हिन्दी पत्रकारिता दिवस
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सुरेंद्र किशोर
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राधव बाबू हमारे ग्रामीण इलाके में मीडिया के प्रतीक पुरुष थे।
तब मीडिया यानी सिर्फ अखबार ।
सारण जिले के मिर्जा पुर गांव के निवासी राघव प्रसाद सिंह
दैनिक ‘आर्यावर्त’ के स्थानीय संवाददाता थे।
तब आर्यावर्त बिहार का सबसे बड़ा अखबार था।
हाल में उनका निधन हो गया।
संयमित जीवन के कारण वे करीब सौ साल जिए।
बात उन दिनों की है जब मैं स्कूली छात्र था और गांव में रहता था।
उनका गांव मेरे गांव से कुछ ही दूरी पर है।
‘आर्यावर्त’ का संवाददाता होना उन दिनों बड़ी बात थी।
हालांकि मेरे गांव में तब कोई अखबार नहीं खरीदता था।
किंतु राघव बाबू से जहां -तहां मुलाकात हो जाती थी।
राघव बाबू शुद्ध हिन्दी बोलते थे।
कभी- कभी ही भोजपुरी बोलते थे।
मुझे स्कूली जीवन में अखबार से कोई संबंध नहीं था,किंतु राघव बाबू को देखकर यह लगता था कि अखबार में काम करने वालों को शायद शुद्ध हिन्दी में ही बात करनी होती है।
स्वाभाविक है कि राघव बाबू को अफसर तथा दूसरे लोग सम्मान की नजर से देखते थे।
उनके प्रति सम्मान देखकर लगा था कि यह सम्मानजनक काम है।
मेरे मन में भी अखबार व खासकर राघव बाबू के प्रति सम्मान था।
मीडिया से मेरा वह पहला परिचय था।उस समय कौन जानता था ,मैं भी कभी मीडिया से ही जुड़ूंगा।
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30 मई 22.
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