रविवार, 22 अक्टूबर 2017

  हमारे जागरूक फेसबुक मित्र अनिल सिंहा ने आज  लिखा है कि 
पटना में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि ,श्री बाबू पर कुछ कहने के बजाए अपने विरोधियों के खिलाफ बोलने में ही लगे रहे।
   अनिल जी ने ठीक ही कहा।पर क्या कीजिएगा !
आजकल ऐसे अवसरों पर ऐसा ही होता है।सिद्धांतवादी स्वतंत्रता सेनानियों की जयंती मनाने का उद्देश्य ही कुछ दूसरा होता है।
 गांधी युग के वैसे महा पुरूषों के बारे में आज के अवसरवादी नेता आखिर बोलंे तो बोलें क्या ?
 यह तो बोल नहीं सकते कि श्रीबाबू ने अपने पुत्र को अपने जीवन काल में विधायक तक नहीं बनने दिया तो मैं भी उनके ही रास्ते पर चलूंगा !
यह भी नहीं बोल सकते कि लंबे समय तक सत्ता में रहने के बावजूद श्रीबाबू ने अपना एक मकान तक पटना में नहीं बनवाया तो मैं भी नहीं बनाऊंगा।
श्री बाबू ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को व्यक्तिगत दुश्मन नहीं माना तो मैं भी नहीं मानूंगा,आज के नेता यह बात किस मुंह से बोलेंगे ?
  यह कैसे बोलेंगे कि चुनाव के समय श्रीबाबू अपने चुनाव क्षेत्र में नहीं जाते थे तो मैं भी नहीं जाऊंगा क्योंकि मैं बाकी के पौने पांच साल तो अपने क्षेत्र की जनता की  सेवा करता ही हूं !
  इस बात की चर्चा आज के कितने नेता कर सकेंगे कि श्री बाबू के निधन के बाद उनके पास कुछ ही हजार रुपए मिले थे जो उनके मित्रों और समर्थकों के लिए रखे हुए थे ।यह सब बोलने में शर्म नहीं आएगी !
 उनके गुणों की चर्चा करने और उनसे सीख लेने की लोगों से अपील करने में आज के अधिकतर नेताओं के सामने कठिनाइयां हैं ! क्योंकि, वे  खुद उस तरह की जीवन शैली से काफी दूर  हैं।
  इसीलिए ऐसे अवसरों पर भी आज के अधिकतर नेता अपने ताजा राजनीतिक एजेंडे को ही आगे रखते हैं।बेचारों पर दया कीजिए अनिल बाबू !  
  @ 22 अक्तूबर 2017@

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