बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

 कवि और गजल कार रामनाथ सिंह उर्फ 

अदम गोंडवी की याद में

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(22 अक्तूबर, 1947--18 दिसंबर, 2011) 

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साठ-सत्तर के दशकों के भारत के दृश्य

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काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में। 

उतरा है रामराज विधायक निवास में।।

पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत।

इतना असर है खादी के उजले लिवास में।।

आजादी का ये जश्न मनाएं वो किस तरह।

जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में।।

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें । 

संसद बदल गई है यहां के नखाश में !! 

जनता के पास एक ही चारा है बगावत।

ये बात कह रहा हूं मैं होश-ओ-हवास में ।।

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         2

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वो जिसके हाथ में छाले हैं,पैरों में बिवाई है,

उसी के दम से रौनक आपके बंगलों में आई है।।

इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का,

उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है।।

कोई भी सिरफिरा धमका के जब चाहे जिबह कर ले,

हमारा मुल्क इस माने में बुधवा की लुगाई है।।

रोटी कितनी महंगी है ये वो औरत बताएगी,

जिसने जिस्म गिरवी रख के ये कीमत चुकाई है।।

-----  अदम गोंडवी

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जब अदम गोंडवी गजल लिख रहे थे,उन्हीं दिनों डा.राम मनोहर लोहिया लोक सभा में कह रहे थे-- 

‘‘27 करोड़ आबादी तीन आने रोजाना पर जिंदगी काटती है।वहीं देश के प्रधान मंत्री की सुरक्षा पर 25 हजार रुपए प्रतिदिन खर्च किये जाते हंै।’’

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अस्सी के दशक में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने यह कह कर स्थिति साफ कर दी--

‘‘हम दिल्ली से 100 पैसे भेजते हैं,किंतु उसमें से सिर्फ 15 पैसे ही जनता तक पहुंच पाते हैं। 85 पैसे बिचैलिाए खा जाते हैं।’’

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4 फरवरी, 2025 

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पुनश्चः

अस्सी के दशक में भारत के बारे में विदेशियों की कैसी धारणा थी ?

पढ़िए मेरा एक संस्मरण--

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अस्सी के दशक में पत्रकार सह लेखक माइकल टी. काॅफमैन पटना आए थे।

वे उन दिनों नई दिल्ली में न्यूयार्क टाइम्स के ब्यूरो प्रमुख

थे।

मैं तब यहां के दैनिक ‘आज’ में काम करा था।

जार्ज फर्नांडिस ने उन्हें कहा था कि पटना में पूरे बिहार का हाल सुरेंद्र तुम्हें बता देगा।

 मुझसे काॅफमैन की लंबी बातचीत हुई।

मैंने यूंहीं उत्सुकतावश उनसे पूछा कि ‘‘अमेरिका के लोग भारत के बारे में क्या सोचते हैं ?’’

उन्होंने कहा कि ‘‘सोचने की फुर्सत ही कहां है ?’’

मैंने जोर डाला -‘‘कुछ तो सोचते होंगे !

खास कर भारत के विशेषज्ञ भी तो होंगे।’’

फिर उन्होंने पाटलिपुत्र अशोका होटल के अपने कमरे की दीवाल पर टंगे दुनिया के नक्शे की ओर अपनी कलम घुमाई और नाटकीय ढंग से पूछा, ‘किधर है इंडिया !’

और जोर देने पर उन्होंने कहा कि ‘‘आपको बुरा लगेगा,इसलिए मैं नहीं बताऊंगा।’’

मैंने फिर जोर दिया।

फिर उन्होंने कहा कि भारत के बारे में हमारे यहां के कुछ लोग कहते हैं कि वहां के एक तिहाई लोग कचहरियों में रहते हैं।

अन्य एक तिहाई लोग अस्पतालों में।

बाकी एक तिहाई लोग मनमौजी हैं।

काॅफमैन ने कहा कि यदि आप अमेरिका में होते तो सबसे पहला काम यह होता कि आपको किसी निकट के अस्पताल में भर्ती करा दिया जाता।

(याद रहे कि मैं उन दिनों और भी दुबला-पतला था।बीमार जैसा लगता था।)

वे कहना चाहते थे कि अस्पताल जाने लायक स्थिति तो एक तिहाई भरतीयों की है,पर वे सब जा नहीं पाते।

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इतने वर्षों के बाद अमेरिका के लोग भारत के बारे में आज यानी 2025 में क्या सोचते होंगे ?   .

कोई आयडिया ?!!

मैंने सुना है कि अब भारत सिर्फ सपेरों और साधु-संन्यासियों का देश नहीं माना जाता।

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