सोमवार, 19 जुलाई 2021

 मत बताइए खबर का स्रोत 

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--सुरेंद्र किशोर--

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अस्सी के दशक की बात है।

कर्पूरी ठाकुर ने लोक दल विधायक दल के नेता पद से इस्तीफा दे दिया था।

 वह अपने ही दल के कुछ विधायकों के व्यवहार से दुखी रहा करते थे।

इस्तीफे की खबर छपी नहीं थी।

किंतु लोकदल खेमे में इस बात की दबे स्वर में

चर्चा हो रही थी।

पहले मैंने इस्तीफे की चिट्ठी की काॅपी हासिल कर ली।

 उन दिनों मैं दिल्ली के एक दैनिक अखबार(जनसत्ता) का बिहार संवाददाता था।

मैंने वह खबर भेजी।

 वह पहले पेज पर छप गई।

कर्पूरी जी ने उस खबर का खंडन कर दिया।

उसके बाद मैंने वह इस्तीफा पत्र भी छपवा दिया।

फिर क्या था !

कर्पूरी जी चाहते तो कह सकते थे कि चिट्ठी जाली है।

किंतु उन दिनों के कुछ नेता आज जैसे नहीं थे।

कर्पूरी जी ने मुझे बुलवाया।

मैं बिहार विधान सभा स्थित उनके कमरे में पहुंचा।  

उन्होंने अन्य सारे लोगों को बाहर निकल जाने के लिए कहा।

कमरे में सिर्फ हम दोनों थे।

मैं अपनी पृष्ठभूमि बता दूं।

1972-73 में मैं लोहियावादी समाजवादी कार्यकत्र्ता की हैसियत से उनके बुलावे पर कर्पूरी जी का निजी सचिव बना था।

  कर्पूरी जी को लगता था कि मैं उन्हें यह बता दूंगा कि उस चिट्ठी को किसने लीक किया।

  उन्होंने आग्रह के साथ पूछा कि आपको मेरी चिट्ठी किसने दी ?

वह बहुत ही विनयी स्वभाव के नेता थे।

उनके व्यक्तित्व के प्रभाव मंे आकर एक क्षण तो मुझे लगा कि मैं बता दूं।

पर, तुरंत ही मैं संभल गया।

मैंने उनसे कहा कि यदि बता दूंगा तो एक संवाददाता के रूप में मेरी साख समाप्त हो जाएगी।

  मैंने नहीं बताया।

वह भी मेरी मजबूरी समझ कर मान गए।

इस घटना की सीख यह है कि ऐसी खबर छापने से पहले उसका सबूत अपने पास रख लेना चाहिए।

वैसे सही सबूत को भी जाली करार दे देने का खतरा आज अधिक है।       

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कानोंकान

प्रभात खबर

पटना

16 जुलाई 21



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