मंगलवार, 24 अक्टूबर 2017

जेपी को भी जिम्मेदार मानते थे बेनीपुरी




        
‘कलम के जादूगर’ के नाम से चर्चित राम वृक्ष बेनीपुरी ने 
प्रजा समाजवादी पार्टी की दुर्दशा के लिए जय प्रकाश नारायण को भी जिम्मेदार माना था।
 इस संबंध में बेनीपुरी ने 27 अक्तूबर 1959 को  जेपी को एक लंबा पत्र लिखा था।उन्होंने लिखा कि प्रजा सोशलिस्ट ‘पार्टी को इस स्थिति में लाने का श्रेय सिर्फ लोहिया को नहीं है बल्कि आपका इसमें सबसे बड़ा हाथ है।यों तो हम सब दोषी हैं,किंतु हमारे गुण -दोष की क्या हस्ती ! आपके लिए उचित था कि आप पार्टी के साथियों को एकत्र करके इस पार्टी को भंग कर देते ,फिर राजनीति से संन्यास लेते।’
  अब जरा बेनी पुरी जी के बारे में कुछ बातें।वे एक साथ स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिक नेता, पत्रकार और साहित्यकार थे।
माक्सर्ववादी विचारक डा.राम विलास शर्मा ने उनके बारे में कभी लिखा था कि ‘हिंदी प्रदेश में क्रांतिकारी पत्रकारिता के तीन मुख्य प्रतिनिधि हैं-गणेश शंकर विद्यार्थी,माखनलाल चतंर्वेदी और राम वृक्ष बेनीपुरी।’
मैथिली शरण गुप्त ने बेनीपुरी जी के बारे में लिखा था कि ‘यह लेखनी है या जादू की छड़ी हाथ में।’
राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ‘बेनी पुरी की सजीव लेखनी वास्तविकता के साथ सौंदर्य की प्रतिष्ठा है।’
भारत छोड़ो आंदोलन के 75 साल पूरा होने पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने गत 9 अगस्त को बेनीपुरी जी को श्रद्धा के साथ याद किया था।
 यह सब इसलिए लिखा कि नयी पीढ़ी जाने कि बिहार में एक समय में कैसी -कैसी प्रतिभाएं थीं।
  बेनी पुरी जी का जन्म 1899 में मुजफ्फर पुर जिले के बेनी पुर में हुआ था।उनका निधन 1968 में हुआ।जब  उन्होंने जेपी को चिट्ठी लिखी,उन दिनों  वे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के विधायक थे।
  वह जेपी के करीबी भी थे।
 बेनीपुरी ने जेपी को लिखा था कि ‘यह पत्र बड़े हृदय मंथन के बाद लिख रहा हूं।मैंने अपने को राजनीति से तटस्थ सा कर लिया है।प्रिय महावीर @जपला@की हत्या के बाद तो मैं राजनीति से बिलकुल निराश ही हो चुका हूं।आपने भी राजनीति छोड़ दी है।’
  प्रजा समाजवादी पार्टी भारत में समाजवाद की रजत जयंती मनाने जा रही है।सुना है,अखबारों में पढ़ा है,उसमें आप भी सम्मिलित किए गए हैं।
 मैं चाहता हूं कि जब आप वहां बोलें ,तो कुछ स्पष्टता से काम लें।यानी संतों की तरह शुभाशीष नहीं दें,चिंतकों की तरह स्पष्ट बातें भी कहें ताकि पार्टी के बारे में और अपने बारे में कुछ सोच -विचार करने का सुअवसर मिले।
 मुझे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की दुर्गति पर बहुत क्षोभ होता है।मैंने एक बार आपसे  कहा भी था कि पार्टी को  इस स्थिति मंे लाने का श्रेय सिर्फ लोहिया को नहीं है, आपका इसमें सबसे बड़ा हाथ है।यों तो हम सभी दोषी हैं,किंतु हमारे गुण -दोष की क्या हस्ती ! यह पार्टी आपने बनाई और आज जो इसकी स्थिति है,उसमें भी आपका उतना ही बड़ा हाथ है जितना इसे भारत में प्रमुखत्तम स्थान दिलाने में।’
 ‘मेरे खयाल से इसकी उन्नति और अवनति का श्रेय मुख्यतः आपके दो ‘पलायनों’ पर है।एक बार आपने हजारीबाग जेल से 
पलायन किया और यह पार्टी उन्नति की चोटी पर जा पहुंची।दूसरी बार आपने बोध गया में पलायन किया और पार्टी गड्ढे में जा गिरी।’
 बेनीपुरी जी ने अपनी  खास शैली  लिखा कि ‘इस पार्टी की मौत भी शानदार होनी चाहिए थी।
आपने इससे ऐसी मौत भी छीन ली।आज इसके अंग-अंग गल- गल कर कट -कट कर गिर रहे हैं।
आपके लिए उचित था कि आप पार्टी के साथियों को एकत्र करके इस पार्टी को भंग कर देते,फिर राजनीति से संन्यास लेते।
 जिस पार्टी को आपने जीवन के बीस उत्कृष्ट वर्ष दिए  
--1934 से 1954 तक-उसकी मिट्टी नहीं खराब हो,यह तो आपको सोचना ही था।
अब तक नहीं सोच सके तो अब भी सोचिए।
-प्रायश्चित के रूप में ही सही।सोचिए और स्पष्टता से काम लीजिए।तानाशाही बनाम जनतंत्र की चर्चा करते हुए बेनी पुरी ने जेपी को लिखा था कि ‘आपने एक बार कहा था कि अगली लड़ाई तानाशाही बनाम जनतंत्र के बीच होगी।तानाशाही दिन दिन बढ़ती जा रही है।अंतः क्यों नहीं आप सभी जनतांत्रिक शक्तियों को एकत्र करने की दिशा में प्रयत्न करें !
आज देश भी यही पुकार रहा है।
 प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को इस क्रम में पहली कड़ी बनने का सौभाग्य आप दिला सकें तो  इतिहास आपकी इस सेवा को कभी नहीं भूलेगा।जनतंत्र का एक मसीहा ही मानेगा।’
  दरअसल वह अवसर 1974-77 में आया जब जेपी ने देश में आंदोलन चलाया।
 तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की पार्टी की  1977 के चुनाव में जब भारी हार हुई तो कहा गया कि वह तानाशाही पर लोकतंत्र की जीत हुई ।यह जेपी के नेतृत्व की सफलता है।
  उससे पहले प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में 1971 में विलय हो गया।दोनों को मिलाकर सोशलिस्ट पार्टी बनी।फिर जेपी की सलाह पर सोशलिस्ट पार्टी तथा तीन अन्य प्रमुख गैर कांग्रेसी दलों को मिलाकर जनता पार्टी बनी।इसी जनता पार्टी ने कांग्रेेस को 1977 के चुनाव मेंं केंद्र की सत्ता से पहली बार बाहर कर दिया था।आपातकाल की पृष्ठभूमि में वह चुनाव हुआ था।  
@ 17 अक्तूबर 2017-लाइवबिहार.लाइव पर मेरा लेख@


  
  

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