रविवार, 28 फ़रवरी 2021

 सुरेंद्र किशोर के फेसबुक वाॅल से

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डा.राजेंद्र प्रसाद की पुण्य तिथि पर एक उद्गार

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राजनीति में आज भी सब एक जैसे नहीं !

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पर, राजेन बाबू जैसा तो कोई नहीं।

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 आज के नेता राजेन बाबू को आदर्श मानकर 

काम करें तो देश बेहतर बनेगा

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--सुरेंद्र किशोर--

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कुछ साल पहले एक शीर्ष सत्ताधारी नेता ने मुझसे 

सवाल किया था,

‘‘मैंने खुद के लिए क्या किया ?’’

वह यह कहना चाहते थे कि इतने दिनों तक सत्ता में रहने के बावजूद मैंने अपने लिए न तो आय से अधिक संपत्ति बनाई और न ही अपने परिजन को किसी तरह से लाभ पहुंचाया।

  वह सही थे।

मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं कि उन्होंने सिर्फ आम लोगों के लिए ही निरंतर काम किया।

अच्छा काम किया।

  दरअसल उनका यह अनुमान था कि अन्य अनेक लोगों की तरह ही मेरी भी नेताओं के बारे में अच्छी राय नहीं रहती।

   किंतु वह सही नहीं थे।

मैं जिन नेताओं को व्यक्तिगत रूप से जानता रहा हूं,उनमें से कुछ नेताओं के बारे में मेरी अच्छी राय रही है।

  दूसरी ओर, कई अन्य लोग यह मानते हैं कि सारे नेता बेईमान होते हैं।

मैं ऐसा नहीं मानता।

 हालांकि अधिकतर वैसे ही होते हैं।

अधिकतर का अर्थ ‘सारे’ नहीं होता है।

  जो शीर्ष नेता मुझसे पूछ रहे थे, उनके लंबे जीवन संघर्षों को मैंने जाना-सुना-देखा  है।

उसके राजनीतिक जीवन के प्रारंभिक वर्षों के आर्थिक तथा अन्य तरह के कष्टों को झेल लेना कोई सामान्य बात नहीं थी।

 उस नेता की ऐसी पढ़ाई-लिखाई थी जिसके जरिए वह अच्छी नौकरी पा सकते थे।

  पर वे अपने निजी कष्टों को झेलते रहे।

 मैं भी करीब दस साल तक (1966-76)सक्रिय राजनीतिक कार्यकत्र्ता था।

लेकिन मैं वह कष्ट नहीं झेल सका।

बीच में ही वहां से भाग चला।

पत्रकारिता में आ गया।

  आज यह सब लिखने का एक खास उद्देश्य है।

राजनीति में सक्रिय सारे लोगों को खराब नजर से मत देखिए।

जो तिरस्कार के लायक हैं,उनसे नफरत जरूर कीजिए।

उन्हें कमजोर करने की कोशिश भी कीजिए।

पर जो थोड़े लोग मेवा भाव की जगह सेवा भाव से राजनीति में आए हैं और हैं,उनको हतोत्साहित मत कीजिए।

वैसे कुछ सेवा भावी लोग बिहार की राजनीति में भी हैं और केंद्र की राजनीति में भी।अन्य प्रदेशों में भी।

  लोकतंत्र को तो वही लोग चलाएंगे।

चला भी रहे हैं।

मेरे जैसे लोग तो जाकर भी भाग खडे़ होते हैं।़

राजनीति में कई कमियां हैं।

उन्हें दूर करने की कोशिश जारी रहनी चाहिए।

लोकतांत्रिक व्यवस्था कुल मिलाकर सबसे अच्छी व्यवस्था है।

इसी व्यवस्था में कोई शीर्ष सत्ताधारी नेता अपने किसी परिचित व्यक्ति से पूछ सकता है कि ‘‘मैंने खुद के लिए क्या किया ? ’’

अधिकतर तानाशाह तो ऐंठते रहते हंै !

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राजेंद्र बाबू को किसी से यह पूछने की जरूरत

ही नहीं थी कि ‘‘मैंने अपने लिए क्या किया ?’’

दरअसल उनका जीवन ही एक संदेश  था।

वह संदेश यह था कि उन्होंने खुद के लिए कुछ नहीं किया।

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--28 फरवरी 21


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