--

‘‘कमाई का फार्मूला ....छह साल में काॅर्पोरेट्स ,आम करदाताओं को 13 लाख करोड़ रुपए की टैक्स छूट,फिर भी कलेक्शन हर साल बढ़ा।’’

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मोटा- मोटी एक आकलन

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2013- 14 वित्तीय वर्ष में भारत सरकार को करांे से करीब 10 लाख करोड़ रुपए की आय थी।

अब वह आय बढ़कर लगभग तीन गुनी से भी अधिक हो गयी है।

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नतीजतन,

सेना आज मजबूत हो रही है।देश में विकास दिख रहा है।

आम लोगों को तरह -तरह से राहत देने के लिए भारत सरकार के पास धन उपलब्ध है।

क्योंकि सरकारी भ्रष्टाचार पहले की अपेक्षा कम होता जा रहा है।

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पहले क्या हालत थी ?

आजादी के तत्काल बाद से ही घोटालों की बाढ़ आ गई थी।

भ्रष्टाचारियों को पूरी छूट थी।

1961 में केंद्र सरकार के रक्षा मंत्रालय ने सेना के लिए वित्त मंत्रालय से एक करोड़ रुपए की मांग की,सेना की जरूरी जरूरतों की पूर्ति के लिए।

वित्त मंत्रालय और प्रधान मंत्री ने कहा कि पैसे नहीं हैं।

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1962 में जब चीन ने सोवियत संघ से पूर्व अनुमति लेकर हम पर हमला किया तो 

हमारी सेना का क्या हाल था ?

देश के प्रमुख पत्रकार मन मोहन शर्मा के अनुसार,

‘‘एक युद्ध संवाददाता के रूप में मैंने चीन के हमले को कवर किया था।

  मुझे याद है कि हम युद्ध के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे।

 हमारी सेना के पास अस्त्र,शस्त्र की बात छोड़िये,कपड़े तक नहीं थे।

 अंबाला से 200 सैनिकों को एयर लिफ्ट किया गया था।

उन्होंने सूती कमीजें और निकरें पहन रखी थीं।

उन्हें बोमडीला में एयर ड्राप कर दिया गया

जहां का तापमान माइनस 40 डिग्री था।

वहां पर उन्हें गिराए जाते ही ठंड से सभी बेमौत मर गए।’’

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मनमोहन सिंह के शासन काल में रक्षा मंत्रालय ने चीन से भारतीय सीमा पर खतरे को देखते हुए सेना विस्तार के लिए 65 हजार करोड़ रुपये की एक योजना बना कर कुछ समय पहले वित्त मंत्रालय को भेजा था।

  इस पर वित्त मंत्रालय ने रक्षा मंत्रालय से एक अनोखा सवाल पूछा।उसने लिख कर यह पूछा कि क्या चीन से खतरा दो साल बाद भी बना रहेगा ?यह पूछ कर वित्त मंत्रालय ने 

दरअसल वित्त मंत्रालय रक्षा मंत्रालय को यह संदेश देना  चाह रहा था कि यदि दो साल बाद भी खतरा बना नहीं रहेगा तो इतना अधिक पैसा रक्षा तैयारियों पर खर्च करने की जरूरत ही कहां है ?

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कांग्रेस शासन काल में सरकारी लूट का हाल क्या था ?

1985 में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि दिल्ली से सरकार 100 पैसे भेजती है ,पर इसमें से सिर्फ 15 पैसे ही गांवों तक पहुंच पाते हैं।बाकी बिचैलिए खा जाते हैं।’’

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एक दिन में तो 100 पैसे घिसकर 15 पैसे नहीं हो गये होंगे।

इनमें से नेहरू के राज में कितना घिसा ?

शास्त्री के राज में कितना घिसा ?

इंदिरा के राज में कितना घिसा ?

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राजीव गांधी की गद्दी तो घोटालों के कारण ही गई।

नेहरू के राज में कितना घिसा,उसका उदाहरण कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के शब्दों में 

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 सन 1963 में ही तत्कालीन कांग्रेस  अध्यक्ष डी.संजीवैया को  इन्दौर के अपने भाषण में यह कहना पड़ा  कि ‘‘वे कांग्रेसी जो 1947 में भिखारी थे, वे आज करोड़पति बन बैठे।(1963 के एक करोड़ की कीमत आज कितनी होगी ? )

गुस्से में बोलते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने यह भी कहा था कि ‘‘झोपड़ियों का स्थान शाही महलों ने और कैदखानों का स्थान कारखानों ने ले लिया है।’’

इन्दौर के तब के किसी अखबार में कोई शोधकर्ता इस बयान को पढ़ सकता है। 

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केंद्र सरकार में आजादी के तत्काल बाद जीप घोटाला हुआ।

घोटाले का आरोप जिस नेता पर लगा,उसे प्रमोट करके रक्षा मंत्री बना दिया गया।

और न जाने कितने घोटाले समय समय पर केंद्र सरकार ने किये।

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बिहार में भी आजादी के तत्काल बाद से ही घोटाले शुरू हो गये थे।--लोहा कांड,छोआ कांड ,साठी कांठ आदि आदि....

अय्यर आयोग की सन 1970 की रपट के अनुसार बिहार के एक सत्ताधारी नेता (1946-66)ने 12 मकान व जमीन खरीदे। सन 1946 में उनके बैंक खाते में करीब छह सौ रुपए थे जो 1966 में बढ़कर करीब छह लाख रुपए हो गये थे।ये तो नमूना है।

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निष्कर्ष

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कोई किसान अपनी 100 एकड़ पुश्तैनी जमीन में से 85 एकड़ को बेच खाए तो उस किसान को घर का मालिक रहने दिया जाएगा ?

जो किसान 100 एकड़ को बढ़ाकर 300 एकड़ कर दे उसे मालिक पद से कौन हटाना चाहेगा ?

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जवाहरलाल नेहरू तीन बार लगातार प्रधान मंत्री बने थे।

उसमें देश भर के स्वतंत्रता सेनानियों और स्वतंत्रता प्रेमी जनता का भी योगदान था।उनका अपना भी थोड़ा-बहुत योगदान रहा था।

पर नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधान मंत्री बने तो उसमें मोदी का अपना अधिक योगदान था।भाजपा,संघ,कांग्रेसी घोटालों से पीड़ित लोगों का भी योगदान है।

कोई केंद्र सरकार पहली बार भ्रष्ट और जेहाद पक्षी शक्तियों के खिलाफ आवश्यकतानुसार ताकत लगाकर हमलावर है।वे शक्तियां अब बचाव की मुद्रा में है।दिल्ली चुनाव नतीेजे के बाद अब और भी बचाव की मुद्रा में होंगी।

आगे यही चलेगा। हरियाणा और महाराष्ट्र के बाद दिल्ली में भाजपा की जीत का संकेत समझिए।

बीच में लोक सभा चुनाव में भाजपा की सीटें कम होने की परिघटना को अधिक महत्व दीजिएगा तो धोखे में रहिएगा।

वह जार्ज सोरोस के पैसों का कमाल था जो सीमित इलाकों में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों में बंटे थे और चुनाव पर उसका असर हुआ था।यह आंकड़ा याद रखिए --

भाजपा को लोक सभा चुनाव में सन 2019 की अपेक्षा सन 2024 में पूरे देश में 67 लाख अधिक वोट मिले।

चूंकि अब सोरोस मुरझा गया है।इसलिए हाल के विधान सभा उप चुनावों में भाजपा यू.पी. में जीत गई।

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9 फरवरी 25



 


 


 जैविक खेती करिए , कैंसर से बचिए

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गांव में घर बनाने के लिए आज मैंने भूमि पूजा की 

ताकि वहां रह कर अपनी पुश्ैनी जमीन पर जैविक 

खेती कर या करा सकूं

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सुरेंद्र किशोर

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आज मैंने पत्नी के साथ पुश्तैनी गांव जाकर भूमि पूजा की।

इरादा एक छोटा सा घर बनाने का है।मेरे साथ मेरे पुत्र अमित और भतीजा कामेश्वर भी थे।

 वहां हमारी कुछ जमीन है। 

उसमें मैं जैविक खेती करना चाहता हूं।

देखें, यह काम मुझसे हो पाता है या नहीं। 

जिस जमीन में सनातन रीति से आज भूमि पूजा की गई,वह खानपुर-भरहापुर बाजार के बीचों बीच स्थित है।मेरी जमीन की तीनों ओर मार्केट है।

अभी तो उस जमीन पर मार्केट बनाने की मेरी कोई योजना नहीं है,किंतु शेरपुर-दिघवारा 6 लेन गंगा ब्रिज अगले दो-तीन साल में जब बन कर तैयार हो जाएगा तो शायद मार्केट बनाने का हम पर भी दबाव पड़े।

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दरअसल बाजारों में उपलब्ध अधिकतर खाद्य और भोज्य पदार्थों में आर्सेनिक -रसायन-मिलावट आदि की भरमार है।

जिस तरह सरकार सड़कों पर अतिक्रमण रोकने में विफल है,उससे अधिक विफल वह मिलावटखोरों के खिलाफ सबक सिखाने लायक सजा दिलवाने में है।

इसके पीछे शासन में भीषण भ्रष्टाचार है।

नतीजतन कैंसर मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है।

मैं अपनी देखरेख में जैविक उत्पादन करके भरसक कैंसर से बचना चाहता हूं।

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 नीतीश सरकार और मोदी सरकार के प्रयास से हमारे पुश्तैनी गांव वाले इलाके का भी तेजी से विकास हो रहा है।सारण जिले के पूर्वी इलाके में हवाई अड्डा भी प्रस्तावित है।स्थानीय सांसद राजीव प्रताप रूड़ी उसके लिए कई वर्षों से प्रयत्नशील थे।

इन सब बातों का सकारात्मक असर उस खानपुर-भरहापुर बाजार पर भी पड़ रहा है जहां हमने आज भूमि पूजा की।

नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद ही पहली बार हमारे उस गांव में बिजली पहुंच सकी।

दिघवारा-अमनौर सड़क को, जो खानपुर बाजार से गुजरती है, मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने मेरे ही आग्रह पर आर.ई.ओ. से स्टेट हाईवे में बदल दिया ।सड़क मजबूत बनी है।उसका लाभ लोगों को मिल रहा है।

 जब मैं अखबार की नौकरी में था तो सरकार सार्वजनिक महत्व के काम से संबंधित मेरा आग्रह सुन लेती थी।क्योंकि मैंने कभी अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए कोई पैरवी नहीं की।

 खैर, अब तो सरकार मेरी सार्वजनिक हित वाली पैरवी भी नहीं सुनेगी ।क्योंकि मैं अब अखबार की नौकरी में नहीं हूं।

लेकिन मैं नीतीश कुमार का आभारी हूं जिन्होंने हमारे इलाके की सड़क को स्टेट हाइवे में परिणत करा कर विकास का रास्ता खोला।

जहां सड़क और बिजली हो,वहां विकास-रोजी-रोटी  का रास्ता तो अनेक लोग खुद भी खोज लेते हैं।हां,अस्पताल सेवा-पुलिस सेवा बेहतर करने की आज भी जरूरत है।साथ ही,सरकारी दफ्तरों में घूसखोरी लोगों को बहु पीड़ित करती है।

उससे राज्य सरकार की छवि खराब होती है।

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अविभाजित सारण जिला मनी आर्डर इकोनोमी वाला जिला रहा है।लालू प्रसाद के शासन काल में सारण के बेला और मढ़ौरा  में रेल कारखाने की नींव पड़ी।

नीतीश कुमार-नरेंद्र मोदी के शासन काल में एक और बड़ा काम हुआ जो पिछड़े सारण जिले के विकास के लिए संजीवनी का काम करेगा।वह है निर्माणाधीन शेरपुर -दिघवारा 6 लेन गंगा पुल।

इस गंगा ब्रिज के लिए स्थल निरीक्षण करने कुछ साल पहले नीतीश कुुमार उस इलाके में गए थे।

 तब उन्होंने कहा था कि इस मेगा पुल के बन कर तैयार हो जाने पर दिघवारा से नया गांव का इलाका ‘‘न्यू पटना’’ बन जाएगा।

पटना में मैं जहां रहता हूं ,वहां से खानपुर-भरहापुर बाजार की दूरी करीब 50 किलोमीटर है।

  शेरपुर-दिघवारा पुल के बन कर तैयार हो जाने पर इतनी कम दूरी भी और कम हो जाएगी।

आज मैंने अपनी गांव -यात्रा के दौरान यह महसूस किया कि नीतीश जी की इच्छा मूर्त रूप लेने लगी हैं।मैंने सुना कि दिघवारा  के आसपास की जमीन तेजी से बिक रही है और कुछ लोग तो दस-पांच बीघा भी एक साथ खरीद रहे हैं।या खरदने की इच्छा रखे हैं।

हाजीपुर-छपरा नेशनल हाईवे के दोहरी करण और मजबूती करण का काम भी तेजी से चल रहा है।

   ,मेरा पुश्तैनी गांव दिघवारा से करीब 3 किलोमीटर दूर दिघवारा-अमनौर स्टेट हाईवे पर स्थित है।

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10 फरवरी 25

  


बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

 स्वतंत्रता सेनानी जगलाल चैधरी की याद में 

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(5 फरवरी, 1895-9 मई, 1975)

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पिता ताड़ी बेच कर पुत्र को मेडिकल में पढ़ा रहे थे,पर वही पुत्र जब आबकारी मंत्री बने तो उन्होंने नशाबंदी लागू कर दी।

ऐसे थे सिद्धांतवादी-गांधीवादी  नेता जगलाल चैधरी।

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सुरेंद्र किशोर

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  जगलाल चैधरी ने 6 अप्रैल 1938 को नशाबंदी लागू की। सन 1937 में गठित राज्य मंत्रिमंडल के कुल चार मंत्रियों में एक मंत्री चैधरी जी भी थे।

अन्य तीन थे-डा.श्रीकृष्ण सिंह (प्रीमियर),डा.अनुग्रह नारायण सिंह और डा.सैयद महमूद।

जगजीवन राम उस सरकार के संसदीय सचिवों में से एक थे। 

  चैधरी जी पासी जाति से आते थे।

खुद उनका परिवार ताड़ी के व्यवसाय पर निर्भर था।

 इसके बावजूद आबकारी मंत्री के रूप में जगलाल चैधरी ने सारण जिला सहित राज्य के कुछ खास जिलों में नशाबंदी लागू कर दी।(आज का कलयुगी नेता होता तो अपने जिले को नशाबंदी से बचा लेता।क्योंकि कुछ ही जिलों में लागू करना तय हुआ था।पर चैधरी जी तो ‘‘राजनीति के सतयुग’’ के नेता थे। )

उनका परिवार ताड़ी की आय से ही चैधरी जी को कलकता मेडिकल काॅलेज में डाॅक्टरी पढ़ा रहा था।

फिर भी चैधरी जी ने न तो अपने परिवार की आय की परवाह की और न अपनी जाति के आर्थिक हित की।

 बाद में खुद उन्हें नशाबंदी की भारी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ी।क्योंकि आजादी के बाद नशाबंदी की 

 गांधी नीति को अधिकतर कांग्रेसी भूल चुके थे। चैधरी के कदम को हाईकमान में अच्छा नहीं माना गया था।

  लगातार विधान सभा चुनाव जीतने के बावजूद चैधरी जी को 1952 और उसके बाद मंत्री नहीं बनने दिया गया।

उनके मित्र व राष्ट्रपति डा.राजेंद्र प्रसाद उन्हें यू.पी.एस.सी.का सदस्य बनाना चाहे थे।पर,जगलाल चैधरी ने अस्वीकार करते हुए कहा था कि मुझ पर रहम करने की कोई जरूरत नहीं है।

   प्रधान मंत्री वी.पी.सिंह ने अपनी जाति के भी हितों को नजरअंदाज करके 1990 में पिछड़ा आरक्षण लागू किया था।मुख्य मंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने पंचायतों में जब अति पिछड़ों के लिए आरक्षण लागू किया तो उनकी जाति के लोग यानी कुर्मी का एक बड़ा हिस्सा नीतीश से सख्त नाराज हो गया।क्योंकि अति पिछड़ा आरक्षण के बाद कुर्मी मुखिया की संख्या कम हो गई।

यानी ऐसे नेता कम ही होते हैं जो अपनी जाति के हितों का नुकसान करके भी व्यापक जनहित में कोई निर्णय करते हैं।

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 1937 वाली सरकार के  आबकारी मंत्री चैधरी ने कहा था कि ‘‘जब मैं अपने बजट को देखता हूं तो मालूम होता है कि इस साल हम पंद्रह करोड़ रुपए खर्च करेंगे।

इसमें हम पांच करोड़ रुपए तो गरीबों के पाॅकेट से उन्हें शराब पिला कर लेंगे।’’

(याद रहे कि गांधी ने कहा था कि यदि सरकारी स्कूल का खर्च आबकारी आय से चलता हो तो वैसे स्कूलों का न चलना ही बेहतर है।)

 जगलाल चैधरी जानते थे कि नशाबंदी आदेश से सबसे अधिक नुकसान उनकी अपनी ही पासी जाति को हुआ था।पर, इस बारे में वे कहते थे कि 

‘‘यह समाज कोई और रोजगार करे।

गरीब-दलित यदि शराब का व्यापार और शराब पीना छोड़ देंगे तो उनकी प्रतिष्ठा भी समाज में बढ़ेगी और उनकी गरीबी भी कम होगी।’’

पर, उनके मंत्री नहीं रहने पर नशाबंदी का आदेश बिखर गया था।

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याद रहे कि गांधी जी से प्रभावित होकर जगलाल चैधरी ने जब आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए पढ़ाई छोड़ दी तब वे कलकत्ता में मेडिकल छात्र थे।

मेडिकल काॅलेज में उनका चैथा साल था।लोगों ने समझाने की कोशिश की कि पहले अपनी पढ़ाई तो पूरी कर लीजिए। 

पर , उन्होंने कहा कि अब मेरे लिए इस पढ़ाई का कोई मतलब नहंीं रहा। 

  संयोग से वे उसी चुनाव क्षेत्र (गड़खा,सारण)से लड़ते थे जिस क्षेत्र में मेरा पुश्तैनी गांव है।

उन्हें मैंेने अपने गांव में,अपने दरवाजे पर भी बचपन में देखा था।

सादगी की प्रतिमूत्र्ति थे।उनकी पोशाक कर्पूरी ठाकुर जैसी थी।

मुझे याद है--वे लोगों से कहा करते  थे कि आप लोग अंग्रेजी दवाओं से भरसक दूर रहें।

खेतों में रासायनिक खादों के बदले जैविक खाद डालें।भूजल स्त्रोतों की रक्षा करें।यानी, कम से कम ट्यूब वेल लगवाएं।

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  एक और प्रकरण और !

चैधरी जी की बेटी की जब शादी थी,तब वे बिहार में मंत्री थे।

उनकी सरकार ने हाल ही में विधायिका से गेस्ट कंट्रोल एक्ट पास करवाया था।

शायद उस कानून के अनुसार अत्यंत सीमित संख्या --तीस या पैंतीस --में ही अतिथियों को बुलाने का नियम बनाया गया।

चैधरी जी के यहां बारात आई।उतने ही लोगों का खाना बना था।

पर,बिना बुलाए कई अतिथि आ गए।

नतीजतन खुद चैधरी जी के परिवार को उस रात भोजन नहीं मिला।

क्योंकि चैधरी जी ने अतिरिक्त भोजन नहीं बनने दिया था।

शादी को सम्मेलन बनाने वाले नेताओं के आज के दौर में 

जगलाल चैधरी कुछ अधिक ही याद आते हैं।

हालांकि गेस्ट कंट्रोल एक्ट आज भी लागू है ,पर सिर्फ कागज पर। 

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एक जगलाल चैधरी थे,और दूसरी ओर आज के अनेक नेता हैं जो बिहार में जारी शराबबंदी को फिर से चालू करवाना चाहते हैं। 5 फरवरी यानी परसों पटना में चैधरी साहब की जयंती मनाई जाएगी।

चैधरी जी को सच्ची श्रद्धांजलि यही मानी जाएगी यदि जो लोग पीते हैं,वे उस दिन से न पीने का प्रण करें।साथ ही विवाह उत्सव में कम से कम लोग जुटें।

मैं जानता हूं कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला है,पर मेरे मन में आया तो लिख दिया।

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3 फरवरी 25



 कवि और गजल कार रामनाथ सिंह उर्फ 

अदम गोंडवी की याद में

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(22 अक्तूबर, 1947--18 दिसंबर, 2011) 

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साठ-सत्तर के दशकों के भारत के दृश्य

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      1

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काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में। 

उतरा है रामराज विधायक निवास में।।

पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत।

इतना असर है खादी के उजले लिवास में।।

आजादी का ये जश्न मनाएं वो किस तरह।

जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में।।

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें । 

संसद बदल गई है यहां के नखाश में !! 

जनता के पास एक ही चारा है बगावत।

ये बात कह रहा हूं मैं होश-ओ-हवास में ।।

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         2

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वो जिसके हाथ में छाले हैं,पैरों में बिवाई है,

उसी के दम से रौनक आपके बंगलों में आई है।।

इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का,

उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है।।

कोई भी सिरफिरा धमका के जब चाहे जिबह कर ले,

हमारा मुल्क इस माने में बुधवा की लुगाई है।।

रोटी कितनी महंगी है ये वो औरत बताएगी,

जिसने जिस्म गिरवी रख के ये कीमत चुकाई है।।

-----  अदम गोंडवी

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जब अदम गोंडवी गजल लिख रहे थे,उन्हीं दिनों डा.राम मनोहर लोहिया लोक सभा में कह रहे थे-- 

‘‘27 करोड़ आबादी तीन आने रोजाना पर जिंदगी काटती है।वहीं देश के प्रधान मंत्री की सुरक्षा पर 25 हजार रुपए प्रतिदिन खर्च किये जाते हंै।’’

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अस्सी के दशक में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने यह कह कर स्थिति साफ कर दी--

‘‘हम दिल्ली से 100 पैसे भेजते हैं,किंतु उसमें से सिर्फ 15 पैसे ही जनता तक पहुंच पाते हैं। 85 पैसे बिचैलिाए खा जाते हैं।’’

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4 फरवरी, 2025 

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पुनश्चः

अस्सी के दशक में भारत के बारे में विदेशियों की कैसी धारणा थी ?

पढ़िए मेरा एक संस्मरण--

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अस्सी के दशक में पत्रकार सह लेखक माइकल टी. काॅफमैन पटना आए थे।

वे उन दिनों नई दिल्ली में न्यूयार्क टाइम्स के ब्यूरो प्रमुख

थे।

मैं तब यहां के दैनिक ‘आज’ में काम करा था।

जार्ज फर्नांडिस ने उन्हें कहा था कि पटना में पूरे बिहार का हाल सुरेंद्र तुम्हें बता देगा।

 मुझसे काॅफमैन की लंबी बातचीत हुई।

मैंने यूंहीं उत्सुकतावश उनसे पूछा कि ‘‘अमेरिका के लोग भारत के बारे में क्या सोचते हैं ?’’

उन्होंने कहा कि ‘‘सोचने की फुर्सत ही कहां है ?’’

मैंने जोर डाला -‘‘कुछ तो सोचते होंगे !

खास कर भारत के विशेषज्ञ भी तो होंगे।’’

फिर उन्होंने पाटलिपुत्र अशोका होटल के अपने कमरे की दीवाल पर टंगे दुनिया के नक्शे की ओर अपनी कलम घुमाई और नाटकीय ढंग से पूछा, ‘किधर है इंडिया !’

और जोर देने पर उन्होंने कहा कि ‘‘आपको बुरा लगेगा,इसलिए मैं नहीं बताऊंगा।’’

मैंने फिर जोर दिया।

फिर उन्होंने कहा कि भारत के बारे में हमारे यहां के कुछ लोग कहते हैं कि वहां के एक तिहाई लोग कचहरियों में रहते हैं।

अन्य एक तिहाई लोग अस्पतालों में।

बाकी एक तिहाई लोग मनमौजी हैं।

काॅफमैन ने कहा कि यदि आप अमेरिका में होते तो सबसे पहला काम यह होता कि आपको किसी निकट के अस्पताल में भर्ती करा दिया जाता।

(याद रहे कि मैं उन दिनों और भी दुबला-पतला था।बीमार जैसा लगता था।)

वे कहना चाहते थे कि अस्पताल जाने लायक स्थिति तो एक तिहाई भरतीयों की है,पर वे सब जा नहीं पाते।

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इतने वर्षों के बाद अमेरिका के लोग भारत के बारे में आज यानी 2025 में क्या सोचते होंगे ?   .

कोई आयडिया ?!!

मैंने सुना है कि अब भारत सिर्फ सपेरों और साधु-संन्यासियों का देश नहीं माना जाता।

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 सांसद-विधायक भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान 

चलाएं अन्यथा सरकारी भ्रष्टाचार का लाभ उठाकर 

राष्ट्र द्रोही तत्व इस देश पर हावी  हो सकते हैं

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सुरेंद्र किशोर

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इस देश के सांसदों-विधायकों को चाहिए कि वे सांसद-विधायक फंड के इस्तेमाल में जारी व्यापक 

भ्रष्टाचार के खिलाफ जोरदार आवाज उठायें।

  यदि वे वैसा करेंगे तो देश-प्रदेश के सरकारी कार्यालयों में व्याप्त अन्य तरह के भीषण भ्रष्टाचारों पर भी अंकुश लगना शुरू हो जाएगा।

 तब पैसे के बल पर कोई घुसपैठी, अपना आधार कार्ड, राशन कार्ड , मतदाता पहचान पत्र नहीं बनवा सकेगा। 

  खबर है कि अपवादों को छोड़कर सांसद-विधायक फंड में सामान्यतः 40 प्रतिशत कमीशनखोरी होती है।

   इससे अन्य काम में लगे भ्रष्ट सरकारी कर्मियों को प्रेात्साहन मिलता है। वे महसूस करते हैं जब हमारे लोकतंत्र के प्रहरी ही आवाज नहीं उठा रहे हैं तो हमें भी बहती गंगा में हाथ धो ही लेना चाहिए।नब्बे के दशक से पहले अनेक सांसद-विधायक भ्रष्टाचार को लेकर सदन में बहुत से सवाल करते रहते थे।बड़ी बड़ी खबरें ंबनती थीं।

सरजमीन पर भी भ्रष्टाचार के खिलाफ वे रोष प्रकट करते रहते  थे।साठ के दशक से मैं देख रहा हूं।

अब यह सब काफी कम हो गया हैं।

नतीजतन अधिकतर सरकारी कर्मी मध्ययुगीन जाजिया टैक्स की तरह ही जनता से बेधड़क रिश्वत वसूल रहे हैं।आज शायद ही कोई सरकारी काम मुफ्त में हो रहा है।

इन पंक्तियों का लेखक भी हाल में इस दारुण स्थिति का भुक्तभोगी हुआ है।सरकारी दफ्तरों में किसी ‘‘परिचय’’का कोई अर्थ नहीं रह गया है।

  पैसा ही सब कुछ है।हर घूसखोर कहता है कि क्या करूं,ऊपर देना पड़ता है।

रिश्वत देने के साथ-साथ काम कराने वालों को अनेक मामलों में अपमानित भी होना पड़ता है।

 कहीं पढ़ा है कि मध्य युग में जाजिया कर देने वालों को भी हर बार अपमानित होना पड़ता था।लेने वाला, देने वाले काफिरों की ओर थूका करता था।

यही प्रथा थी ताकि थूक से बचने के लिए भी वे जल्द इस्लाम कबूल कर ले।

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इस देश-प्रदेश के सरकारी महकमों में व्याप्त भीषण भ्रष्टाचार के कारण अवैध घुसपैठियों को काफी सुविधा मिल जा रही है।उनके लिए जाली आधार कार्ड,राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र आसानी से बन जाते हैं।

इस तरह दिल्ली में मुस्लिमों की आबादी दुगनी से भी अधिक हो चुकी है।

जे.एन.यू.-टिस के ताजा सर्वेक्षण के अनुसार दिल्ली में सन 1951 में मुस्लिमों की आबादी जहां 5 दशमलव 7 प्रतिशत थी,वहीं 2011 में बढ़कर 12 दशमलव 8 प्रतिशत हो चुकी है।

2011 के बाद रोहिंग्या-बांग्लादेशियों की दिल्ली सहित पूरे देश में अपेक्षा कृत अधिक घुसपैठ हुई है।हो रही है।

इनका लक्ष है--आबादी बढ़ाकर भारत को भी इस्लामिक देश बना देना। इसीलिए 57 में से कोई भी मुस्लिम देश इन तथाकथित शरणार्थियों को अपने यहां शरण नहीं देता।

यूरोप शरण देकर पछता रहा है।

क्योंकि मुस्लिम देश चाहते हैं कि हमारी संख्या 57 से जल्द 58 हो जाए।

  इस काम में हमारे देश के तथाकथित सेक्युलर तथा मुस्लिम वोटलोलुप नेता व बुद्धिजीवीगण घुसपैठियों की तरह तरह से मदद कर रहे हैं।

वे अपने पोेता-पोती के भविष्य पर भी ध्यान नहीं दे रहे हैं।

वे कम्युनिस्ट नेता सज्जाद जहीर

 और जिन्ना दल के योगेंद्र नाथ मंडल के ‘‘भोगे हुए यथार्थ’’ वाली कहानियों से भी कोई शिक्षा नहीं ले रहे हैं।बंटवारे के बाद बड़ी उम्मीद से ये दोनों पाकिस्तान चले गये थे।

पर,एक मुस्लिम देश का असली स्वरूप देखकर इन दोनों ने जल्द ही बड़े बेआबरू होकर पाकिस्तान छोड़ दिया।फिर भारत की शरण ले ली थी।

बांग्ला देश की ताजा हिन्दू संहार की हृदय विदारक घटनाओं से भी भारत के वोट लोलुपों के दिल नहीं पसीज रहे हैं।

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बेचारा जयचंद ने तो गोरी के खिलाफ दूसरी बार चैहान का सिर्फ साथ नहीं दिया था।

जिस तरह मानसिंह ने अकबर के साथ मिलकर महाराणा से लड़ा था,उसके विपरीत जयचंद ने चैहान के खिलाफ गोरी का साथ नहीं दिया था।

जयचंद सिर्फ तटस्थ रह गया था।

  इसके बावजूद आज कोई पिता अपने पुत्र का नाम आम तौर पर जयचंद नहीं रखता।

पर, आज इस देश के वोट 

लोलुप नेता जेहादी मिजाज वाले बांग्लादेशी-रोहिंग्या घुसपैठियों की पूरी सक्रिय मदद कर रहे हैं और बदले में उनके वोट पा रहे हंै।इनका अपराध जयचंद से बड़ा है।  

  इन वोट लोलुपों को जयचंद का हश्र शायद नहीं मालूम !

चैहान के खात्मे के बाद गोरी की सेना ने तो जयचंद को भी नहीं बख्शा और न ही संयोगिता को।क्योंकि गोरी की सेना के लिए जयचंद सिर्फ काफिर था।

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घुसपैठियों के कारण पश्चिम बंगाल के हिन्दुओं की हालत इस देश में सर्वाधिक खराब होती जा रही है।इस बार भी बंगाल में कई जगह सरस्वती पूजा में बाधा पहुंचाई गई।मूत्र्तियां तोड़ी गयीं।सरस्वती माता की चुनरी खींची गई।

जो कुछ पाकिस्तान और बांग्ला देश में गैर मुस्लिमों के साथ होता रहा है,वह अब छिटपुट भारत में भी होने लगा है।

जैसे -जैसे घुसपैठियों की संख्या इस देश में बढती 

 जाएगी,ऐसी घटनाएं काफी बढ़ेंगंी।

अंततः ‘‘आधुनिक जयचंद’’ भी नहीं बख्शे जाएंगे।

(कम से कम जागरूक लोग अपने घरों में नई पीढ़ी को सज्जाद जहीर-योगेंद्र मंडल की कथाएं जरूर पढ़वायें।ताकि, वे सावधान हो जाएं और तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवियों को जवाब दे सकें।)़

कुछ सेेक्युलर दलों से प्रोत्साहन पाकर जेहादी संगठन पी.एफ.आई.इस देश में गृह युद्ध के लिए कातिलों के दस्ते तैयार कर रहा है।उसका लक्ष्य सन 2047 है।

वक्फ की एक -एक इंच जमीन के लिए, भले उस जमीन का कागजी सबूत उनके पास नहीं है,औवेसी लड़ंेगे,ऐसा वे कह रहे हैं।

  उस भावी ‘‘लड़ाई’’ के लिए उन्होंने दिल्ली दंगे के दो मशहूर लड़ाकू आरोपितों को दिल्ली विधान सभा चुनाव में उम्मीदवार भी बना दिया है।

सी.ए.ए.के खिलाफ शाहीन बाग धरने के बाद दंगा हुआ था।

तब मुसलमानों को गलत तथ्य देकर भड़काया गया था कि सी.ए.ए. लागू होने से मुसलमानों की नागरिकता खतरे में पड़ जाएगी।

वह लागू हो रहा है।पर किसी मुस्लिम की नागरिकता नहीं जा रही है।दरअसल ‘‘शाहीन बाग’’ इसलिए किया गया था क्योंकि जेहादी नहीं चाहते थे कि घुसपैठ तथा अन्य तरीके से आबादी का अनुपात बढ़ाने की उनकी रफ्तार कम हो जाए।

उसी तरह वक्फ संशोधन काूनन का विरोध इसलिए 

हो रहा है ताकि उनके कब्जे वाली किसी जमीन को उनसे छीना न जा सके भले जिन जमीन के कोई कागजी सबूत उनके पास नहीं है।

याद रहे कि वक्फ सशोधन कानून उस जमीन को मुसलमानों से छीनने नहीं जा रहा है जिस जमीन का कागजी सबूत वक्फ के पास है।

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ऐसे निराधार आंदोलनों को सेक्युलर दल शाहीन बाग में भी जाकर समर्थन कर रहे थे और वक्फ संशोधन कानून मामले में भी अतिवादी मुसलमानों का समर्थन कर रहे हैं।यह इस देश का दुर्भाग्य है।इसीलिए तो हम सैकड़ों साल

 तक गलाुम रहे !!!

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5 फरवरी 25 




सोमवार, 3 फ़रवरी 2025

   केंद्रीय बजट पर बिहार को लेकर

 चिदम्बरम का बयान जले पर नमक !

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        सुरेंद्र किशोर

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पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी.चिदम्बरम ने मौजूदा केंद्रीय बजट प्रस्तावों पर कहा है कि ‘‘बजट में सिर्फ मध्य वर्ग और बिहार के मतदाताओं को रिझाने का प्रयास हुआ है।’’ 

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चिदंबरम साहब,

यदि मौजूदा मोदी सरकार ने बिहार के लिए कुछ किया है तो वह नेहरू सरकार की उपैक्षा नीति की क्षतिपूर्ति की एक छोटी कोशिश मात्र है।

  मत भूलिये कि सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अंग्रेजों की गोलियों से जितनी संख्या में लोग मारे गये थे,उतनी संख्या में किसी एक अन्य राज्य में नहीं मारे गये।

फिर भी पता नहीं,(बिहार से ) डा.राजेंद्र प्रसाद के कारण या किसी अन्य कारणवश नेहरू ने कृषि प्रधान राज्य बिहार के साथ सौतेला व्यवहार किया।बाद में भी यह व्यवहार जारी रहा।

कहा गया कि बिहार केंद्र का आंतरिक उपनिवेश है।इस शीर्षक से एक किताब भी छपी थी।

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. आजादी के तत्काल बाद जवाहरलाल नेहरू सरकार ने रेल भाड़ा समानीकरण नियम लागू कर दिया।उस नियम के कारण नब्बे के दशक तक ,जब तक वह नियम लागू रहा,बिहार को करीब 10 लाख करोड़ रुपए (तब के मूल्य के आधार पर)से वंचित कर दिया गया था।यदि वह लाभ हासिल हुआ होता तो बिहार पिछड़ा नहीं रहता।

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  इसके बदले तब बिहार को कोई क्षतिपूर्ति या विशेष मदद भी नहीं की गई।

नतीजतन,सन 1970 आते -आते पिछड़ापन की दृष्टि से देश में बिहार का नीचे से दूसरा स्थान था।

1970 में देश के राज्यों में बिहार से अधिक पिछड़ा सिर्फ ओड़िशा था।

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   आजादी से पहले टाटा कंपनी ने जमशेदपुर में बहुत बड़ा इस्पात कारखाना लगाया। 

दक्षिण बिहार में, जो अब झारखंड है,खनिज पदार्थों की भारी उपलब्धता के कारण ही टाटा ने यह काम किया।

  तब रेल भाड़ा समानीकरण नीति नहीं थी।

नतीजतन ,खनिज पदार्थों की उपलब्धता का लाभ टाटा कंपनी के रूप में पूरे बिहार को भी मिला।याद रहे कि देश का करीब 40 प्रतिशत खनिज पदार्थ अविभाजित बिहार में उपलब्ध था।

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रेल भाड़ा समानीकरण नीति के अनुसार 

खनिज पदार्थों की रेलगाड़ी से ढुलाई का जितना भाड़ा धनबाद से रांची ले जाने पर लगेगा,उतना ही भाड़ा धनबाद से मुबंई या मद्रास का लगेगा।

  नतीजतन समुद्र तटीय इलाकों में कारखाने अधिक लगने लगे।

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     कृषि तथा दूसरे क्षेत्रों में समरूप आर्थिक मदद देकर तब की केंद्र सरकार बिहार के साथ हो रहे अन्याय के कुप्रभाव को कम कर सकती थी।

  पर, पंच वर्षीय योजनाओं के आंकड़े बतातेे हैं कि बिहार में अन्य अनेक राज्यों की अपेक्षा केंद्र की ओर से काफी कम योजनागत व्यय किया गया।

 यहां तक कि केंद्र सरकार ने भांखड़ा नांगल योजना में तो पूर्ण मदद की ,पर जब कोसी सिंचाई योजना के क्रियान्वयन के लिए मदद की मांग बिहार से हुई तो नेहरू सरकार ने टका सा जवाब दे दिया।

  कह दिया कि बिहार सरकार श्रम दान के जरिए कोसी बांध का निर्माण कराए ।क्योंकि हमारे पास धन की कमी है।

केंद्र सरकार का कृषि(उसमें सिंचाई भी शामिल था)मंत्रालय के कुल बजट की लगभग एक तिहाई राशि सिर्फ पंजाब को दे दी गयी थी।इतनी बड़ी राशि मिली तो भ्रष्टाचार होना ही था।

मुख्य मंत्री प्रताप सिंह कैरो के खिलाफ न्यायिक जांच आयोग बैठा।सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एस.आर.दास के नेतृत्व में बने आयोग ने कैरो परिवार को भ्रष्टाचार के लिए दोषी ठहराया।पर नेहरू जी ने कृष्ण मेनन की तरह ही कैरो को भी बचा लिया। 27 मई को नेहरू का निधन हुआ।

21 जून 1964 को ही कैरों को मुख्य मंत्री पद से हटाया जा सका।क्योंकि तब तक शास्त्री जी जैसे ईमानदार व्यक्ति प्रधान मंत्री बन गये थे। 

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 इधर बिहार की भूमि सिंचाई के लिए तरसती रही।

उधर भ्रष्टाचार में सरकारी पैसे जाया होते रहे।

प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने तो 1985 में 85 पैसे बनाम 15 पैसे की बात कही।

 कहा था कि 100 सरकारी पैसों में से 85 पैसे बिचैलिए खा जाते हैं।

पर,सन 1963 में ही तत्कालीन कांग्रेस  अध्यक्ष डी.संजीवैया को  इन्दौर के अपने भाषण में यह कहना पड़ा कि ‘‘वे कांग्रेसी जो 1947 में भिखारी थे, वे आज करोड़पति बन बैठे।’’

गुस्से में बोलते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने  यह भी कहा था कि ‘‘झोपड़ियों का स्थान शाही महलों ने और कैदखानों का स्थान कारखानों ने ले लिया है।’’ 

ऐसे में बिहार में सिंचाई के लिए केंद्र कहां से पैसे देती !

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 नतीजतन बिहार में सन 1966-67 में भारी सूखा पड़ा।बड़ी संख्या में भुखमरी हुई।

प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने 5 नवंबर, 1966 को पटना में कहा कि ‘‘जितना अनाज बिहार सरकार केंद्र से मांग रही है,उतना देने की स्थिति में हम नहीं हैं।हम हर माह 4 लाख टन अनाज नहीं दे सकते।’’

याद रहे कि तब बिहार में भी कांग्रेस की ही सरकार थी।

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1967 में महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा की सरकार बन गई।

इस गैर कांग्रेसी सरकार में मुख्य मंत्री सहित लगभग सभी मंत्री कट्टर ईमानदार थे,इसलिए भुखमरी कम हुई।क्योंकि मंत्रियों ने मेहनत की।राहत के पैसों में लूट नहीं होने दी गयी।

जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बिहार रिलीफ कमेटी बनी थी।उसका भी सकारात्मक असर पड़ा।उन्ही दिनों 

मैंने तब एक विशेषज्ञ की टिप्पणी पढ़ी थी।

उसने कहा था कि उत्तर बिहार की भूमि जापान की भूमि की अपेक्षा अधिक उपजाऊ है।पर,वह वर्षा पर निर्भर है।यदि  सिंचाई की पक्की व्यवस्था हुई होती तो इतना बड़ा सूखा और अकाल नहीं पड़ता। 

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अब आप ही बताइए कि पी.चिदंबरम का ताजा बयान बिहार के जले पर नमक छिड़कने जैसा है नहीं ?

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2 फरवरी 25