बोफर्स तोप खरीद घोटाले से संबंधित बंद केस सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर खुलने जा रहा है।राजनीतिक महत्व के इस केस को बंद कर देने का निर्णय 2005 में दिल्ली हाई कोर्ट ने दिया था।तब की सरकार ने सी.बी.आई. को अपील की अनुमति नहीं दी थी।
अजय अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली हाई कोर्ट के उस निर्णय को चुनौती दी है।सुप्रीम कोर्ट जल्द ही उस मामले की सुनवाई करेगा।
इस बीच निजी जासूस माइकल हर्शमैन ने इसी महीने इस घोटाले के संबंधित कुछ नये और सनसनीखेज खुलासे किए हैं।हर्शमैन ने बोफर्स घोटाले का संबंध पाकिस्तान से भी जोड़ दिया है।
यदि केस आगे बढ़ा तो यह सवाल भी उठेगा कि उसे आखिर बंद ही क्यों किया गया था ? किसे बचाने के लिए यह काम किया गया था ?
यह सवाल भी उठेगा कि 2005 में केंद्र सरकार ने जांचकत्र्ता सी.बी.आई.के हाथ क्यों बांध दिए थे ?
भारत सरकार के ही आयकर न्यायाधिकरण ने 2010 में यह कह दिया था कि बोफर्स के दलाल ‘क्वात्रोच्चि और बिन चड्ढा को बोफर्स तोप खरीद की दलाली के 41 करोड़ रुपए मिले थे।ऐसी आय पर भारत में उन पर टैक्स की देनदारी बनती है।’
तो फिर तब सरकार ने उनसे टैक्स क्यों नहीं वसूला ?
बोफर्स एक अच्छी तोप है,पर इससे भी बेहतर तोप फ्रंास की सोफ्मा खरीद के लिए तब उपलब्ध थी।क्या सोफ्मा को छोड़कर बोफर्स की खरीद इसलिए हुई क्योंकि सोफ्मा कंपनी दलाली नहीं देती थी ?
सी.बी.आई. ने स्विस बैंक की लंदन शाखा में बोफर्स की दलाली के पैसे का पता लगा लिया था।वह क्वात्रोचि के खाते में था।
उस खाते को गैर कांग्रेसी शासन काल में सी.बी.आई.ने जब्त करवा दिया था।पर बाद में मन मोहन सिंह सरकार के एक अफसर ने लंदन जाकर उस खाते को क्यों खुलवा दिया ? न सिर्फ क्वात्रोचि को भारत से भाग जाने दिया गया,बल्कि उसने लंदन बैंक से अपने खाते से वे पैसे भी निकाल लिए ।ऐसा किसकी साठगांठ से हुआ ? इसके पीछे कोई उच्चस्तरीय साजिश थी ?
इस तरह के कई अन्य सवाल भी उठेंगे।
बोफर्स तोप खरीद घोटाले के शोर के बीच 1989 में हुए लोक सभा चुनाव में कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बाहर हो गयी थी।
क्या उस केस के फिर से खुलने पर उस का असर अगले चुनावों में पर भी पड़ेगा ?
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