सोमवार, 23 अक्टूबर 2017


  छठ पर्व यानी सूर्य देवता की पूजा ।सूर्य ही ऐसे देवता हैं जिन्हें आप देख सकते हैं। आपके आसपास जो भी है,उनमें सर्वाधिक ताकतवर सूर्य ही हैं।आप बाकी का नुकसान पहुंचा सकते हैं,पर सूर्य का नहीं।
मान्यता है कि  देवताओं में वायु , जल और अग्नि भी शामिल हैं।
कुछ लोग वन देवता और वन देवी की भी चर्चा करते हैं।
मनुष्य वायु, जल, अग्नि और वन सबकों पराजित यानी बर्बाद करने के काम में लगा हुआ है।पर सूर्य को पराजित करना कौन कहे,  मद्धिम करना भी  मनुष्य के वश में नहीं है।
  एक पुरानी कहावत है।यह कहावत दुनिया भर में मशहूर हैं
कि ‘जिसे तुम पराजित नहीं कर सको,उससे मिल जाओ।’
पूरी दुनिया के चतुर -चालाक लोग यही काम करते हैं।
 चूंकि हम सूर्य को पराजित नहीं कर सकते हैं,लगता है कि शायद इसीलिए इस देश में सूर्य की पूजा यानी छठ पर्व का प्रचलन बढ़ता जा रहा है।
  मुझे अपने बचपन की याद है।तब छठ पूजा बिहार के कुछ ही  जिलों में होती थी।
धीरे -धीरे अन्य जिलों में इसका  फैलाव हुआ। अब तो बिहार के लोग जहां भी गए,छठ पूजा को अपने साथ लेते गए।
 यदि सूर्य के देवता होने की बात थोड़ी देर के लिए छोड़ भी दी जाए तो यह तो मानना ही पड़ेगा कि पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए उसकी उपस्थिति  अनिवार्य है।
   आॅक्सीजन के कम होने पर आप आक्सीजन मास्क का इस्तेमाल कर सकते हैं।दूषित जल यहां तक कि समुद्र जल को भी शुद्ध करके पी सकते हैं।पर सूर्य के बिना आप कैसे जिएंगे ?हालांकि हमलोगों के गलत कामों से समुद्र में भी कचड़ा बढ़ता जा रहा है।
   अपने क्षुद्र और क्षणिक स्वार्थ में  पर्यावरण को रोज -रोज बिगाड़ने में लगे इस दुनिया के लोगों का वश चलता तो वे सूर्य को भी नहीं छोड़ते।
  हमने नदियों को प्रदूषित कर दिया।गंगा जैसी औषधीय गुणों वाली विरल नदी को भी हमने कहीं का नहीं छोड़ा है।उसे करते जा रहे हैं हम प्रदूषित।हमने वायु को प्रदूषित कर दिया।करते जा रहे हैं।दिल्ली के लोगों ने तो इस दीवाली के फटाकों को लेकर न तो सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा की परवाह  की और न ही अपनी जान की ।
रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाओं के बेतरह इस्तेमाल के कारण धरती जहरीली बनती जा रही है।पंजाब में तो बुरी हालत है।गांव के गांव बंजर हो रहे हैं।हमने भूगर्भ जल का इतना शोषण किया और कर रहे हैं कि कुछ स्थानों में स्थिति विकराल बनती जा रही है।प्लास्टिक और इलेक्टा्रनिक कचड़ों से धरती तबाह हो रही है सो अलग।
   चलिए शुक्र है कि सूर्य आज के अदूरदर्शी मनुष्य की काली छाया की पहुंच रेखा से बहुत ऊपर है, शायद इसीलिए वंदनीय है।

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