मथाई की पुस्तकों पर से प्रतिबंध
हटाने का माकूल समय
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सुप्रीम कोर्ट ने हाल में कहा है कि चयन में योग्यता को नजरअंदाज करना संविधान का उलंघन है।
याद रहे कि इस आदेश का आरक्षण से कोई संबंध नहीं है।
चाहे आरक्षित वर्ग में बहाली हो या अनारक्षित में।
चयन में योग्यता को ही ध्यान में रखा जाए।
सुप्रीम कोर्ट की मंशा यही है।
दरअसल आजादी के तत्काल बाद से ही कई मामलों में योग्यता को नजरअंदाज किया जाता रहा।
उसका खामियाजा देश ने भुगता।
इस संबंध में भी प्रथम प्रधान मंत्री के निजी सचिव एम.ओ.मथाई ने कुछ बातें साफ-साफ लिखी हंै।
मथाई ने अपनी संस्मरणात्मक पुस्तक में लिखा है कि किस तरह भर्ती संगठन को उच्चत्तम स्तर से कह दिया गया कि कुछ खास लोगों को भर्ती में तरजीह दी जाए।
सत्तर के दशक में मथाई ने दो खंड़ों में अपने सनसनीखेज संस्मरण लिखे।
दोनों को केंद्र सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया।
भर्ती के अलावा भी उनमें अनेक जानने योग्य बातें हैं।
किस तरह आजादी के तत्काल बाद ही हमारे सत्ताधारियों ने कई तरह की बुराइयों के पौधे रोप दिए थे।
बाद में वे फलने -फूलने लगे।
अब तो बरगद के वृक्ष बन चुके हैं।
हालांकि उन वर्षों में कई अच्छे काम भी हुए।
पर, जो खराब काम हुए,वे नहीं हुए होते तो हम आज अधिक सुखी व खुश होते।
क्या मौजूदा सरकार उन पुस्तकों पर से प्रतिबंध हटाएगी ?
क्या सिर्फ मध्य युग के इतिहास को ही ठीक किया जाएगा ?
उसे तो किया ही जाना चाहिए।
जरूर कीजिए।
उस दिशा में कुछ काम तो होना शुरू भी हो गया है।
पर आजादी के तत्काल बाद के दशकों में क्या -क्या हुआ,वह सब बातें भी नई पीढ़ी नहीं जानेगी ?
अगली किसी गलती को करने से बचने के लिए भी यह जरूरी है कि हम पिछली गलतियों को जानें और उनसे सीखें।
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--सुरेंद्र किशोर-
27 फरवरी 21
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