बिहार में 10 वीं कक्षा के 76 प्रतिशत बच्चे
साइंस की ए बी सी डी भी नहीं जानते
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सुरेंद्र किशोर
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कल के दैनिक भास्कर की खबर का यही शीर्षक है।
दरअसल साइंस ही नहीं , अन्य विषयों का भी लगभग यही हाल है।
सरकार द्वारा संचालित स्कूलों की शिक्षा की हालत दयनीय है।
यदि इस संबंध में फेसबुक वाॅल पर कोई पोस्ट लिखो तो कुछ शिक्षक टूट पड़ते हैं।
वे खुद को छोड़कर सरकार सहित अन्य सारे तत्वों को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा देते हैं।
सरकार का कथन कुछ और ही होता है।
सब एक दूसरे पर आरोप फेंकते रहते हैं।
दरअसल पीड़ित तो गरीबों के बच्चे होते हैं।
सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था का भी यही हाल है।
गरीब लोग स्वास्थ्य व शिक्षा के लिए सरकार पर ही निर्भर रहते हैं।
अमीरों के लिए तो अंग्रेजी स्कूल व बड़े निजी अस्पताल हैं ही।
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अब सवाल है कि सरकारी स्कूल व अस्पताल कैसे सुधरेंगे ?
पहले तो निष्पक्ष जांच से यह तो पता चले कि दुर्दशा के लिए कौन -कौन से तत्व जिम्मेदार हंै।
इसकी परंपरागत ढंग से जांच कराने से लीपापोती हो जाएगी।
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इसलिए नमूने के तौर पर सरकारी स्कूलों और अस्पतालों कीे न्यायिक जांच होनी चाहिए।
इस काम के लिए जज के चुनाव में भी सावधान बरती जाए तो वास्तविक मर्ज पकड़ में आ जाएंगे।
फिर जांच की सिफारिश को लागू करने के लिए एक ऐसी सरकार भी चाहिए जिसने हाल ही में ही चुनाव जीता हो।यानी, चुनाव उसके सिर पर न हो।
वह सरकार बेरहमी से ‘‘बुलडोजर बाबा’’ जैसी कार्रवाई करे।
फिर तो उसके नतीजे आएंगे।
अन्यथा न तो गरीबों की स्वास्थ्य रक्षा हो पाएगी और न ही उनके बच्चे शब्द के सही मायने में श्ाििक्षत हो पाएंगे।
शिक्षा और डिग्री में अब भारी फर्क पड़ गया है।
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27 मई 22
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