राज्य सभा के पूरी तरह ‘‘अमीरों की सभा’’में बदल जाने से अनिल हेगडे जैसे इक्के -दुक्के फटेहाल राजनीतिक कार्यकर्ता कितने दिनों तक रोक पाएंगे ?
अगले कुछ वर्षों में शायद वैसे नेता भी नहीं रहेंगे जो अनिल हेगडे जैसों को राज्य सभा में भेजते हैं।
लोक सभा और विधान सभाओं में अनुसूचित जाति-जन जाति के लिए आरक्षण भी है।
उच्च सदनों में तो वह भी नहीं।
क्यों नहीं उच्च सदनों की कम से कम 51 प्रतिशत सीटों को उन लोगों के लिए आरक्षित कर दिया जाए जो आयकर नहीं देते ?
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सुरेंद्र किशोर
27 मई 22
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