पटना विश्व विद्यालय जब अपना सौ साल पूरा करने
जा रहा है तो ऐसे समय में मुझे इस विश्व विद्यालय के
एक अत्यंत मेधावी छात्र इंद्रदीप सिंहा की याद आ रही है।
सच पूछिए तो कोई किसी विचार धारा का हो,पर यदि उसने
समाज के लिए अपना सुखी जीवन छोड़ कर कष्टमय जीवन अपनाया,तो वैसे लोगों के प्रति मेरे मन में अत्यंत सम्मान का भाव रहता है।
इंद्र दीप सिंहा वैसे ही व्यक्तियों में थे।एक बेदाग जीवन जिए।
उनसे मेरी कभी मुलाकात या बातचीत तो नहीं हुई ,किंतु मैं उनका प्रशंसक रहा हूं।
उन्होंने सन 1939 में जब पटना विश्व विद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए.पास किया था,तब विभागाध्यक्ष डा.ज्ञान चंद थे। डा.ज्ञान चंद जाने माने अर्थशास्त्री थे और आई.एम.एफ.और भारत सरकार के बड़े पदों पर भी रहे।इंद्रदीप सिंहा डा.ज्ञान चंद के छात्र थे।
हां, तो इंद्रदीप सिंहा ने एम.ए.में विश्वविद्यालय में टाॅप किया था।कई वर्षों से किसी छात्र को अर्थशास्त्र में फस्र्ट क्लास भी नहीं मिला।
इस उपलब्धि के बाद डा.ज्ञान चंद ने इंद्रदीप सिंहा से कहा कि तुम मेरा विभाग ज्वाइन कर लो।
लैक्चररशिप में तुमको हर माह 144 रुपए मिलेंगे।दो साल काम कर लो।बाद में तुम्हें फाॅरेन स्कालरशिप दिलाकर डाक्टरेट करने के लिए इंगलैंड भेज दूंगा।
इस पर इंद्रदीप सिंहा ने कहा कि नहीं,डाक्टर साहब मैंने स्कूली जीवन से ही यह प्रण कर लिया है कि मुझे नौकरी नहीं करनी है।अंग्रेजी राज में तो नौकरी बिलकुल ही नहीं करनी है।
इस तरह इंद्रदीप सिंहा ने राजनीति में कदम रखा।संघर्ष के पथ पर आगे बढ़ते चले गए।
बिहार सरकार में 1967-68 में राजस्व मंत्री रहे।राज्य सभा के सदस्य भी रहे।
भाकपा में भी बड़े पदों पर रहे।
अब वह इस दुनिया में नहीं हैं।
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