जवाहरलाल नेहरू की पुण्य तिथि पर
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1947 से पहले के जवाहर लाल नेहरू को मेरा सलाम
-- डा.राम मनोहर लोहिया
-27 मई 1964
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जालियांवाला बाग के नरसंहार से द्रवित होकर जवाहरलाल नेहरू आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे।
एक अत्यंत सुखमय -सुरक्षित जीवन को त्याग कर उन्होंने
अपने लिए कंटकाकीर्ण मार्ग चुना था।देश के लिए उनके अपने सपने थे।
कुछ लोग कहते हैं कि जेल में नेहरू को अंग्रेजों ने आराम से रहने दिया।
ऐसा कहने वाले लोग क्या आज अपने लिए आरामदायक जेल जीवन भी स्वीकार करेंगे ?
यह और बात है कि सावरकर जैसे वीरों को जेल में अपार कष्ट झेलने पड़े थे।
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पर,बात यहीं तक नहीं रुकती है।
आजादी के बाद प्रधान मंत्री के रूप में नेहरू ने देश को क्या दिया ?
कुछ तो जरूर दिया।
पर, क्या उतना कुछ दिया जितने की तत्काल जरूरत इस गरीब देश को थी ?
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नेहरू के अंध भक्तों से एक सवाल है।
1947 और 1985 के बीच 100 सरकारी पैसे घिसकर 15 पैसे रह गए थे।(राजीव गांधी के अनुसार)
यानी 85 प्रतिशत सरकारी धन की लूट हुई।
जब इतने पैसे लूट ही लिए गए तो सरकार के पास जनता को देने के लिए कितने धन बचे ?
इस लूट में जवाहरलाल नेहरू का कितना योगदान या मौन समर्थन रहा था ?
उस अवधि में कौन-कौन नेता सत्ता के शीर्ष पर थे ?
जवाब है-- जवाहरलाल नेहरू,लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी ।
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जब सरकारी पैसों का 85 प्रतिशत लूट में चले गया तो देश का वांछित विकास कैसे होता !
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आज लूट कम जरूर हुई है,किंतु रुकी नहीं है।
विशेषज्ञ इस पर शोध करके बताएं कि आज कितने प्रतिशत की लूट होती है।
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आज के ग्यारह दैनिक अखबार मेरे सामने हंै।
उनमें से सिर्फ एक अखबार यानी ‘प्रभात खबर’ में नेहरू पर लेख है।
यानी लगता है कि आज के अधिकतर संपादकों की यह राय है कि आज के लोगों को नेहरू में कोई खास रूचि नहीं है।
नेहरू-गांधी परिवार के नेताओं के नाम इस देश के करीब 400 सरकारी संस्थानों से जोड़े गए हंै।
फिर भी लोक सभा में कांग्रेस की लगभग पचास सीटें ही हैं।
डा.लोहिया कहा करते थे कि किसी नेता की मूर्ति उसके मरने के सौ साल के बाद ही लगनी चाहिए।
क्योंकि तब तक देश उस नेता का सही आकलन कर चुका होता है--यानी उसने देश का कितना भला या बुरा किया।
जवाहरलाल नेहरू कहा करते थे कि यदि मैं प्रधान मंत्री नहीं रहूंगा तौभी मेरा गुजारा मेरी किताबों की राॅयल्टी से चल जाएगा।
अब उनकी किताबों पर कितनी रायल्टी आती है ?
यह जानने की मेरी उत्सुकता है।
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27 मई 22
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